Saturday, 19 August 2023

565: ग़ज़ल:खुद को पढना सीखिए

मबहुत सीख लिया है अब कुछ भूलना सीखिए।
पुरानी रूई को यार दिमाग की धुनना छोड़िए।।

रास्तों पर पुराने बार-बार भला क्यों है चल रहे।
नई राहों पर चलने का जनाब हौंसला पालिए।।

हर शख्स परेशान है जाने क्यों अपने आप से ही।
कभी-कभार तो बेवजह भी मुस्कुराया कीजिए।।

सितारे बताते हैं आपका मुस्तकबिल यह भी सही है। 
पर हाथ पर हाथ रख चलेगा कैसे काम जरा सोचिए।।

तनहाई में करवटें बदलते भला क्यों हैं सिसकते रहते।
"उस्ताद" कभी इत्मीनान से खुद को पढ़ना सीखिए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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