Friday, 28 June 2024

६३७: ग़ज़ल: राहे वफा में बहुत दूर तो हम आ गए

राहे वफ़ा में बहुत दूर तो हम आ गए।
सिवा जफ़ा के मगर कुछ न पा सके।।

महफिल में उनकी हमारी पहुंच हो कहां।
बड़े बेआबरू वो चौखट से निकाल दिए।।

काले घने बादल तो घिरे उम्मीद बनकर ।
बरसने को मगर कौन उन्हें मजबूर करे।।

नूरानी चेहरा जेहन में आ जाता है उनका।
समझ न आए भुलाएं भला तो क्यों,कैसे।।

हर गली,हर शहर में चर्चा था उनका।
अपने ही घर "उस्ताद" अनजाने रहे।।

नलिन "उस्ताद"

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