Tuesday, 15 July 2014

लघुकथा -10





ब्रहमास्त्र  

उनका सुपुत्र उच्च पदासीन हुआ तो बस उनकी बाँछे खिल गयीं। तुरंत पड़ोस की माता जी को पकड़ लिया और व्यंग बाण कसने लगीं क्योंकि उनका बेटा बहुत मामूली सी नौकरी कर रहा था।  माता जी बड़ी घाघ थीं। आसानी से हार कहाँ मानती,जानती थीं कि उसके पति की पेंशन उनके पति की अपेक्षा बहुत कम है। अतः ब्रह्मास्त्र साधते हुए बोलीं अरे बहन!आजकल के बेटों की नौकरी से हम लोगों को क्या करना?शादी हुई नहीं बन गए जोरू के गुलाम। हमें तो मतलब होता है अपने मरद की कमाई से। इन्हें तो करीब दस हजार से ऊपर मिल ही जाती है पेंशन। वैसे तुम्हारे उनको कितनी मिलती होगी बहन?पांच हजार तक तो हो ही गयी होगी न अब तक तो। 

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