Monday, 7 August 2023

557:ग़ज़ल: होश रहता है

वृंदावन की तिश्नगी*(प्यास/उत्कंठा)
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शहरे फिजा में तेरी अलग ही एक नशा है।
जरूर ये तेरी ही सांसों का असर रहा है।।

हर कोई तो बांवला,मदहोश सा दिखता है यहाँ।
गजब तूने सबको अपना पागल बना लिया है।।

बढ़कर एक से एक किस्से हैं इश्क के सुनाई देते।
तुझपर सबकुछ लुटाने का यारब चस्का लगा है।।

अब जो बुला लिया है तूने दीदार को अपने धाम में।
बता तो सही जाने का मन भला किसका हुआ है।।

बस एक बार जो चढ़ जाए तेरे मोहब्बत की तिश्नगी।
"उस्ताद"फिर कहाँ जरा भी खुद का होश रहता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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