Saturday, 30 November 2019

281:गजल-अपने हैं जो भी

अपने हैं जो भी,लग रहे अजनबी सभी।
नाचते लग रहे,जैसे बेगानी शादी सभी।।
खुद का ही होश नहीं रहा यहाँ तो किसी को।
अब तो देखो हैं झूम रहे बन के शराबी सभी।।
जिगरा ही नहीं बिके हुए निभाएं कैसे वफादारी। 
लो हुई बातें ईमान की आजकल बेईमानी सभी।।
कसौटी पर कस के कहें सच तो भी हम झूठे।
कहें मगर आप तो जायज हैं बातें झूठी सभी।।
"उस्ताद" कौन और भला कौन शागिर्द कहो तो।
तौले जा रहे अब यहाँ एक भाव रेत,मोती सभी।।
@नलिन#उस्ताद

280:गज़ल-दर्द में तो

दर्द में तो सबसे पहले पूछते हमको।
खुशी में लोग मगर भूल जाते हमको।। 
दर्द न हो किसी को यही चाहते हम तो।
फिर वो चाहे सदा ही भूलें रहें हमको।।
खुदा करे रहें सब ही खुशहाल यहां पर।
दर्द तो किसी के भी तकलीफ देते हमको।।
दर्द में किसी के कैसे खुश हो सकता कोई।
सवाल ऐसे सदा हैरान परेशां करते हमको।।
"उस्ताद" ये दुनिया भी अजब बनाई उसने। 
दर्द  होते ही क्यों समझ जरा न आये हमको।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 28 November 2019

279:गजल-जब तलक हम

जब तलक हम बच्चे होते हैं।
सच कहूँ बड़े भोले होते हैं।।
उम्र बढ़ती जाए जैसे-जैसे।
हम और-और खोटे होते हैं।।
दुनिया का है दस्तूर पुराना।
हर भले काम रोड़े होते हैं।।
लाख इल्मो हुनर चाहे संजो लें।
कभी तो दाँव सारे उल्टे होते हैं।।
"उस्ताद"न कहो दर्द किसी से।
जख्म तब और भी गहरे होते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 27 November 2019

278-गज़ल:तौबा-तौबा हम लिखते क्या हैं

तौबा-तौबा हम लिखते क्या हैं लोग समझते क्या-क्या हैं।
अपने-अपने आईने से दुनियावाले हमें आंकते क्या-क्या हैं।।
सोचते हैं अब न कहें किसी से कुछ भी अब तो कसम से।
यहाँ तो हर लफ्ज़ पर लोग अफवाह उड़ाते क्या-क्या  हैं।।
चलो खैर ये भी ठीक है यूँ कुछ काम तो मिल गया इनको।
वरना तो जुल्म की इन्तेहा इनके खुदा जाने क्या-क्या हैं।।
इस बहाने दुनिया में चलो हमारे भी चर्चे तो हो रहे। 
ये अलग बात कि इल्जाम लोग मढते क्या-क्या हैं।।
वक्त ही नाजुक है बड़ा सवालों में आ रहे"उस्ताद"सब।
बस तमाशा है सितारों का देखिए लिखते क्या-क्या हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 25 November 2019

277-गज़ल:जब भी देखता हूँ

जब भी देखता हूँ मैं खुद को आईने में।
पूछता हूँ उससे तुम कौन हो आईने में।।
बड़ी भोली सी सूरत सादगी भरा मिजाज।
शातिर से यार दिखते नहीं तुम तो आईने में।।
करीने से किया मेकअप तिलिस्म सा जगाता। 
यूँ किस को बरगला रहे हो बताओ आईने में।। 
जो हुआ सो हुआ भूल जाओ बीती बातों को।
जरा खुद से नजरें तो अब मिलाओ आईने में।।
वो तो मासूम सा बस दिखा रहा हकीकत।
"उस्ताद" यूँ पत्थर तो न फेंको आईने में।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 24 November 2019

गज़ल: 276 - चाहतें तुझे पाने की

चाहतें तुझे पाने की हैं मेरी समंदर की लहरों सी।
घूम-फिर के आती हैं अपनी जिद पर बच्चों सी।।
यूं समझता है तू कही-अनकही सब बातें मेरी।
मगर हरकतें हैं तेरी वही फरेबी नाजनीनों सी।।
आया तो था यहाँ तुझसे मिलूंगा बस यही सोच कर। भटकाती रही मगर जिंदगी कहाँ से कहाँ बादलों सी।।
ऑखों में धुंआ-धुंआ सा दिल में बेचैनी है बड़ी।
सुलगती रहेंगी बता कब तलक सांसें अंगारों सी।।
"उस्ताद" बस तेरी इनायतों पर चल रही है जिन्दगी।
वरना तो उम्मीदें सभी लगती यहाँ अब झूठी दलीलों सी।।
@नलिन#उस्ताद

गडल:275-गोदी में अभी

गोदी में अभी खेलते नहीं परिंदे मेरे। 
बाकी हैं प्यार के सबक सीखने मेरे।।
अभी तो चखी नहीं एक घूंट मय की।
लो अभी से हैं मगर पांव बहकते मेरे।।
चल पड़ा हूँ जो उसका दीदारे ख्वाहिश लिए।
हौसला यूं बना कि पाँव नहीं अब थकते मेरे।।
घड़ी की सुईयों का यहाँ भला कौन मुंतज़िर*है।*प्रतिक्षारत
बसे हैं जबसे आँख में लीक से हटे सपने मेरे।।
ये खामखा लगे वर्जिश*किसी को तो लगा करे।*कसरत
बस उसके चरचे ही दिलों के तार हैं छेड़ते मेरे।।
गजल लिख रहा हूँ हर रोज एक नई मैं तो।
"उस्ताद"है अभी जिंदा कलाम यह बताते मेरे।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 21 November 2019

गजल:274-कभी खिलखिलाने रोज़ पड़े

कभी खिलखिलाते रो पड़े,कभी रोते-रोते हंसने लगे। प्यार में जब से हम पड़े अजब हरकतें करने लगे।।
कुछ था नहीं जमीनी बस ख्वाब एक रूमानी रहा।
फसाने को समझ हकीकत यार हम मचलने लगे।। 
एक अजब नशा मदहोशी सी रहती है अब तो।
लोग सरेआम अब तो हमें शराबी कहने लगे।।
वो निभायेगा या साफ मुकर जाएगा वादे से अपने।
बेवजह की इस बेकली से अब तो ऊपर उठने लगे।।
प्यार किया है हमने तो निभायेगा फिर भला कौन कहो।
परवान इस तरह आजादी को बख़ूबी अपनी चढ़ाने लगे।।
प्यार हो सच्चा तो चाहता कहाँ कुछ भी महबूब से।
खुदा का शुक्रिया हम ये बारीकियां हैं समझने लगे।।
जबसे हमारे दिल में उसका दिल धड़कने लगा।
कहो अब कहाँ तन्हा उस्ताद हम रहने लगे।।
@नलिन#उस्ताद

गजल:273-भीगी जुल्फें

भीगी जुल्फें झटक के जो लहराई उसने।
दिले रेगिस्तां आबे-हयात* बरसाई उसने।।*अमृत
हर तरफ,हर गली,हर मोड़ चर्चे हैं उसके।
गजब खूबसूरत ये कायनात बनाई उसने।।
समंदर से जाकर मिलने को बेचैन है दरिया।
दिल में गहरे लगन ऐसी मीठी लगाई उसने।।
होगी हर रोज़ गुफ्तगू मीठी-मीठी अब तो।
बदल के लकीरें नई तकदीर रचाई उसने।।
"उस्ताद"आँखों में सुर्ख गुलाबी डोरे छा गए।
जबसे यकबयक* एक हंसीं झलक दिखाई उसने।।*एकाएक 
@नलिन#उस्ताद

Monday, 18 November 2019

272:गज़ल-आँखों में चढ़ी है

आँखों में चढ़ी है ऐसी गज़ब की खुमारी उसकी।
खुली हो,बंद हो अब तस्वीर मिटती नहीं उसकी।।
सुबह-शाम,हर घड़ी यही चाहत मुझमें है बाकी। 
सुनता रहूँ बस इनायतों की चर्चा अजूबी उसकी।।
वो मेरे आस-पास है खुद ही राज ये खोला उसने।
लो मैं भी सूंघता फिर रहा सांसे महकती उसकी।।
कदम दर कदम ठोकरें खा रहा हूँ जैसे शराबी।
अजब हाल पर मिटती नहीं दीवानगी उसकी।।
बहुत बोलता है इशारों-इशारों में वो तो हमसे हरदम।
समझ सको जो बिखरी जर्रे-जर्रे में खामोशी उसकी।। "उस्ताद"ये नशा भी अजीब है जो उतरता ही नहीं।
दिखाता है कैसे-कैसे अजब मंजर बलिहारी उसकी।।
@नलिन#उस्ताद 

Saturday, 16 November 2019

271:गजल-ख्वाब में भी दिखते रहो

ख्वाब में भी  दिखते रहो तुम तो गनीमत है।
वरना तो ये जिंदगी बस एक जहालत* है।।*अज्ञानता 
हकीकत से रूबरू होना तेरी ही बस इनायत है।
सच तो ये कि होती नहीं कोई ऐसी इबादत है।।
बातें हवा में शेखचिल्ली सी चाहे जितनी बना लें। 
हमको कहाँ पल भर भी रहती ज़रा तेरी हसरत है।।
कूचा-कूचा हर शय जलवा ए कारीगरी। 
भरती हर अदा तेरी हममें बड़ी हैरत है।।
आँखें लड़ाने की सोचना उस आफताब से। 
बड़ी बचकानी भरी बेजा ये तेरी हरकत है।। 
दुनियावी रंगीनियां हर कदम भरमाती रहेंगी ताउम्र ।
भूलना न उसे कभी वरना तो"उस्ताद"फजीहत है।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 15 November 2019

गजल-270:हाथों में पकड़ा दिया

उमा कहउँ मैं अनुभव अपना।सत हरि भजनु जगत सब सपना।(रामचरितमानस 3/38/5)
******************************
हाथों में पकड़ा दिया सबके एक झुनझुना उसने।
गम और खुशी बीच सबको खूब उलझाया उसने।।
हर कोई दूसरे के हाथ की शय से बस हैरान है।
अपने हाथ मिला क्या देखना ये भुलाया उसने।।
हर बात बच्चों सा रोता और मचलता है आदमी।
छोटी-बड़ी हर बात पर हमें बहुत फरमाया उसने।।
सारी दुनिया खड़ी महज ये झूठ की बुनियाद पर।
बस दिखा चांद का अक्स पानी में बहलाया उसने।।
कोई नहीं तेरा"उस्ताद"कागजी लफ्फाजी है सब।
बेवजह के मकड़जाल बारीकी से फंसाया उसने।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 6 November 2019

गजल-269:पीनी शराब

छोड़ दी मैंने शराब पीनी कसम से।
पी के निकलता झूठ नहीं कसम से।।
सच का सरेआम कत्ल हुआ है जब से।
बगैर झूठ जिंदगी न गुजरती कसम से।।
देर-सवेर जीतता था सच एक दौर पहले।
हर कदम अब झूठ की बिकवाली*कसम से।।
*मुनाफे हेतु शेयर या हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया
झूठ पढ़ लो चाहे साफ-साफ आंखों में उसकी।
कहने की हकीकत ये ताब* न रही कसम से।।*हिम्मत 
झूठ भी बेच ले होशियारी से जो पूरा सफ़ेद।
है "उस्ताद" वही नामी गिरामी कसम से।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 5 November 2019

268:गज़ल:आईना अपना तोड़ के आना

आईना अपना तोड़ के आना।
जब भी मिलने मुझसे आना।। 
झूठ न बोलें मेरी निगाहें।
सोच समझ के तू ये आना।।
अमन चैन से दुनिया को रंगने।
ख्याल तास्सुबी* छोड़ के आना।।*कट्टरता 
नामुमकिन सा कोई हर्फ* नहीं है।*शब्द 
सो बिछड़े ख्वाब संजोने आना।।
कदम-कदम में जोश भरा हो।
दिल को ये तू समझाते आना।।
"उस्ताद"वही है इस दुनिया का।
उसको करके बस सजदे आना।।
@नलिन#उस्ताद

267:गजल

गुनगुनाते मस्ती में तुम बढ़ते रहो। 
जिंदगी की नाव बस यूं ही खेते रहो।।
धुंध है छाई आजकल आसमान में।
हटाने की इसको जुगत लड़ाते रहो।।
एहसास गुनाहों का याद करना ही होगा। 
खुद से नजरें चुराकर अब न बचते रहो।।
नस्लें आने वाली करेंगी कभी न माफ हमको।
सो सबक कुछ भले भी खुद को सिखाते रहो।। 
परिंदे,दरख्त,चौपाए सभी हैं खौफजदा हमसे।
हो आदम तो अपनी इंसानियत बचाते रहो।।
क्या हाल-बेहाल कर दिया है कायनात का तुमने। 
"उस्ताद" सोचो वरना तो हाथ  फिर मलते रहो।।
@नलिन#उस्ताद 

Monday, 4 November 2019

गज़ल 266:अपना ही जब न हो सका आदमी

अपना ही ये जब न हो सका आदमी।
गैर का भला क्या खाक होगा आदमी।।
सितारों में दुनिया बसाने का ख्वाब है पाले हुए।
जमीं में ही ठीक से आता नहीं चलना आदमी।।
हवा,पानी,मिट्टी लो ये जहरीले सभी हो गए। 
हद है मगर नहीं अब तलक जागा आदमी।।
यूँ जो ठान कर हौंसले से जब-जब ये चल पड़ा।
नामुमकिन को भी है मुमकिन बनाता आदमी।
भीड़ ही भीड़ है चारों तरफ यूँ तो आजकल।
लीक से हटके भी दिखाता है चलना आदमी।।
शौक तो बड़ा है "उस्ताद" कहलवाने का।
काश पहले थोड़ा ये बन तो जाता आदमी।।
@नलिन#उस्ताद

दो पुस्तकें संगीत पर

इधर मुझे शास्त्रीय संगीत पर आधारित दो पुस्तकें  पढ़ने का मौका मिला।इसमें एक तो ध्रुपद के प्रख्यात गायक गुंडेचा बंधु के द्वारा शीर्षस्थ संगीतज्ञों  से संवाद पर आधारित है।इस पुस्तक का नाम है "सुनता है गुरु ज्ञानी" इसमें कुल 11 उस्तादों से संवाद है जिनमें उनके गुरु जिया फरीदुद्दीन डागर के साथ ही अन्य चर्चित उस्ताद शामिल हैं।इनमें पंडित भीमसेन जोशी,पंडित जसराज, पंडित हरिप्रसाद,किशोरी अमवकर,अमजद अली खान साहब जैसी संगीत की  दिग्गज  हस्तियां शामिल हैं।क्योंकि यह संवाद स्वयं एक प्रबुद्ध ख्याति प्राप्त गुंडेचा बंधुओं के द्वारा हुआ है तो स्वाभाविक  ही इसमें संगीत की बारीकियों पर गहन विचार-विमर्श और संवाद हुआ है। इस तरह की यह मेरी समझ में पहली और विलक्षण कृति है जिसका संगीत के रसिक लोग अवश्य आनंद उठाना चाहेंगे।दूसरी पुस्तक भी शास्त्रीय संगीत पर आधारित तो है पर इसका आधार फिल्म के गीत-संगीत से जुड़ा है। इसमें उन ढेर सारे गानों की  जानकारी है जो बताती है कि वह संगीत के किन आधारभूत रागों पर पल्लवित पुष्पित हुए हैं।शिवेंद्र कुमार सिंह और गिरिजेश कुमार जो मूलतः पत्रकार हैं उनके द्वारा यह एक रचित रोचक प्रशंसनीय कृति है। "रागगिरी" पुस्तक में संगीत की कुछ बुनियादी बातों को समाहित करते हुए 66 रागों को आधार बना कर ढले लोकप्रिय गीतों का जिक्र है तो वहीं  पुस्तक को अधिक पठनीय बनाने के लिए उस गीत- संगीत ,गायक या अन्य  किस्म के  संबंधित जुड़े किस्से सम्मिलित किये गये  हैं जिससे पुस्तक  की रोचकता में वृद्धि  हुई है।कुल मिलाकर दोनों ही पुस्तकों ने मुझे शास्त्रीय संगीत पर नई जानकारी  दी सो आपसे इन्हें मुखातिब  कर  रहा हूॅ।

Saturday, 2 November 2019

गज़ल-265:अपने ही शहर में

अपने ही शहर में हमें तो कोई भी जानता नहीं।
रहे किसी के कातिल नहीं सो पहचानता नही।।
ये सच नहीं कि मैं झूठ कभी बोलता नहीं।
हाँ किया हो वादा तो फिर पीछे हटता नहीं।।
भीड़ तो बढ़ रही खूब जहीन आलिम फाजिलों की। मुश्किल यही कि आदमी अब भी कोई मिलता नहीं।।
आँख से दर्द है कि बढ़ता ही जा रहा बिछुड़ने का। 
हद ये है आँख से एक भी कतरा क्यों रिसता नहीं।। 
मुद्दतों बाद मिले हैं उनसे तो दुआ-सलाम भी हुई।
जाने क्यों फिर भी रिश्ता पुराना सा महकता नहीं।।
लिखने को तो लिखता रहा हूँ खोल कर अपना दिल।
तौबा मगर जज़्बात कभी भी मैं अपने बेचता नहीं।।
समझाता था उन सबको उनके ही भले की बात मगर।
"उस्ताद"की बात पर अमल यहाँ कोई करता नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

Friday, 1 November 2019

गजल-264:चेहरे से हटा कर जुल्फें

चेहरे से हटा कर जुल्फें फिर बार-बार गिराते हैं।
अपनी अदाओं से कातिल वो तो बस जलाते हैं।।
बहुत गुरूर है अपने जिस्म की रानाई* का।*सुन्दरता 
तभी तो हुजूर हमें भाव बहुत दिखाते हैं।।
निगाहों से निगाहों का पैमाना टकरा के जो है छलका।
इल्जाम देखिए अब किस पर ख़ूबसूरती से लगाते हैं।।
मिलाते नहीं निगाह ये भी एक अजब किस्सा रहा।
गैर की पर आड़ ले अक्सर वो हमें ही सुनाते हैं।।
ठुकरा दिया अपना जिन्हें शागिर्द बनाने से। 
वही खुद को अब असल "उस्ताद" बताते हैं।।
@नलिन#उस्ताद