Saturday, 29 June 2024

६३९: ग़ज़ल: बेवजह भी कभी कभार मुस्कुराया कीजिए

बेवजह भी कभी कभार मुस्कुराया कीजिए। 
दो दिन की जिंदगी,इतना न रूठा कीजिए।।

वो बेवफा अगर है तो ये उसकी फितरत है।
हर वक्त क्यों ऐसों की खातिर रोया कीजिए।।

देखिए एक फुहार से ही मिजाज बदल गया सारा।
कभी तो जा बैठ खुले आकाश में भीगा कीजिए।।

बड़ी दूर से मिलने की खातिर आए हैं आपसे हम। 
अब छोड़ रोना-गाना,मिज़ाज-पुर्सी जरा कीजिए।।

समंदर में लहरें मचलती हैं एक नहीं हजारों-हजार।
हर लहर को "उस्ताद" बस चुपचाप देखा कीजिए।।

नलिन "उस्ताद"

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