Friday, 16 June 2023

ग़ज़ल:- 539 तेरी तरफ

खानाबदोश सा इधर से उधर मैं आ जा रहा हूँ।
जिंदगी का अपनी हुक्का गुड़गुड़ाए जा रहा हूँ।।

जो था हमनवा मेरा वो जब इतने करीब आ गया।
हैरान हूँ यारब भला कैसे नहीं उसे देख पा रहा हूँ।।

वक्त के साथ ऐनक का नंबर तो बदलना तय था ही।
मगर ये कैसी साजिश हुई खुद को ही भुला रहा हूँ।।

जाने क्या बात थी उसके लिए प्यार के पहले अल्फाज में। अब तलक बंजर रेगिस्तान में ख्वाब के चप्पू चला रहा हूँ।

कुछ तो बात नायाब है जरूर तेरी मोहब्बत में "उस्ताद"।
हर लम्हा जो तेरी तरफ खींचता ही चला आ रहा हूँ ।।

नलिनतारकेश@उस्ताद


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