Thursday, 31 July 2014

पहाड़ी व्यंग -5
















हम पहाडीन के अपुण सीधाई मार गई
सरकार जे ले बड़ी,सुधि बिसरि गई।
यू.पी,यू.के ज्येक ईजा-च्योल जे रिश्त छी                    
उनर बीच एक भल ट्रैन चलूंण में हाड़ काँप गई।
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ओल्ड इज गोल्ड अब जाओ भुल

 कबाड़ में बेच दियो बडबाजु माल फुल
                            
 कबाड़ी जब बेच देओल ऊके मॉलन में

 खरीदिया एंटीक पे दुगण दामन में।
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ठुल धोती,नान धोती को पुछड़ों यार

गाड़ में नंग छन सब मौ-परिवार

कोई दहेजा लिजी छोड़ दिनों अपुडी लुगाई                                                
कोई अपुण खसम दगड करणे बेवफाई।
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यसी कुनि  कान थें के नी सुणी

कान हमार पट्ट बंद है गयीं

उसी फुसफुशाट अपुण कामेकी

चट्ट सुन लीनी हमर यो बुड-बुडी।
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आध राति छौल बने हालो
                                                                               
हमनके कलियुगेल पुर

खाणोक,सितोड़क  मन मर्जी हेरे

बाबू दगड घुटक लगुड़ों च्योल फुल।
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सेंडी बेग झगौड़ में

को फोड़ल अपुण कपाल

दिन में तना-तनी करणी

राती लगुनी एक दुहर के अंगुवार।   

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