Thursday, 10 August 2023

559:ग़ज़ल : डूबकर कभी

तेरी तरह बादल भी दगा दे,आए ही नहीं बरसने को।
हम तो रह गए राह ताकते,हर हाल बस तरसने को।।

जो मांगना है वो खुदा से मांगो,वो ही तुम्हें है दे सकता।
हाथ फैलाते क्यों हो गैरों के आगे कुछ भी मांगने को।। 

गुफ्तगू तो होती रहनी चाहिए किसी भी सूरते हाल में। 
बात से ही निकलती है कोई बात मसला सुलझाने को।

जिद औ जुनून जिन्दगी का तकिया कलाम बनाकर।ख्वाब देखा करो इसी शिद्दत से हकीकत बनाने को।।

चिंगारी वो भड़का देते हैं महज अपनी सादगी से।
ये राज़ न जाने कर गया कत्ल कितने परवाने को।।

दुनिया ए गुलशन में रंग हैं कितने चटक,शोख बिखरे हुए।
डूबकर गहराई में कभी उतरो तो"उस्ताद"इसे जानने को।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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