Thursday, 13 June 2024

626: ग़ज़ल: दर्द कूची में भरकर

दर्द कूची में भरकर रंग दी उसने कायनात सारी।
छा गई मगर उम्मीद ए रोशनी ये गजब जादूगरी।।

महफ़िल सजी थी खैरमकदम को उसकी खातिर।
वो तो मशगूल मिली ग़म की तुरपाई में किसी की।।

असल में उसमें‌ है हुनर आंसूओं को मोती बनाने का।
ग़ौर से देखना तभी हैं आंखें उसकी डबडबाती रहती।।

मौत आ जाएगी अगर मेरे बाद तो उसका क्या होगा।
इन‌ सवालों में सिर खपाने से कुछ होना-हवाना नहीं।

चन्द लम्हे मिले हैं खुदा के फ़ज़ल से जीने की खातिर।
"उस्ताद" आओ गुजारें उन्हें संग बिंदास फ़ाक़ा-मस्ती।।

नलिन उस्ताद 

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