Thursday, 30 November 2017

यादे हक =दासोहम्

वह आकाश की बुलंदियों में इतना मशगूल हो गया।
जमीं की बुनियादी हकीकतों से बहुत दूर हो गया।

माना की हम सभी हैं उसी परवरदिगार के अक्स।
लफ्ज़ों से मगर गढ़ना ये अफसाना आसान हो गया।

खुदा के दीदार को बीत जाते हैं न जाने कितने जन्म।
सोचो उससा आफताब भीतर तलाशना क्या मजाक हो गया।

दुनिया में आजकल बड़े नए नुमाइश के फार्मूले इजाद हो रहे।
हर जगह चाहे वो इबादत,फिर सब बाजार हो गया।

अनल हक*कहना यादे हक को कहाॅ जंचता है कहिए जनाब।
सूप बोले तो बोले ये तो छलनी का बोलना हो गया।

"उस्ताद" जब सजदा ना हुआ उस की चौखट पर वफा से।
कैसे भला ये बताओ तुम्हारे लिए वो इतना आम हो गया।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 28 November 2017

नसीहतें उस्ताद की

रिश्ते जो सारे यहां जमीं के वो तो अवैध सभी हैं।
दरसल बच्चे तो हम परवरदिगार के वैध सभी हैं।।

खूबसूरत है सभी कुछ जो है जमीं आकाश के दरमियान।
गुजर लपटों से दोजख*की देखो तो बनाती वो भी जमाली*हैं।।

चाल-चलन,नेकनियती भला अब किसे सुहा रहे।
सलीकेदार,जहीन तो अब गढते हमें दर्जी ही हैं।।

याद कर तो लिया सबक जिंदगी का रट्टू तोते की तरह।
पेंच फंसता है जब सिलेबस से रटे सवाल आते नहीं हैं।।

माल-असबाब दुनिया के सारे धरे रह जाते हैं यहीं।
चुनांचे नसीहतें"उस्ताद"की शुरू से बुनियादी रही हैं।।
दोजख=नरक;जमाली=खूबसूरत।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 26 November 2017

उसका कोई सानी है नहीं

वह यहां,वहां,बता तो सही कहां है नहीं।
ढूंढता ही बस उसे आदमी शिद्दत से है नहीं।।

दीदारे उम्मीद से लगे हैं लोग चौखट बांके बिहारी।
करम मेहरबानी ऐसी मगर हमसे पर्दादारी है नहीं।।

पारखी उससे बड़ा जौहरी भलाऔर कौन होगा।
चुन लिया मुझ सा संगदिल तो कहीं ऐतराज है नहीं।।

सांस लेते छोड़ते हैं हम कितने बेपरवाह होकर।
चैन की सांस मगर वो हमारे लिए लेता है नहीं।।

हर दिन न जाने कितनी बार वह इनायत करता है।
मगर एहसान फरामोश हमसे शुक्रिया निकलता है नहीं।।

"उस्ताद"जानता है वो बात हम सबके दिलों की।
लेने में मजा पर चुपचाप उसका कोई सानी है नहीं।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 24 November 2017

आजादी अभिव्यक्ति की

आजादी अभिव्यक्ति देखिए किस हद तक हो गई
बेटा बाप से पूछता मंजूरी बिना मेरी पैदाइश क्यों हो गई।

आंखों में प्यार देखा जब उसके लिए बेइंतिहा चाल उल्टी ग्रहों की भी सीधी,मनमुताबिक हो गई।

राजनीति की बिसात पर लीक शुरू से यही है चली।
राजा वजीर दोनों तरफ मिले हुए पैदल पर मार हो गई।

खुद तो चले नहीं अमनो अमल की राह पर कभी
दूसरों को देने की मगर नसीहत अब आम हो गई।

हर तरफ जलवों का चर्चा उसका है खूब छाया हुआ
कहां और कोई दिल उतरता जब नजरें चार  हो गई।

रंजोगम कुछ इस कदर नासूर बन दिल घर कर गए
जिंदगी से दो हाथ बढकर मौत उसे प्यारी हो गई।

अन्टी में दबा कर लो रख चाहे पसीने की कमाई सब मेरी।
मगर देखना एक दिन तुम कहोगे आह भारी हो गई।

"उस्ताद"मौजे दरिया बहती बेहिसाब हर दिन हर घड़ी
डूबा जो यहां अवसाद,तकलीफ सब काफूर हो गई।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 23 November 2017

गजल-96 अकीदा उस्ताद जब हुआ

उसके साथ का असर जब हुआ।
पानी शराब खूब,तो तब हुआ।।

दूर जाकर खोजना क्यों जरूरी।
पता कस्तूरी का अपनी जब हुआ।।

असर नोटबंदी का ऐसा दिखा।
डिजिटल हर कोई यहां अब हुआ।।

कुछ हो ना हो जीएसटी के चलते।
टैक्सेशन दायरा एक सब हुआ।।

आंखों में तिरे अनगिनत ख्वाब।
जवाब हां उसका जो लब हुआ।।

फूल ही फूल कांटों में दिखे।
इश्के नशा तारी अजब हुआ।।

उठ गया ईमान से यकीं मेरा।
दोस्त बना कातिल ये सबब हुआ।।

मर्ज रूहानी ठीक होने लगा।
अकीदा"उस्ताद"जबसे रब हुआ।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 21 November 2017

हलाहल पीता है

भ्रम में भी जीना पड़ता है
झूठ को सच कहना पड़ता है।
पूछे कोई हाल तो अपना
हंसना हमको पड़ता है।
ख्वाबों को रंगने के खातिर
कितना कुछ सहना पड़ता है।
भटके जंगल,पवॆत,दरिया
वो तो पर भीतर मिलता है।
देख किसी की रोनी सूरत
भीतर कुछ रिसने लगता है।
अंतर्मन उसमें लग जाए
खिला"नलिन"सा लगता है।
जीने को दो बूंद जिंदगी
"उस्ताद"हलाहल पीता है।

दो कदम बढाने में हजॆ क्या

पहल कर आगे दो कदम बढ़ाने में मगर हर्ज़ क्या
पौंछ उसके आंसू साथ निभाने में मगर हर्ज़ क्या।

अच्छा है चूम रहे हो नित नए आसमान तुम
फूले फले दरख़्त सा झुकने में मगर हर्ज़ क्या।

माना नक्कारख़ाने आवाज तूती की रहती अनसुनी
पुरज़ोर एक बार ताकत लगाने में मगर हर्ज़ क्या।

समीकरण बैठा,जोड़-तोड़ बहुत खोया,पाया कहाँ
बांध मस्तूल,पाल उसका कश्ती खेने में मगर हर्ज़ क्या।

नेट पैक है पूरा पड़ा, पॉवर बैंक से भी तू जुड़ा हुआ
दरिया-ए-वेबसाइट खुदा की डूबने में मगर हजॆ क्या

भरने को ऊॅची उड़ान माना तेरी कूवत है नहीं
जिस हाल हो उस हाल मुस्काने में मगर हजॆ क्या।

दूर से दिखता हो "उस्ताद" चाहे रूखा सा सही
पास आकर उसे आजमाने में मगर हर्ज़ क्या। 

Monday, 20 November 2017

खिल नलिन सा जाया करो

तुम बात न चाहे मुझसे किया करो।
खुद से कुछ बातें किया करो।।
मिलते हो क्यों बस दूर-दूर से
घर भी कभी आ जाया करो।।
बहुतहै मुश्किल जीना अब तो।
हर सांस मगर भिड़ जाया करो।।
ग्रह सारे जब वक्री चाल चलें।
भजन-यजन कुछ किया करो।।
आगाज हुआ स्वच्छ भारत का जो।
अब मिल जुल इसे निभाया करो।।
माना पंक हृदय बहुत हो रहा।
खिल"नलिन"सा जाया करो।।
जात -पात"उस्ताद"अब छोड़ो।
सब को गले लगाया करो।।
@नलिन #उस्ताद

Sunday, 19 November 2017

यूं तो जो होना है वही होना है

यूं तो जो होना है,वही होना है
क्या पता कुछ करें,तब होना है।

धूप,बरसात मजदूर गीत गाता
महल में उसे पर,परेशां होना है।

जब तक रहो,सेतते सपने रहो
मरना,जीना यूॅ होना ही होना है।

वो छूते ही तुझे बना देता है सोना
पारस को मगर कहाॅ कुछ होना है।

गुनी वो बड़ा,बनता है तभी
रियाज जब हर घड़ी होना है।

जाना था कहाॅ,पहुॅचे कहाॅ
मय पी यही तो होना है।

ऑखों में सपना,दिलों में तूफाॅ
जवानी में यही तो होना है।

चूमो बुलन्दियाॅ,लाख आसमाॅ की
जमीं में मगर पाॅव होना है।

इकबाल बुलन्द चाहा था कभी
जाना उसे तो फानी ही होना है।

भीतर तुझे जो तुझको दिखा दे
"उस्ताद"तेरा वही तो होना है।

@नलिन #उस्ताद

खुद को तराशना

बाहों में भर उसे हमनशीं बनाने से क्या होगा।
बटोरने मोती अपने समंदर तूझे डूबना होगा।।

फितरत समझना मेरी बच्चों का कोई खेल नहीं।
डूब के मुझमें तुझे खुद को मिटाना होगा।।

दोस्त,दुश्मन के खाचों से अलग हटकर।
अपना चेहरा सबमें खुद तलाशना होगा।।

रोशनी दिखेगी नहीं ऐसे कभी परवरदिगार की।
"उस्ताद"आंखों में खुद को खुद से तराशना होगा।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 17 November 2017

म्यान में पड़ी रहने दो शमशीर मेरी

म्यान ही में पड़ी रहने दो शमशीर मेरी तो अच्छा है।
असूल मेरा बुरों के लिए बुरा मगर अच्छों के लिए तो अच्छा है।।

फूलों को खिलने दो बेदाग बिना किसी भेदभाव ए बागवां।
जंगल का कानून तुम्हें न सिखाएं मजलूम तो अच्छा है।

चीखिए,चिल्लाईए या कुछ और आप कीजिए पूरे जोश से।
नक्कारखाने में तूती की आवाज भी अब बुलन्द हो तो अच्छा है।।

रहता जहां भी हो परवरदिगार तुझे है क्या करना भला।
मोहल्ले में तेरे न सोए कोई खाली पेट बस जान ले तो अच्छा है।

सांसों में बहता जहर,आंखों में हैवानियत और दिल में फफूंद।
हालात अभी भी सुधार ले घर के अपने तो अच्छा है।।
 
माना रंगबाजी बहुत है तेरी पैदल दो कदम भी न चलने की।
वर्जिश भी कर ले सेहत को अगर सुबह या शाम तो अच्छा है।।

सहकर अथाह पीड़ाजो जनती,पालती,पोसती तुझे बड़े एहतराम से।
सवाब पर काश तू भी"उस्ताद"उसके सजदा नवाजे तो अच्छा है।।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 16 November 2017

गजल-75: कुछ कह रहे

कुछ कह रहे मरहूम शायरे हस्ती का दीवान  मिल गया।
तो कहते हैं कुछ इसे जज्बाए उनमानो उफान मिल गया।।

दरअसल लिखना पढ़ना मुझसा नादान क्या हिमाकत करता।
वो तो कागज,कलम,इजहारे सिलसिले का  वरदान मिल गया।।

बच्चों के साथ बच्चा और बूढों के साथ बूढा बनकर जो रहा।
जीने का जीवन उसे असल नुस्खा बैठे-बिठाए आसान मिल गया।।

बादल,चांद,सितारे,शबनम,तितली जो भी हैं कायनात में।
लगता है सब दिल को अजीज जो महबूबे
अरमान मिल गया।।

पीना चाहता था मय दुनियावी चाररोजा कभी गुलाबी।
फजले खुदा मौज का सदाबहार दिल ही समाधान मिल गया।।

बड़े दरख़्तों की छांव यूॅ तो पनपने देती नहीं छोटी पौध। 
नाचीज मगर चूमता बुलंदियां जो "उस्ताद"ए सुजान मिल गया।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 14 November 2017

समंदर की मानिंद

समंदर की मानिंद चुपचाप मैं तो बस बह रहा था।
लहरों की कुलाॅचों  का जरा भी ना मुझे इल्म रहा था।।

वो कहता है तो सही होगा,वो आलिम- फाजिल जो ठहरा।
उंगलियां पकड़कर नन्हीं मेरी,वो ही तो चल रहा था।।

वाह री दुनिया के खुदा और वाह रे मेरे अपने चश्म-ए-बद्दूर।
बहुत शुक्रिया तेरी वजह से मुझे खुद का दीदार हो रहा था।।

मुश्किलें,कठिनाइयां,राह में कैसे लगती हैं  ठोकरें क्या कहूं।
मुझे कुछ मालूम नहीं मैं तो उसकी गोदी बस घूम रहा था।।

रोशनी ही रोशनी हर तरफ बिखरी है मेरे "उस्ताद" की।
अंधेरों की बात तो कोई जाहिल पानी में लिख रहा था।।

@नलिन #उस्ताद

बहुत जरूरी है

लिखना,पढना दरअसल कहाँ जरुरी है
नज़रें उससे मिला के चलना बड़ा जरूरी है।

हसरतों की क्या बात करें वो न खत्म होंगी कभी
हर हाल सुकूने दिल रखना बड़ा जरूरी है।

नफरत हिंसा से तौबा करने की ख़ातिर  
प्यार लुटाते जग में रहना बड़ा जरूरी है।

जानते हैं परिन्दे भी बखूबी अपना भला बुरा
नादानी से इंसा तुझको निजात बड़ा जरूरी है।

देवों की इबादत उन जैसा बनने की खातिर
जुबाॅ सीखना उनकी जैसी हमको बड़ा जरूरी है।

दरिया आए प्यास बुझाने खुद से तेरी
हुनर ये भी आना "उस्ताद" बड़ा जरूरी है।

बाल दिवस पर

बाल दिवस पर सभी को बधाई देते हुए गुलाटी मारती हुई एक ग़ज़ल:
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अपने भीतर बच्चे को जगाते रहिए
खुद को भी लोरियां सुनाते रहिए।

कागज की कश्ती बरसात में तैराकर 
सैर में बचपन की जाते रहिए।

चूं-चूं करते परिंदों का मधुर कलरव
साथ हॅस बोल गुनगुनाते रहिए।

कैरम,ताश,पतंग,कंचे,लूडो कुछ भी
पुराने शौक खुद को खिलाते रहिए।

हंसी-ठट्टा,वही मौज-मस्ती,छीना-झपटी
बच्चे बन आप ही इतराते रहिए।

गुलाटी मार,नाज-नखरा दिखाकर कभी
धींगामुश्ती,धूप-बरसात दिखाते रहिए।

"उस्ताद"बहुत आलिम बन क्या करोगे
हरकतें बचकानी दोहराते रहिए।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 13 November 2017

गजल-74: जूझ कर जो

जूझ कर जो रास्ता खुद का बनाता नहीं है। 
कहलाने का हक उसे आदम सुहाता नहीं है।।

घूम लो चाहे तुम दुनिया-जहां ये सारी।
घर सा सुकून कहीं कोई पाता नहीं है।।
 
लिखने-पढ़ने से हुआ है किसका भला।
खुद से वो जब तक दिल लगाता नहीं है।।

सजदे कर लो चौखट पर तीरथ के जितने।
मां-बाप से बढ़कर कोई दाता नहीं है।।

मददगार हैं सभी के यूं कोई ना कोई।
हमदर्द मगर पड़ोसी सा नाता नहीं है।।

नजरों से जमके जब से पीने लगा हूं नशा।
साकिया पास जाने का गम सताता नहीं है।।

कहने को है अच्छा नेकी करो,बदी ना करो। 
यूं गलत-सही सा कुछ जमाखाता नहीं है।।

तराशता है शागिर्द को अपने से बढकर जो।
"उस्ताद" सा विरला कोई नजर आता नहीं है।।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 12 November 2017

सब सराकोर आपका

कैसे करूं मैं आभार आपका
जो कुछ मेरा वो प्यार आपका।

बहुत अभी कुछ बाकी मिलना
रहे जो साथ दुलार आपका।

दूर पड़ाव अभी बहुत है आगे
पर ना डरता रजाकार# आपका। #वालंटियर

कहो भला हम क्यों घबराएं
जब तक खुला भंडार आपका।

बेखौफ छोड़ा मंझधार"उस्ताद"को
जब जाना सब सरोकार आपका।

Saturday, 11 November 2017

कूकते फिरती

सहज आनंद में रहूॅ बस,यही एक चाह मेरी
रोम-रोम थिरके मेरा,तान छेड़ूं आशा भरी।
ता थेई,थेई तत् , ता थेई,थेई तत् ,हर घड़ी
कदम रुकें,चलें हर लय ताल सही,हर घड़ी। इंद्रधनुष हो परिधान मेरा, फिरूॅ बन तितली चूम आकाश सुधा रश्मियों संग पेंग भर ली।
मूलाधार से सहस्रार तक समस्त सप्तलोक की
हर दहलीज,आंगन पर उकेर दूॅ महावर पांव की।
बसंत बहार बहती, मृगलोचनी ने खोज ली कस्तूरी अपनी
इस डाल से उस डाल फिर,कूकते फिरती अब अपनी।

दःखती रग हाथ मेरी

दुःखती रग हाथ मेरी रखता क्यों है
जान कर हाल मेरा चिढाता क्यों है।

सब जान गए जब उसकी हकीकत
ढोंग भला नेकी का करता क्यों है।

बना रेत में वो ताजमहल
व्यथॆ गाल बजाता क्यों है।

पेड़ सभी हरे-भरे काट कर
मुॅह में मास्क लगाता क्यों है।

इज्जत जो मां बहनों की लूटे
भला इबादत करता क्यों है।

जन-मन के सब भुला के मुद्दे
खबरें भद्दी दिखलाता क्यों है।

जैसा जो है सच कहने पर
मुझसे मुहॅ फुलाता क्यों है।

नकल असल जो भेद ना जाने
"उस्ताद"भला कहलाता क्यों है।

Wednesday, 8 November 2017

चौखट पर खुदा की आंसू बहाना चाहिए।

चौखट पर खुदा की आंसू बहाना चाहिए। वरना तो सारे चुपचाप पीने चाहिए।।

तलवे चाट सकते हो बुलंदी चूमने को तुम।
या की जूझ कर शिखर गढने चाहिए।।

कमी निकालो तो निकाल सकते हजार हो।
रहने को खुश मगर कहां पैमाने चाहिए।।

घुट-घुट जियोगे कब तलक बताओ जरा।
रागे बहार कभी वक़्त बेवक्त गाने चाहिए।।

यह भी चाहिए वह भी चाहिए छोड़कर।
कुछ तो कदम रुहानी भरने चाहिए।।

तंगहाली भला कैसे मने"उस्ताद"होली मिलन।
भीतर कहीं जज़्बाते रंग तो होने चाहिए।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 7 November 2017

कोई तो है जो मेरे भीतर ही रहता

कोई तो है जो मेरे भीतर ही रहता ।
हंसता मुस्कुराता,दिन भर नाचता रहता।। भीषण मेरे अंतर जो चक्रवात चलता।
प्यार से ले गोदी में सिर, शांत करता।।
पहले तो मैं अनमनाता,भाव नहीं देता।
खीज,क्षोभ,गुस्सा सब उस पर दिखलाता।।
पर जाने वह क्या चुपचाप ऐसा जादू चलाता। पल भर में जिससे सब कुछ मैं भूल जाता।।
वह मुझे गले लगा फिर और जोर से हंसता।
बात- बेबात में भी तब खिलखिलाने लगता।।
इस तरह से एक दिन और बीत जाता। क्षणभर सही आत्म साक्षात्कार हो जाता।।
@नलिन #तारकेश

Monday, 6 November 2017

गजल-85 #खिचड़ी

हर तरफ पक रही अलग-अलग सबकी खिचड़ी।
पप्पू की जरा भी मगर नहीं पकी खिचड़ी।।

तबीयत माशाअल्लाह वो ही जोशे जवानी।
रंगत चाहे बाल की हो तो हो बाकी खिचड़ी।।

यूं तो है मुफीद बड़ी सेहत को ये सब के लिए।
जायका मगर करती बेस्वाद अधपकी खिचड़ी।।

खाने को छप्पन भोग यूं तो मिलते रहे यहां।
दुनियां में सारी अब तो छा गयी बांकी खिचड़ी।।

दही,मूली,घी,अचार संग छनती है यारी।
है साथ इनके तो जुबां में जा चिपकी खिचड़ी।।

दाल,चावल सब पसन्द का अपना मिलाकर।
आज हम सबने खूब मेल से छकी खिचड़ी।।

खानी तो पड़ेगी अब तुम्हें भी "उस्ताद"जी।
ऐसी आसां बड़ी है बनाना हलकी खिचड़ी।।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 5 November 2017

संस्कृत उक्तियों से सजी गजल


प्रस्तुत रचना  भी एक नवीन प्रयोग है जिस में संस्कृत की उक्तियों को लेकर के ग़ज़ल लिखी गई है।  इसमें "अति भक्ति चोर लक्षणं" का अर्थ है कि जो लोग ज्यादा प्रेम भाव दिखाते हैं या ज्यादा आपके साथ सेवा करने का नाटक करते हैं वह आप को ठगते हैं। "शठे शाठ्यम "का अर्थ है कि जो नालायक है उसके साथ नालायकी करना ही अच्छा है। :मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना" का अर्थ है व्यक्ति व्यक्ति की सोच अलग-अलग होती है। "अति सर्वत्र वर्जयेत" का अर्थ है कि किसी भी चीज की अति को रोकना चाहिए। "रत्नं रत्नेन संगच्छते"का आशय है कि एक जैसी विचारधारा के लोग एक साथ चलना पसंद करते हैं और "देवं भवेत् देवं यजेत" का अर्थ है कि देवता होकर के देवताओं की पूजा करनी चाहिए।"सत्यम शिवम सुंदरम" एक कल्याणकारी वाक्य है जिससे हम सब सुपरिचित हैं और  "वसुधैव कुटुंबकम" का अर्थ है पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है। "संशयात्मा विनश्यति" जिसने संशय किया वह नष्ट हो जाता है।"विश्वास फलति सर्वत्र" यानी कि विश्वास जो है वह हर जगह  काम करता है।"पत्नी मनोरमां देहि" का अर्थ है मन के अनुसार चलने वाली पत्नी हमें मिले, ऐसी भावना और "मधुरेण समापयेत" का अर्थ है मिठास के साथ जिसका अंत हो।
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"अति भक्ति चोर लक्षणम्" हमें खूब है सिखाया भला।
सो"शठे शाठ्यम"सबक इन को सिखाना भला।।

"मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना"यह बात जगजाहिर तो है।
"अति सर्वत्र वजॆयेत"पर इसे भी सोच रखना भला।।

"रत्नं रत्नेन संगच्छते"बहुत सच है हमने पढा।
"देवं भवेत् देवं यजेत" तभी जग कहता भला।।

"सत्यम शिवम सुंदरम"भी है नजरिया  कमाल का।
दिखता"वसुधैव कुटुंबकम"में यह सच्चा भला।।

मोर मुकुट वाला कहता हमसे"संशयात्मा विनश्यति"।
अतः"विश्वासं फलति सर्वत्र"है स्वीकारना भला।।

"पत्नीं मनोरमां देहि"गुहार पर"उस्ताद" की।
बोला खुदा "मधुरेण समापयेत"खातिर तेरा सोचा भला।।

@नलिन #उस्ताद

Saturday, 4 November 2017

सौ सुनार की

एक अन्य नया प्रयास है जिसमें हिंदी के मुहावरे और लोकोक्तियों के माध्यम से गजल कही गई है:

अन्धों के हाथ बटेर भी क्या खूब लग रहे। अंधो में काने राजा ही अब आलिम लग रहे।।

आग लगने पर खोदना कुआं आदत रही जिनकी।
का वर्षा जब कृषि सुखाने का फल भोग रहे।।

आकाश से गिर कर खजूर पर अटक गए जो।
हाल बेहाल उनके सांप छछुंदर की गति से लग रहे।।

नाच न जाने तो आंगन टेढ़ा  लगेगा ही उसे।
भला हाथ कंगन को आरसी क्या लग रहे।।

जिन ढूंढा तिन पाइंयाॅ गहरे पानी पैठ कर। नानक नाम जहाज चढ़ वो उतर पार लग रहे।।

आए थे हरि भजन और  ओटने कपास लगे। चिड़िया चुग गई खेत उनके हाल लग रहे हैं।।

सौ सुनार की एक लोहार की चोट करता है। खुदा के आगे"उस्ताद"सब तो बौने लग रहे।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 3 November 2017

कस्तूरी भीतर महकाया करो

कस्तूरी भीतर महकाया करो।
इत्र फुलेल न लगाया करो।

गिड़गिड़ाने से भला क्या फायदा
खुद से राह बनाया करो।

हकीकत टूट जाए तो भी कभी
ख्वाब कुछ तो बचाया करो।

टकटकी लगा दूसरों को क्यों बाॅचना
नजीर खुद ही कभी बन जाया करो।

कुछ देर खुद में डूब कर जरा 
तुम राम-राम गाया करो।

गाली भी अपने"उस्ताद"की
गले तो खूब लगाया करो।

#नलिन #उस्ताद

Thursday, 2 November 2017

सूरज,चाॅद, सितारे ---

प्रस्तुत है एक नई रचना जो ज्योतिष विषय पर आधारित है
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ब्रह्मांड में जो सूरज चांद सितारे देखते रहते हैं।
वो तेरे एक-एक करम का नगद हिसाब रखते हैं।।

सूरज-आत्मा,चांद-मन,बुध-बुद्धि,भौम-ताकत तो गुरु-ज्ञान से।
वहीं शुक्र-विलास,शनि-कर्म तो प्रारब्ध को राहु-केतु बांचते हैं।।

दरअसल इनका वजूद इतना ही है कि ये हैं अईना बस।
शक्ल दुरुस्त कर लें अगर कर्म की तो हमें चैन देते हैं।।

साढ़ेसाती तो आती है जीवन में हर किसी के कभी न कभी।
कर्मयोगी हर मुश्किल से मगर हर हाल में उबर जाते हैं।।

राजयोग या जन्म से ही जो विलक्षण रखते हैं प्रतिभा।
दान अपनी कीमती वसीयत पहले जन्मों की करके आते हैं।।

कर्म किया अगर आसक्त हो कर तो फल भी भुगतना पड़ेगा।
हाॅ उदासीन होने पर"उस्ताद" वह भी मौन, निष्क्रिय रहते हैं।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 1 November 2017

गजल-93 रागों से सजी गजल

"भैरवी"जब झूमकर"मालकौंस"गाने लगी
"बसंत""बहार"सबके दिलों में छाने लगी।

"मेघ मल्हार"गाने लगे सब उमड़-घुमड़ के
"श्याम"संग राधा"चारुकेशी""हिंडोल"झूमाने लगी।

जो है "भवानी""शिवरंजनी"मूरत"शुद्ध कल्याण" की
"श्री""सरस्वती"उसका गुणगान कर भाव"सिंधु"डूबाने लगी।

अपने भीतर "हंसध्वनी" सुन ली जब "नारायणी"
"बैरागी"मस्ती दिलो-दिमाग "उस्ताद" छाने लगी ।

एक प्रयोग के तौर पर यह रचना संगीत के रागों को लेकर की गई है जिसमें "  "में रागों के नाम उल्लेखित हैं।

कत्ल में साजिश हो रही

तंगहाली पहनना चीथड़े मजबूरी रही उसकी
ब्रांडेड तन उधेडू कपड़ो में अमीरी रही उसकी।

पतलून कसी हो अगर इज़ारबंद क्या चाहिए कहो
है खुद को दिखाना आईना फ़ितरत रही उसकी।

ख़्वाब का भी ख़्वाब हो हकीकत पर जब भारी
मुर्दों सी  साँस भरना मजबूरी  रही उसकी।

मिठास बहुत घोली हाव-भाव,जुबां और आँख में
मगर डीएनए साफ़ गद्दारी झलकती रही उसकी।

सजदा जो न कर सके क़ौमी तराने पर कुछ देर को
मादरे वतन पर सोच बहुत काली रही उसकी।

"उस्ताद"हाथ उसके निवाला कहाँ पचा पाओगे तुम
जाने किस किस के क़त्ल में साज़िश रही उसकी।