Saturday, 29 June 2024

६३९: ग़ज़ल: बेवजह भी कभी कभार मुस्कुराया कीजिए

बेवजह भी कभी कभार मुस्कुराया कीजिए। 
दो दिन की जिंदगी,इतना न रूठा कीजिए।।

वो बेवफा अगर है तो ये उसकी फितरत है।
हर वक्त क्यों ऐसों की खातिर रोया कीजिए।।

देखिए एक फुहार से ही मिजाज बदल गया सारा।
कभी तो जा बैठ खुले आकाश में भीगा कीजिए।।

बड़ी दूर से मिलने की खातिर आए हैं आपसे हम। 
अब छोड़ रोना-गाना,मिज़ाज-पुर्सी जरा कीजिए।।

समंदर में लहरें मचलती हैं एक नहीं हजारों-हजार।
हर लहर को "उस्ताद" बस चुपचाप देखा कीजिए।।

नलिन "उस्ताद"

६३८: ग़ज़ल: परवरिश ये कैसी दी हमने

परवरिश ये कैसी दी हमने,लाहौल विला कूवत।
पराए हो गए,हमारे अपने,लाहौल विला कूवत।।

तहज़ीब के खिलाफ हैं जंग छेड़े,हमारे ही नौनिहाल।
लाचारी में हम हैं बस कह रहे,लाहौल विला कूवत।।

बेशर्मी की हदें सब टूट रही हैं इत्मीनान से देखिए।
चारा कुछ है नहीं सो कहिए,लाहौल विला कूवत।।

मुठ्ठी से पारे की तरह फिसल रही है जिंदगी हमारी।
होश मगर आने की फिक्र किसे,लाहौल विला कूवत।। 

हर कोई "उस्ताद" है यहां,आज तो अपने आप में।
समझ न आता,रोएं या हंसे,लाहौल विला कूवत।।

नलिन "उस्ताद"

Friday, 28 June 2024

६३७: ग़ज़ल: राहे वफा में बहुत दूर तो हम आ गए

राहे वफ़ा में बहुत दूर तो हम आ गए।
सिवा जफ़ा के मगर कुछ न पा सके।।

महफिल में उनकी हमारी पहुंच हो कहां।
बड़े बेआबरू वो चौखट से निकाल दिए।।

काले घने बादल तो घिरे उम्मीद बनकर ।
बरसने को मगर कौन उन्हें मजबूर करे।।

नूरानी चेहरा जेहन में आ जाता है उनका।
समझ न आए भुलाएं भला तो क्यों,कैसे।।

हर गली,हर शहर में चर्चा था उनका।
अपने ही घर "उस्ताद" अनजाने रहे।।

नलिन "उस्ताद"

Thursday, 27 June 2024

६३६: ग़ज़ल: इश्क किया कहां वो तो हमें बस हो गया

इश्क किया कहां वो तो हमें बस हो गया।
मिलीं नजरों से नजरें दिल बेबस हो गया।।

हमने पढ़ा ही कहां,कब था इश्क का ककहरा।
एक मुलाकात में महज,ये उसका बस हो गया।।

दुनिया के सरोकार से मतलब कहां फिर रहा।
बादल सा बरसने,मचल ये तो पावस हो गया।।

अब तो उनकी ही निगाह में देख लेते हैं खुद को।
आईना देखें हुए तो जाने कितना बरस हो गया।।

यूं समझाया था,हज़ार बार "उस्ताद" इसे हमने।
इश्क के खेल में ये मगर,कतई परबस हो गया।।

नलिन "उस्ताद" 

Tuesday, 25 June 2024

कौतुक प्रिय बाल गोपाल हमारे

कौतुक प्रिय बाल गोपाल हमारे, करते हैं कौतुक देखो सदा।
देख-देख क्रीडा हम सब उनकी भौंचक बस ले रहे बलईयां।।

कभी घुमाते नयनों को तो कभी छुपाएं पड़ें उनको हाथों से।
हंसने के तो बहुत भाव लेत हैं, हां यदा-कदा दिखा देते दतियां।।

घर बैठे मनोरंजन होए रहा भला और हमें क्या चाहिए भईया।
इनकी विलक्षण लीला देख-देख हम तो निहाल हो रहे दईया।।
🥰🥰🥰🥳
नलिन "उस्ताद"

६३५: ग़ज़ल: वो मेरा नहीं हो सका तो क्या हुआ

वो मेरा नहीं हो सका तो क्या हुआ।
तहे दिल से मैं तो उसका सदा हुआ।।

वैसे दिल से जो चाहो तुम किसी को।
तय है कभी न कभी तो वो तेरा हुआ।।

हर सांस बस उसका नाम जपता रहूं।
हां बस अब यही एक फर्ज मेरा हुआ।।

दूर आखिर कब‌ तलक रहेगा मुझसे।
ख़ालिस प्यार में भला कब ऐसा हुआ।।

"उस्ताद" तुम भला कब से हार मानने लगे। 
रंग निखरेगा वक्त अभी कहां ज्यादा हुआ।।

नलिन "उस्ताद"

Monday, 24 June 2024

६३४:: ग़ज़ल: ऐसा नहीं की जमाने का चलन जानता नहीं

ऐसा नहीं की जमाने का चलन जानता नहीं।
ये अलग बात है कभी मैं उसे जताता नहीं।।

यूं तो ढका-छुपा अब कुछ भी कहां रहता यारब।
रस्म-अदायगी को मगर पर्दादारी से बचता नहीं।।

किस्से तो मेरे पास हज़ार हैं उसकी बेवफाई के। 
पर किसी को कभी बदनाम करना चाहता नहीं।।

तेरे-मेरे किस्से खुशबू की तरह हर जगह महक रहे।
शुक्र मना,इस पर किसी बुरी नज़र का साया नहीं।।

हवा के झौंके उम्मीद तो जता रहे हैं बरसात होगी।
कल पर मगर "उस्ताद" भी कुछ कह सकता नहीं।।

नलिन "उस्ताद" 

६३३: ग़ज़ल: धौल मार कर पीछे से आकर लिपट गया

धौल मारकर पीछे से आकर लिपट गया।
मिलता है कोई आज भी दोस्त ऐसा क्या।।

रिश्तों की वो गज़ब गर्मजोशी क्या कहिए।
हिस्से का जो खाकर मेरा ही गरियाता रहा।।

उकसा के पहले खतरे में झौंक दिया उसने।
फिर बचाने की कवायद करता मुझे दिखा।।

किरदार कैसे-कैसे बनाए हैं उसने गज़ब के।
रकीब भी कभी कभार दिलदार बडा़ मिला।।

"उस्ताद" हो मगर क्या ख़ाक समझो उसे।
पारसा* से ज्यादा काफ़िर का खुदा हुआ।।*आस्तिक 

नलिन "उस्ताद"

६३२: ग़ज़ल: चलो माना तजुर्बा तेरा ही ज्यादा होगा

चलो माना तजुर्बा तेरा ही ज्यादा होगा।
सिक्का तो मगर यार उसका ही चलेगा।।

अंधे शहर में रोशनी किसे चाहिए भला।
हां मुफ्त का माल तो सबको ही पचेगा।।

बेवजह क्यों लगाते हो तोहमत बेचारे पर।
वो तो जिस काम को आया वो ही करेगा।।

कतरा-कतरा सींचा था लहू से वतन को।
अब आप बनकर जोंक वो चूसता रहेगा।।

भला क्यों नहीं बदनाम होंगें "उस्ताद" जी आप।
रकीब संग मिल शागिर्द जो इल्जाम मढ़ेगा।।

नलिन "उस्ताद"

६३१: ग़ज़ल: गजब किरदार है यार मेरा

गजब किरदार है यार मेरा बता हां या नहीं।
ग़ज़ल है उसपर जो कभी उसे पढ़ेगा नहीं।।

राहे उल्फत में कभी ये भी मुकाम है आता।
गिले का सबब जब कुछ भी रह जाता नहीं।।

तेरे बारे में न सोचें तो भला क्या करें बता।
ये माना कभी तू अब मेरा होने वाला नहीं।।

आईना देखकर ये सूरत अपनी संवार लीजिए।
हुजूर बेवजह आप इबादत को दूर जाइए नहीं।।

चलिए ऐसा भी करके देखते हैं आपके हिसाब से।
यूं ज़िन्दगी का गणित "उस्ताद" समझ आता नहीं।।

नलिन "उस्ताद"।

६३०: ग़ज़ल राहे इश्क में रोड़े तो हज़ार मिले

राहे इश्क में रोड़े तो हज़ार मिले।
फिर भी कहां हम बेज़ार दिखे।।

हां जो चलते-चलते कभी थके तो। 
कुछ देर को बस बैठ सुस्ता लिए।।

पेंचोखम तो उनकी जुल्फों में था।
हम तो यूं ही महज़ बदनाम हुए।।

बदनामी की किसे फिकर है आजकल।
मौका मिला बस उसूल दरकिनार किए।।

डगर कहां कब आसान रही ज़िन्दगी।
"उस्ताद" हो ज्यादा हम उलझ गए।।

नलिन "उस्ताद"

Tuesday, 18 June 2024

६२९: ग़ज़ल: गर्म मौसम के मिजाज

गर्म मौसम के मिज़ाज,आजकल अजब-गजब हैं।
डर है गश खाकर गिर न जाएं,सूखे हमारे लब हैं।।

हमारी ही की गई,ये सारी कारिस्तानी है हुज़ूरे आला।
तो भला अब क्यों चीखते,बचाओ कहां हमारे रब हैं।।

हाथ पर हाथ धरे बस बैठे हुए,बेफिक्र बतकही कर रहे।
गर्मा रहे मिज़ाज ए मौसम पर,क्यों ख़ामोश बेसबब हैं।।

इल्जाम मढ़ना तो आसान है,हुकूमत पर कोई भी कभी।
जम्हूरियत बचाने पर क्यों नहीं,वोट डालने जाते सब हैं।।

चाहो या न चाहो,हालात बन रहे हैं,निर्जला एकादशी के।
आंखों का पानी तो छोड़ो,जलाशय भी सारे,सूखे अब हैं।।

राधा-किशन के करिश्मे,अब दिखाई देंगे कैसे "उस्ताद"।
बताइए तो जरा कितने महफूज़ रखे दरख़्ते कदम्ब* हैं।।

*श्री कृष्ण का प्रिय पेड़ जिस पर बैठ बांसुरी बजाते हैं 

नलिन "उस्ताद" 

Monday, 17 June 2024

628: ग़ज़ल: फिजाओं में आज अलग एक

फिजाओं में आज अलग एक सुगबुगाहट भरी थी।
दिले अजीज से मिलेंगे हमें ये बेकरारी हो रही थी।।

वो न आए आखिर,मगर अच्छा बहाना बना दिया।
ठगे रह गए,वफा की उनसे उम्मीद ही बेमानी थी।।

दिख तो गए आज इत्तेफाक से वो हमें राह चलते हुए।
मगर मिलते भला क्यों,तकदीर ही जब राजी नहीं थी।।

रहेंगे हम बड़े सुकून से कुदरत की जुल्फ़ें संवारते हुए।
भूल गए मगर देखभाल भी उसकी करनी जरूरी थी।।

"उस्ताद" से भी खेल कर जाते हैं बड़ी मासूमियत से वो।
उसपे तुर्रा ये भी कि ज़िन्दगी ही‌ हमें धोखे‌‌ देती रही थी।।

नलिन "उस्ताद" 

Thursday, 13 June 2024

627: ग़ज़ल: प्यार का ककहरा

भला कौन किसके संग दफन हो सका।
रिश्ता तो रूह का ही ता-उम्र बना रहा।।

प्यार जिसने भी किया महज़ जिस्म से।
उसे निभाना ये सौदा बड़ा महंगा पड़ा।। 

खुशबू निगाह से जब तलक छलके नहीं।
मोहब्बत को तुमने असल ज़िया ही कहां।।

कशिश रूहानी बच्चों का कोई खेल नहीं। 
जो पड़ा मरना तो भी वो गहरे डूबता रहा।।

"उस्ताद" जाने कितने जन्मों से की थी शागिर्दी।
आलिम हुए,पर सीख न सके प्यार का ककहरा।।

नलिन "उस्ताद"

626: ग़ज़ल: दर्द कूची में भरकर

दर्द कूची में भरकर रंग दी उसने कायनात सारी।
छा गई मगर उम्मीद ए रोशनी ये गजब जादूगरी।।

महफ़िल सजी थी खैरमकदम को उसकी खातिर।
वो तो मशगूल मिली ग़म की तुरपाई में किसी की।।

असल में उसमें‌ है हुनर आंसूओं को मोती बनाने का।
ग़ौर से देखना तभी हैं आंखें उसकी डबडबाती रहती।।

मौत आ जाएगी अगर मेरे बाद तो उसका क्या होगा।
इन‌ सवालों में सिर खपाने से कुछ होना-हवाना नहीं।

चन्द लम्हे मिले हैं खुदा के फ़ज़ल से जीने की खातिर।
"उस्ताद" आओ गुजारें उन्हें संग बिंदास फ़ाक़ा-मस्ती।।

नलिन उस्ताद 

Tuesday, 11 June 2024

625: ग़ज़ल: उसे जब यह पता है मेरे दिल में क्या है

उसे जब ये पता है मेरे दिल में क्या है।
जाने फिर क्यों पूछता मुझसे सदा है।।

दूरियां तो बढ़ी हैं दिलों में तभी अक्सर।
आपसी एतबार जब-जब कम हुआ है।।

बचपन से हुआ है भला कौन मवाली।
ये सब तो बिगड़ी सोहबत ने किया है।।

रास्ते मिलेंगे तो जाकर सब एक ही जगह।
बेमतलब फिर ये क्यों जड़े-फ़साद बना है।।

जिस्म,खूं,रूह से सजे-संवरे हम-तुम तुम सभी।
आखिर किस बात पर "उस्ताद"‌ फासला बढ़ा है।।

नलिन "उस्ताद"‌

Monday, 10 June 2024

६२४: ग़ज़ल : रिमझिम बरसात में

वो मुस्कुरा तो रहा है मेरी हरेक बात में।
क्या मान लूं प्यार है उसके जज़्बात में।।

जेठ की दोपहरी जब वो आया मेरे सामने।
पूनम का चांद निकला जैसे आधी रात में।।

ज़मीं-आसमां का फर्क है जान लीजिए।
उसकी तस्वीर और रूबरू मुलाक़ात में।।

कौन है भला जो पा सका साहिल से मोती।
डूबना पड़े है गहरे यूं मिलती नहीं खैरात में।।

एक उम्र होती है लड़कपन की "उस्ताद" जी।
कागज की नाव तैरती है रिमझिम बरसात में।। 

नलिन "उस्ताद"

Sunday, 9 June 2024

६२३: ग़ज़ल: जीने की कोई वजह

जीने की कोई वज़ह समझ नहीं आ रही जान लीजिए।
खुदा कसम मगर मरने को भी हम तैयार नहीं मानिए।।

जमाने का दस्तूर ही यही है तो कोई क्या करे बताईए।
हर कदम गिरकर,संभल चलने को तैयार रहा कीजिए।।

यह रोजमर्रा की कवायद,खून पसीने को बहाती जिंदगी।
बड़े एहतराम से चाहती है होठों पर आपके हंसी जानिए।।

आप तो माशाअल्लाह कमाल के‌ हैं कोई भला क्या कहे।
खुदा कसम हम न समझ पायेंगे आपको सो‌ रहम करिए।।

क्या कहना चाहते थे और क्या लिख गए "उस्ताद" हम।
बस मज़मून थोड़े से में,इससे ही बरख़ुरदार जान जाइए।।

नलिन "उस्ताद"

Saturday, 8 June 2024

६२२: ग़ज़ल: मुझसे बेहतर

हर हसीन चीज का वो तलबगार सही।
बेवफाई का मुझे है उसकी गिला नहीं।।

मुझसे बेहतर कोई उसे मिल गया होगा।
यही सोच के दिल को दिलाता हूं तसल्ली।। 

जमाने का दस्तूर तो निभाना पड़ता है यारब।
चाहत हर दिल की कब किसकी हुई है पूरी।।

मैंने जब उसको अपना मान लिया है दिल से।
भला वो किसी और की अब कहो कैसे होगी।।

"उस्ताद" हर कोई यहां अपने ही साए में गुम हुआ।
फ़ुरसत किसी को कहां अब दिल लगाने की होती।।

नलिन"उस्ताद"

Tuesday, 4 June 2024

अयोध्या धाम में

पांच दशक पश्चात आ तो गए श्री राम अपने अयोध्या धाम में।
दशानन से मगर इस बार होकर आए पराजित अयोध्या धाम में।।

यहीं एक बार फिर अपनों ने निर्वासित कर दीं अपनी सीता जी। 
लव -कुश ने सुनाई राम कथा किन्तु कान‌ में जूं न रेंगी अयोध्या धाम में।।

रक्त बीज से असुर जन्म ले रहे असंख्य रक्त बहाकर अपना ही।
दशरथ तो लोक-लाज से मर गए यह दृश्य देख अयोध्या धाम में।।

एक बार हो जाएगी पुनः से साकार कल्पना चिरप्रतीक्षित राम राज की।
छिन्न भिन्न हुई मगर यह प्रतिघातों से अपनों के ही अयोध्या धाम में।।

जेठ का ताप उगल रहा है नख से शिख तक आग विनाशकारी बड़ी।
आख़िर राम भी विवश हो जल समाधि ले रहे आज अयोध्या धाम में।।

नलिन पान्डे "तारकेश"

Monday, 3 June 2024

ग़ज़ल ६२१:लोकसभा चुनाव २०२४ परिणाम

मुकाबला के नतीजे तो कल आ ही जाएंगे हुजूर फटाफट।  
देखें फिर भला कौन रहता है हावी और कौन है सफाचट।।

यूं तो सभी सर्वे कर रहे हैं जयघोष मोदी के ही आने का।
अब देखिए 400 पार भी होगा क्या आसानी से सटासट।।

अगर यूं ही रही सर्वे की भविष्यवाणी पूरी तरह सच्ची। गठबंधन फिर भला किस पर फोड़ेगा ठीकरा चटाचट।।

यूं  तो अब हर कोई अपने शगुफे छोड़ने में बड़ा माहिर है। 
आम जनता पर अभिशप्त,भोगती हर बार यही परिशिष्ट।।

"उस्ताद" यूं तो अपना राजनीति से दूर तलक नहीं है वास्ता। 
दिली इच्छा है पर बने वही सरकार जो कभी न हो पथभ्रष्ट।।

नलिन "उस्ताद"