Saturday, 27 April 2019

129-गजल

उमर हो गई फिर भी मासूमियत रही।
जिंदगी की असल ये सलाहियत रही।।
जलना तो शमां की सदा से आदत रही।
बेवजह मगर उस पर यही तोहमत रही।।
दोगेअगर प्यार तो मिलेगा खुद-ब-खुद। दुनिया की पुरानी ये तो रवायत रही।।
कीचड़ में दागे दामन बचा के खिलना।
यही तो यार नलिन की खासियत रही।।
खुदा का शुक्र मना वो जो आए मिलने।
वरना नेता में कहां इतनी शराफत रही।।
लबों से जो उन्होंने हमारा नाम ले लिया।
हुजूर उस्ताद की गजब ये इनायत रही।।
नलिन@उस्ताद

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