Monday, 7 July 2014

लघुकथा -9

नास्तिक या आस्तिक 

अरे यार !मैं ईश्वर वगैरा में विश्वास नहीं करता  हूँ  ये सब चोंचलेबाजी है और कुछ नहीं। पैसा कमाने के धंदे हैं ये सब। कोई ऐसे करता है तो कोई वैसे। मठाधीशों की अपनी सुविधाओं  के ये सब मकड़-जाल हैं। मैं इन सब के चक्कर में नहीं पड़ता। मैं तो नास्तिक हूं ,कट्टर नास्तिक।वो अनवरत चालू थे।  दरअसल उनका मुंहफट और अक्खड़ स्वाभाव था ,पर दिल के बड़े ही उदार और सबके काम में  बिना एक पल की देर किये अपने पारिवारिक सदस्य की तरह मदद को प्रस्तुत रहते। मैं उनसे कहना चाहता था लेकिन छोटे मुंह बड़ी बात समझते हुए नहीं कहा की,आदरणीय चाहे बहुतेरे लोग न मानें  पर मुझे तो यकीं है की आप जैसे नास्तिक लोग दरअसल सच्चे आस्तिक ही हैं।    

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