Monday, 19 June 2023

540:-ग़ज़ल: करार आ गया

इश्क करना तय मानिए जिसे एकबार आ गया।
इस जगत का उसको समझ में सार आ गया।।

पाक दामन रहा वो तो गुनाह करके भी देखिए।
करना जिसे अपनी गलतियाँ स्वीकार आ गया।।

हर एक बात पर सहमति जताना आपका जरूरी नहीं।
जीत लेता है वो भी दिल जिसे करना इन्कार आ गया।।

अपने लिए तो यहाँ जीते रहे हैं सभी ता-उम्र देखिए। 
सुकूं मिला उसे जिसके जज़्बात में उपकार आ गया।।
 
धन-दौलत,माल-असबाब कुछ दिन की बस चांदनी।
रईस तो है वही जिसे बांटना सबको प्यार आ गया।।

चार बर्तन रहेंगे जहां भी,होगी वहीं कुछ खटरपटर भी। मुखिया वही है जिसे मिलकर,चलाना परिवार आ गया।।

रूठके बैठ जाते हैं अक्सर हम किसी न किसी से कभी। 
जीतता है हारी बाजी वही जिसे करना मनुहार आ गया।। 

"उस्ताद" यूँ तो मेरी निगाहें बस एक बार ही उनसे मिली।
सच कहें जिंदगी में तबसे अपनी असल करार आ गया।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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