Thursday, 25 April 2019

128-गजल

लिखने को गजल पड़े जागना रात-रात भर।
समंदर भी दर्द का पड़े डूबना रात-रात भर।
बाॅहों में भरता है मुहब्बत का जायका वही।
जो पीता है आशिक यातना रात-रात भर।।
अंधेरों में दिखे बांटता वही चराग रोशनी।
तन-मन जलाए जो अपना रात-रात भर।।
बुझ गई लो ये शमां बेवफा के इंतजार में।
संजोया था इसने भी सपना रात-रात भर।।
कतई आसान नहीं डगर पनघट की उस्ताद।
करना पड़े आईने का सामना रात-रात भर।।

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