Tuesday 22 August 2023

568: ग़ज़ल: नादानियों का अंजाम

छितरी-बिखरी जुल्फों में राज गहरा छुपा है।
विरह में किसी के करवटों में वक्त गुजरा है।।

परिंदे चहचहाते,खेलते उड़ जाते हैं दूर सहमकर।
लगता है अभी मेरा मैं मुझसे गहरे जुड़ा हुआ है।।

आईना देखा कई बार,पर चेहरा हर बार वही दिखा।
वक्त संग बदलने की फितरत,ये शख्स भूल गया है।। 

कहें तो कैसे कहें और ना कहें तो कैसे ना कहें।
गुत्थियां ये अजीबो-गरीब कौन खोल पाया है।।

सावन में छिटपुट बूंदाबांदी तो हश्र "उस्ताद" सोचो। 
अपनी नादानियों का अंजाम तो हर हाल दिखता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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