Friday 30 June 2023

545: ग़ज़ल: मौज और है

पहली फुहार में भीगने की मौज और है।
प्यार में खुद को भुलाने की मौज और है।।

कागजी जिस्म है नहीं तो डर क्यों रहे हुजूर।
बूंदो की मोतियों से सजने की मौज और है।।

घने काले बादल जब लहराते हैं गेसूओं के।
खुद को महफूज न रखने की मौज और है।।

वो तो आए ही नहीं वायदा कर मिलने कभी।
धोखों पर हर बार एतबार की मौज और है।।

सावन का मौसम अलहदा है "उस्ताद" कसम से।
गली-कूचों के झरोखों पर फिसलने की मौज और है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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