Wednesday, 30 August 2023

571: ग़ज़ल:दिल अपना नगर उदयपुर

है बहुत खूबसूरत हंसी ये झीलों का नगर उदयपुर।
हम जो गए तो लुटा बैठे दिल अपना नगर उदयपुर।।

एकलिंगी महादेव शिव ही हैं यहाँ के राजा नगर उदयपुर। जिनके आदेश बगैर नहीं हिलता एक पत्ता नगर उदयपुर।

श्रीनाथजी की महिमा नहीं जानता भला कौन कहिए।
देश-विदेश का मुसाफिर भागा है आता नगर उदयपुर।।

कहीं शहर में पुराने गलियाँ भी हैं संकरी कुछ तंग सी।  मगर हर आदम दिल से है दिलदार बड़ा नगर उदयपुर।।

दाल-बाटी-चूरमा,सांगड़ी,गट्टे-पापड़ साग,दिलजानी का स्वाद।

जुबां पे चढ़ा इनका जादू लजीज इतना ज्यादा नगर उदयपुर।।

सिटी पैलेस,सज्जनगढ़,सहेली की बाड़ी,जगदीशजी मंदिर।

बहुत देखा,मगर चार दिन देखते कैसे नगर पूरा उदयपुर।

कुदरत मेहरबान है सो दिल अजीज बड़ा है चप्पा-चप्पा यहाँ।
"उस्ताद" तबीयत भरी नहीं सो आने का वादा रहा नगर उदयपुर।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

 

Friday, 25 August 2023

570: ग़ज़ल:

चल दिए हैं लो हम सफर पर उससे मिलने।
जज्बात जोश मार रहे दिल में हजार हमारे।।

मौसम जो था कल तक रूखा बड़ा बेजान सा।
बदलकर हुआ कितना सुहाना बस एक दिन में।।

काले बादलों से घिरा हुआ है ये आसमां सारा।
होनी तय है बरसात जब उसको लगायेंगे गले।।

हरे-भरे दरख़्त सौंधी-सौंधी सी महक मिट्टी की।
कुदरत भी हमारे साथ बड़ी खुशगवार है दिखे।।

"उस्ताद" क्या खबर थी खैरमकदम यूँ होगा हमारा।
खड़े होंगे लोग हुजूम में हमें देने रंगबिरंगे गुलदस्ते।।

नलिनतारकेश @उस्ताद
नोट : रेल का नाम भी हमसफर है🤩

Wednesday, 23 August 2023

569: ग़ज़ल: चन्द्रयान की सफलता हेतु दुआ

बहुत बहुत बधाई के साथ सभी देशवासियों को
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दूरीयां कितनी भी बड़ी हों,कभी भी बड़ी नहीं होती।
मिट जाते हैं सारे फासले,हो मगर मोहब्बत सच्ची।।

मेरे महबूब तुझसे मिलने की बेकरारी है इतनी जा बढ़ी।
रकीब आ गले लगाए उससे पहले मैंने नकाब उठा दी।।

चांद मेरे हमनशीं,मेरे हमदम,तुझसे कहाँ कुछ भी छुपा।
मुझे कभी तेरी ये,नफासत भरी पर्दादारी भली न लगी।।

राज क्या है जो इतना करीब आकर भी ओझल हो जाए। दूसरों से भला क्यों सुनूं,अपनी जुबानी तू बात तो सही।। 

"उस्ताद" ये आंख-मिचौली,अब तो बंद कर दे खुदा के वास्ते।
बेइंतिहा मोहब्बत को न ठुकरा इस बार,तुझे कसम है मेरी।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday, 22 August 2023

568: ग़ज़ल: नादानियों का अंजाम

छितरी-बिखरी जुल्फों में राज गहरा छुपा है।
विरह में किसी के करवटों में वक्त गुजरा है।।

परिंदे चहचहाते,खेलते उड़ जाते हैं दूर सहमकर।
लगता है अभी मेरा मैं मुझसे गहरे जुड़ा हुआ है।।

आईना देखा कई बार,पर चेहरा हर बार वही दिखा।
वक्त संग बदलने की फितरत,ये शख्स भूल गया है।। 

कहें तो कैसे कहें और ना कहें तो कैसे ना कहें।
गुत्थियां ये अजीबो-गरीब कौन खोल पाया है।।

सावन में छिटपुट बूंदाबांदी तो हश्र "उस्ताद" सोचो। 
अपनी नादानियों का अंजाम तो हर हाल दिखता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday, 21 August 2023

567:ग़ज़ल: पछताना नसीब में

उम्र हो चली अब तो सब कुछ हूँ भूल जाता।
फसानों का मगर तेरी याद हर लम्हा पुराना।।

रास्तों की भीड़ में गुम हो रहा अब तो हर आदमी।
दौर कहाँ बाकी रहा जब होता था मौसम सुहाना।।

रूठ कर गए थे तुम बेवजह बात का बतंगड़ बना कर। 
चलो रब को बदनाम करें वो नहीं चाहता था मिलाना।।

यूँ तो हर अंधेरी रात की एक सुबह होती ही है सुहानी। 
मगर शायद खुर्शीद भी नशे में भटका अपना ठिकाना।।

तेरे शहर को कर अलविदा चल दिए हैं "उस्ताद" हम।
देखते हैं लिखा है क्या नसीब में अभी और पछताना।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 20 August 2023

566: ग़ज़ल: हमने किया

अमीर होने की अपनी हसरत को यारब पूरा ऐसे किया।
पांच सौ के नोट भुना उसे तब्दील सौ के पांच में किया।। 

देना तो पड़ता है दिल को दिलासा हर हाल में जैसे-तैसे।
टूटे न कहीं डोर अपनी उम्मीद की सो ऐसा हमने किया।।

जद्दोजहद का रेगिस्तान फैला है मीलों दूर तक खौलता। नंगे पांव चलने का हौसला हमने तब भी बेखटके किया।। 

हकीकत से रूबरू हो तो पता भी चले आटे-दाल का भाव।  
सोने की चम्मच से निगला निवाला तो कैसे आपने किया।। 

"उस्ताद" उठे हूक सी दिल में पस-मंजर आज का देखकर। 
या खुदा ये हाल दुनिया का खुद से ही क्यों भला हमने किया।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 19 August 2023

565: ग़ज़ल:खुद को पढना सीखिए

मबहुत सीख लिया है अब कुछ भूलना सीखिए।
पुरानी रूई को यार दिमाग की धुनना छोड़िए।।

रास्तों पर पुराने बार-बार भला क्यों है चल रहे।
नई राहों पर चलने का जनाब हौंसला पालिए।।

हर शख्स परेशान है जाने क्यों अपने आप से ही।
कभी-कभार तो बेवजह भी मुस्कुराया कीजिए।।

सितारे बताते हैं आपका मुस्तकबिल यह भी सही है। 
पर हाथ पर हाथ रख चलेगा कैसे काम जरा सोचिए।।

तनहाई में करवटें बदलते भला क्यों हैं सिसकते रहते।
"उस्ताद" कभी इत्मीनान से खुद को पढ़ना सीखिए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 18 August 2023

564: ग़ज़ल: चर्चा में

सावन के झूले लगे बारिश भी हो रही। 

गुल खिलाने को देखिए जल्दी हो रही।।


ऊंची पेंगें भरने को खुले आसमान में।

लो निगाहों से बतियां रसभरी हो रही।।


जुल्फें छाईं बादलों सी काली,घनी। 

रूह को भिगोने की तैयारी हो रही।।


सुरों की महफिल सजती जब भी तू मुस्कुराए।

चर्चा में ये बात खासोआम अब बड़ी हो रही।।


"उस्ताद" का भी रहा है यूँ तो मिज़ाज आशिकाना।

फर्क बस इतना,चाहतें तेरी सिमट दुनियावी हो रही।।


नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 17 August 2023

563: ग़ज़ल: मयकदे जो गया

मयकदे जो हम गए थे गम अपना भूलाने।
लो याद वो और आ गए साकी के बहाने।।

सबके लबों पर तो बस उनका ही जिक्र था।
अब कहो हम कितना छुपाते,कितना बताते।।

यूँ इस कदर थे हम हलकान उनकी बेवफाई से।
एक दो नहीं,जाम जाने कितने,हलक से उतारे।।

बादलों के मिजाज आवारा,देखिए,समझिए क्या? 
जैसी चली हवा,धुन वो तो उसकी ही नाचते दिखे।।

"उस्ताद" हमें तो नशा अब ऐरा-गैरा चढ़ता ही नहीं।
बस निगाहों से उनकी जो पिया वही ता-उम्र पीते रहे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 16 August 2023

562: ग़ज़ल: बस खुशबू तेरी

लफ्ज जुबां पर हैं हमारे मगर निकलते नहीं। 
दिल की ये उमस यारब बड़ा बेचैन कर रही।।

जब से तेरे जलवों की चर्चा सुनी है आशिकों से।
हरेक सांस तुझे देखने की हसरत कुलांचे मारती।।

यूँ तो हम रहे हैं दुनियावी चक्करों में सदा से।
बता फिर खबर मिलती तो कैसे तेरी मिलती।।

बरसे जो बादल खेत-खलिहान सब झूम गाने लगे।
सावन के अंधे को मगर कब बरखा की दरकार थी।।

समंदर,चांद,सितारे,पहाड़,झरने,नदी,परिन्दे।
खींचते हैं "उस्ताद" मुझे बस खुशबू से तेरी।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Tuesday, 15 August 2023

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई तहेदिल से सभी को

राष्ट्र का हमारे आजकल,भव्य निर्माणाध्याय,प्रारंभ किया जा रहा। 
अतीत के स्वर्णिम पृष्ठों का विवेकवान,पुनर्जागरण किया जा रहा।। 
दृष्टिगोचर हुआ,नव-चेतना की सुरमई सुगंध का,विस्तार दसों दिशा।
दृढ़ संकल्प,उत्साह,उल्लास से भरपूर सुगठित नेतृत्व किया जा रहा।। 
संपूर्ण विश्व में अब हमारे अद्भुत जीवट की,हो रही पुरजोर चर्चा।
जगद्गुरु बनने का पुनः से एकबारगी,सद्प्रयास किया जा रहा।। 
समुन्द्र की अतल गहराई हो या अंतरिक्ष की अबूझ ऊंचाईयां।
अद्यतन प्रौद्योगिकी संग हर दिशा,अनुसंधान किया जा रहा।
सुरक्षा जवान हों या कामगार हों अथवा कि हमारे किसान अन्नदाता। 
जिनके परिश्रम ने बनाया हमें खुशहाल,उनका सम्मान किया जा रहा।।
भारत की हमारी महिला शक्ति और इंद्रधनुषी स्वप्न युवाओं का।
संग साथ लेकर सभी का,जमीन पर स्वर्ग साकार किया जा रहा।।
अमृत महोत्सव का यह विशिष्ट कालखंड,जो सौभाग्य से हमें मिला।
एड़ी-चोटी का लगाकर जोर,अप्रतिम कायाकल्प किया जा रहा।।

नलिनतारकेश

Monday, 14 August 2023

कभी खुद को

कभी खुद को यार हूँ मैं तो कोसता।
मगर कभी पीठ भी हूँ अपनी ठोकता।
दरअसल जिंदगी को तो गढ़ना पड़ता।
कुम्हार की तरह ही,उसके घड़े जैसा।
कभी एक तरफ देकर हाथ का सहारा।
वहीं दूसरी तरफ हाथ से होता ठोकना।
इसी प्रक्रिया से ही अनवरत,वो ले सकता।
सुन्दर,सुनहरा घट का भव्य रूप अपना।
फिर तो भवसागर,वो जरा भी नहीं गलता।
मृद-भांड की यह देह,तैरती बनकर नौका।
इसतरह सहजता से,लो हो जाता,पार बेड़ा।
फिर उस पार जा,या यहीं नलिन सा खिलता।
सृष्टि-कीच में भी निर्मल,निष्पाप बना रहता।
निरन्तर सभी को पिलाता,जिलाता रहता।
दिव्य सुधापन से जो हरिकृपा से उसे मिलता।। नलिनतारकेश

Sunday, 13 August 2023

561: ग़ज़ल: लाल बुझक्कड़

लोग तो यारा कहते रहेंगे ऐं वईं कुछ भी।
मगर तुम रहना मुस्कुराते,ऐं वईं कुछ भी।।

दिल में होगी जो भी बात सब सच कहेंगे।
सो ग़ज़ल तो हम लिखेंगे,ऐं वईं कुछ भी।।

देख लेना जख्म में भरेगा कोई न मरहम।
मगर तू लेना नहीं दिल में,ऐं वईं कुछ भी।।

चिड़ियों का चहचहाना,दरिया कि कल-कल। 
चल दिल को रहें यूँ बहलाते,ऐं वईं कुछ भी।।

हर दिन नया है,हर घड़ी है सुहानी।
कभी देखना डूब के,ऐं वईं कुछ भी।।

लाल बुझक्कड़ से बूझते हो पहेली।
"उस्ताद" कसम से,ऐं वईं कुछ भी।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 12 August 2023

560:ग़ज़ल: छोड़ा मुस्कुराना मगर कहाँ

चाहता तो था बनकर रहूं मैं तेरा मगर कहाँ।
सोचता है जो आदमी वो होता मगर कहाँ।।

जुल्फों के साए में हम गुजारेंगे जिंदगी संग तेरे। 
किया तो था वफा निभाने का वादा मगर कहाँ।।

जुस्तजू तो थी जारी अरमानों की खातिर यारब।
अलबेली हमारी किस्मत में था बदा मगर कहाँ।।

हर रास्ते जिन पर चले तेरी याद बनी रही।
मुमकिन हो सका भूलना भला मगर कहाँ।।

पेंचोखम रहे जिन्दगी में कदम दर कदम हजार।
कहो "उस्ताद" ने मुस्कुराना छोड़ा मगर कहाँ।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 10 August 2023

559:ग़ज़ल : डूबकर कभी

तेरी तरह बादल भी दगा दे,आए ही नहीं बरसने को।
हम तो रह गए राह ताकते,हर हाल बस तरसने को।।

जो मांगना है वो खुदा से मांगो,वो ही तुम्हें है दे सकता।
हाथ फैलाते क्यों हो गैरों के आगे कुछ भी मांगने को।। 

गुफ्तगू तो होती रहनी चाहिए किसी भी सूरते हाल में। 
बात से ही निकलती है कोई बात मसला सुलझाने को।

जिद औ जुनून जिन्दगी का तकिया कलाम बनाकर।ख्वाब देखा करो इसी शिद्दत से हकीकत बनाने को।।

चिंगारी वो भड़का देते हैं महज अपनी सादगी से।
ये राज़ न जाने कर गया कत्ल कितने परवाने को।।

दुनिया ए गुलशन में रंग हैं कितने चटक,शोख बिखरे हुए।
डूबकर गहराई में कभी उतरो तो"उस्ताद"इसे जानने को।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 9 August 2023

558:ग़ज़ल:रह जाएंगी इतिहास बनकर

कहो बेबाक जरूर मगर सुन भी तो लो यार की।
ऐसी भी भला बात क्या तेरे बेवजह अहंकार की।।

सोने,चांदी की दीवारों के घर में रहे हो माना तुम जन्म से। 
मगर हद है अब तलक भी छूटी नहीं आदत भ्रष्टाचार की।

उँगलियां उठाना तो आसान है कभी भी किसी पर तेरा।
देखी मगर क्या तूने कभी तस्वीर अपने ही दरबार की।।

जो कुछ भी तुम कह दो बस वही असल कानून है होता। आँखों में है पट्टी पर बात सुनते ही हो क्यों चाटुकार की।।

"उस्ताद" जान लो होने लगा है अब उजाला नई भोर का।
रह जाएंगी बातें तेरी इतिहास बनकर सारी अंधकार की।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 7 August 2023

557:ग़ज़ल: होश रहता है

वृंदावन की तिश्नगी*(प्यास/उत्कंठा)
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शहरे फिजा में तेरी अलग ही एक नशा है।
जरूर ये तेरी ही सांसों का असर रहा है।।

हर कोई तो बांवला,मदहोश सा दिखता है यहाँ।
गजब तूने सबको अपना पागल बना लिया है।।

बढ़कर एक से एक किस्से हैं इश्क के सुनाई देते।
तुझपर सबकुछ लुटाने का यारब चस्का लगा है।।

अब जो बुला लिया है तूने दीदार को अपने धाम में।
बता तो सही जाने का मन भला किसका हुआ है।।

बस एक बार जो चढ़ जाए तेरे मोहब्बत की तिश्नगी।
"उस्ताद"फिर कहाँ जरा भी खुद का होश रहता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 6 August 2023

556: ग़ज़ल: लफ्ज गूंगे हो पड़े(मित्रता दिवस की बधाई )

मित्रता दिवस की सबको बधाई 
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सांसों में खुशबू घुली है इस कदर मेरे यार की।
न सही करीब में,नशातारी चढ़ी है मेरे यार की।। 

बस एक बार ही तो निगाहों से मिली थीं निगाहें।
भूलती कहाँ गुलाबी यादें जो रही हैं मेरे यार की।।

घर से निकले तो बस उसकी चौखट पर सजदे को।
यूँ दिल में तस्वीर तो बस एक रहती है मेरे यार की।।

न वो कुछ कहते हैं न हमें ही कुछ होश बाकी रहा। 
बस एक दीवानगी चारों तरफ पसरी है मेरे यार की।।

लफ्ज़ गूंगे हो पड़े हैं सारे के सारे हाशिए में देखो। 
"उस्ताद" बस बलैया हमने ले ली है मेरे यार की।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 5 August 2023

555: ग़ज़ल: तो बेहतर है

दर्द अपने संग साथ ले बढ़ते चलो तो बेहतर है। 
 इनसे खुद को हर हाल तराश लो तो बेहतर है।।

हवाओं का रुख अपने हाथ में तो होता नहीं किसी के। पतवार उसके भरोसे भी कभी छोड़ देखो तो बेहतर है।। 

कोई भला क्यों दिखा सके हरेक बात पर आईना।  
तस्वीर अपनी खुद से खूबसूरत गढ़ो तो बेहतर है।।

जैसा भी मिला है तुम्हारा नसीब वो यूंही नहीं मिला है।
जो हैं खामियां अपनी सुधार आगे सको तो बेहतर है।।

"उस्ताद" जमाना तो करवट बदल रंग दिखाइएगा ही।
लेकर इन्हीं रंगों को कायनात नई रचा दो तो बेहतर है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 4 August 2023

554: ग़ज़ल: फाकामस्ती चढ़ी है

जिंदगी की हर राह तंग रपटीली बड़ी है।
जो हारो न हौंसला तो खुले हर कड़ी है।।

यूँ तो उसका कमाया कुछ भी नहीं पास में।
दौलत,शोहरत पर मां-बाप की रखे तड़ी है।।

दर्द हो मद्धम या कि ज्यादा बस आंख बंद जपते रहो।
नाम की तासीर में उसके छुपी हुई संजीवनी जड़ी है।।
 
किसी मजलूम को सताने की कभी न सोचना। 
वरना आवाज होती कहाँ यार उसकी छड़ी है।।

अभी दीदार कहां बस उसका जलवा ही सुना है।
"उस्ताद" उतरती नहीं जो फाकामस्ती चढ़ी है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 3 August 2023

सात्विक समर्पण

सार्थक नवसृजन सहज,सरल भला कहां होता है।
वो तो निरंतर असीम धैर्य,साहस,संकल्प मांगता है।।

जितना व्यापक हित कामना का उसका व्यास होता है। उसी अनुरूप वह आपसे आपका बलिदान मांगता है।।

हमें तो बस उसी भांति मन मस्तिष्क साधना होता है। 
हर घड़ी,हर सांस जो भी तदनुरूप वो हमसे मांगता है।। 

प्रत्येक जीव में एक सिद्धहस्त कलाकार छुपा होता है। एकमात्र बस वही तो हमारा अस्तित्व हमसे मांगता है।। 

हमारी कामना का संकल्प बीज ही तब वटवृक्ष  होता है। जिसके हेतु आत्मा सात्विक समर्पण का भाव मांगता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद