Saturday, 12 August 2023

560:ग़ज़ल: छोड़ा मुस्कुराना मगर कहाँ

चाहता तो था बनकर रहूं मैं तेरा मगर कहाँ।
सोचता है जो आदमी वो होता मगर कहाँ।।

जुल्फों के साए में हम गुजारेंगे जिंदगी संग तेरे। 
किया तो था वफा निभाने का वादा मगर कहाँ।।

जुस्तजू तो थी जारी अरमानों की खातिर यारब।
अलबेली हमारी किस्मत में था बदा मगर कहाँ।।

हर रास्ते जिन पर चले तेरी याद बनी रही।
मुमकिन हो सका भूलना भला मगर कहाँ।।

पेंचोखम रहे जिन्दगी में कदम दर कदम हजार।
कहो "उस्ताद" ने मुस्कुराना छोड़ा मगर कहाँ।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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