Sunday, 13 August 2023

561: ग़ज़ल: लाल बुझक्कड़

लोग तो यारा कहते रहेंगे ऐं वईं कुछ भी।
मगर तुम रहना मुस्कुराते,ऐं वईं कुछ भी।।

दिल में होगी जो भी बात सब सच कहेंगे।
सो ग़ज़ल तो हम लिखेंगे,ऐं वईं कुछ भी।।

देख लेना जख्म में भरेगा कोई न मरहम।
मगर तू लेना नहीं दिल में,ऐं वईं कुछ भी।।

चिड़ियों का चहचहाना,दरिया कि कल-कल। 
चल दिल को रहें यूँ बहलाते,ऐं वईं कुछ भी।।

हर दिन नया है,हर घड़ी है सुहानी।
कभी देखना डूब के,ऐं वईं कुछ भी।।

लाल बुझक्कड़ से बूझते हो पहेली।
"उस्ताद" कसम से,ऐं वईं कुछ भी।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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