Wednesday, 2 July 2014

लघुकथा -7

स्वार्थ 

उनकी आत्मीयता से भरी वाणी ,सबके प्रति शिष्टता पूर्ण आचरण फिर वह छोटा हो या बड़ा। जहाँ भी मिलना  बड़े प्रेम और अपनत्व से मिलना। अपरचित से भी अपरचित को अपना बना लेने वाली मोहक मुस्कान।  पहली ही नजर में बिना  किसी के बताये उनमें आप यह गुण सहज देख सकते हैं। वहीँ दूसरों की सहायता हेतु अपना जरूरी काम छोड़ कर भी चल देना उनके व्यक्तित्व का ऐसा उज्जवल पक्ष रहा की मैं रोमांच से अभिभूत उनसे ही पूछ बैठा ,बंधुवर आप अपनी इतनी व्यस्तता के बावजूद  दूसरो की छोटी-छोटी  दिक़्क़तों के लिए आखिर क्यों दौड़े-दौड़े  चले आते हैं। उन्होंने सहज हो कहा,"स्वार्थ"। मैंने कहा मैं  समझा नहीं,इसमें आपका क्या स्वार्थ छुपा है। तो जो उत्तर उन्होंने दिया उसे सुन मैं उनके प्रति नतमस्तक हो गया। उन्होंने  कहा,"न जाने किस वेष में नारायण मिल जाएँ "।

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