Friday, 4 August 2023

554: ग़ज़ल: फाकामस्ती चढ़ी है

जिंदगी की हर राह तंग रपटीली बड़ी है।
जो हारो न हौंसला तो खुले हर कड़ी है।।

यूँ तो उसका कमाया कुछ भी नहीं पास में।
दौलत,शोहरत पर मां-बाप की रखे तड़ी है।।

दर्द हो मद्धम या कि ज्यादा बस आंख बंद जपते रहो।
नाम की तासीर में उसके छुपी हुई संजीवनी जड़ी है।।
 
किसी मजलूम को सताने की कभी न सोचना। 
वरना आवाज होती कहाँ यार उसकी छड़ी है।।

अभी दीदार कहां बस उसका जलवा ही सुना है।
"उस्ताद" उतरती नहीं जो फाकामस्ती चढ़ी है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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