Monday, 26 November 2018

गीत :संभल कर बोलने पर भी

संभलकर बोलने पर भी कभी,शब्द बिखर जाते हैं।
अर्थ का बड़ा अनर्थ कर,राग-द्वेष जगा जाते हैं।।

प्रीत हो यदि गहरी किसी से भी किसी जन की।
दूर रहते भी सतत मन के तार जुड़ जाते हैं।।

हो हौंसला मंजिल को अपनी पाने का उमंग भरा।
सतरंगी सपनों को हकीकत के पंख लग जाते हैं।।

सुधा रस भरे नेह के आखर जब निकलें हमारे मुख से।
कठोर से कठोर हृदय भी देखो क्षण में पिघल जाते हैं ।।

पुचकार कर कंधे पर हाथ रख कर सहला जो दो ।
हों भटकते कदम लाख किसी के वो सम्भल जाते हैं।।

निष्कपट साधना जो नित्य ही सहज करते रहें।
परमेश्वर अखिल विश्व के दिख हमें जाते हैं।।

यह सत्य है कि नर में ही छिपे रहते हैं श्रीहरि नारायण।
समझते-बुझते फिर ना जाने क्यों हम भटक जाते हैं।।

जात-पात,कुल-धरम-भेद सब परे छोड़कर जो बढ़ें।
उर सरोवर निर्मल "नलिन" शतदल खिल जाते हैं।।

गजल-39 दीप जलाते रहिए

दिलों से दिल के दीप जलाते रहिए।
देव दीपावली हर दिन आप मनाते रहिए।।

राम की हस्ती तो कहा नाप सकेंगे हम-आप।
खुद को जरा-जरा उसके पासंग बनाते रहिए।।

बुतों को पूजना भी इबादत है तभी सच्ची। किरदार जब अपने पाकीजगी बढ़ाते रहिए।।

चैन की सांस ना लीजिए मार के संग शैतान पर।
शैतानी सोच पर सवाल खुद की भी उठाते रहिए ।।

माना जख्म गहरे लगे हैं वफा निभाने से।
बीती कड़वी बात पर हर-हाल भुलाते रहिए।।

मकड़ी के जाल की मानिन्द जकड़ लेगी दुनिया।
अपने "उस्ताद"-ए-हुनर से खुद को बचाते रहिए।।

@नलिन #उस्ताद

Saturday, 24 November 2018

गजल-36 बस प्यार से देख लो

बस प्यार से देख लो हमें सलाम हो जाएगा।
लब कहीं गर खिले तेरे तो कलाम हो जाएगा।।

सांस-सांस में जो राम का नाम जपता रहे। रंजो गम से हर एक आराम हो जाएगा।।

वो जिस भी लिबास में आ जाएंगे महफिल में।
देखना फैशन बाजार में आम हो जाएगा।।

लगन होगी जो यारब प्यार में किसी के सच्ची।
आंखों-आंखों से ही दिले पैगाम हो जाएगा।।

खुदा ने जब बरसाई इनायत नाचीज पर।
"उस्ताद"का मशहूर तो नाम हो जाएगा।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-35 दिल को बहलाता है

कैसे-कैसे दिल को बहलाता है आदमी।
खुद से तभी खुद को बरगलाता है आदमी।।

दिलों को दिल की बात जब बतलाता है आदमी।
गुनगुनाता तो कभी गजल सुनाता है आदमी।।

कुछ तो चल रहा होता है गुपचुप दिल में उसके।
जुल्फें पेशानी की जब सुलझाता है आदमी।।

दिल बहुत बारीकी से अपना हर पल खंगाले।
तब कहीं खुद को खुद से जगमगाता है आदमी।।

उतर कर गहरे दिल में किसी के जब विचारता है।
फैसला तब कहीं उसका समझ पाता है आदमी।।

"उस्ताद" पहचान ले अपनी तदबीर-ए- ताकत जो।
असल अपनी तकदीर का खुद विधाता है आदमी।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 23 November 2018

गजल-34 चांद रुपहला

किसी तरह मन को हमने दिया बहला अपने लिए।।
वो तो चाहता ही था चांद रुपहला अपने लिए।।

कहां किसी के दिल की धड़कनों को वो गिनेगा।
कमबख्त वो तो है सदा उतावला अपने लिए।।

सिखाया ही नहीं गया ना सुनना बचपन से उसे।
सो हक में ही वो तो चाहता फैसला अपने लिए।।

मुफलिसी के दौर में दिन-रात चबा लोहे के चने।
तिनके-तिनके जोड़ बनाया घोंसला अपने लिए।।

अब रहे सबके दिलों में चैनो अमन सदा। "उस्ताद" क्या चाहिए हमें भला अपने लिए।।

@नलिन #उस्ताद

गजल-33 बहुत सादा सादा

बहुत सादा-सादा सा यार आशियाना है मेरा। दिल मगर देखना बड़ा मस्त सूफियाना है मेरा।।

दरवाजे हैं मगर दस्तक की जरूरत नहीं पड़ती।
खुद के भीतर तो रोज ही आना-जाना है मेरा।।

होंगी टेढ़ी-मेढ़ी राहें किसी शख्स की नजर में। जिंदगी का फलसफा उम्मीद-ए-आशिकाना है मेरा।।

खुदा-ए-नूर अपने जलवों से नवाजे है हर रोज।
बड़ा पुराना दरअसल उससे याराना है मेरा।।

तू है मेरे भीतर ही जब है कायनात सारी।
यहां तो नहीं कोई भी जो अनजाना है मेरा।।

खुद से ही गा-बजा लिया और खुद को ही दाद दे दी।
"उस्ताद" शिवोहम का गीत तो मालिकाना है मेरा।।

@ नलिन #उस्ताद

Thursday, 22 November 2018

गजल-32 लोग आते हैं

लोग आते हैं घर के अब बंजारों की तरह।
पाहुन* भी आते हैं कहां दिलदारों की तरह।।
*मेहमान

जमाने की लगी देखो हवा इन बादलों को भी।
बरसते कहां डोलते हैं बस आवारों की तरह।।

बहती रही दरिया ए जिंदगी हमारे ही सहारों पर।
रहे कोरे भीगे कहां जरा भी हम किनारों की तरह।।

मौत आ गई अब और कितनी बार आएगी भला।
लुत्फ लेंगे असल अब आसमां से सितारों की तरह।।

मां बाप के साए से महरूम मासूम बचपन।
लावारिस फिरते हैं यहां से वहां बेचारों की तरह।।

ठीक से दिखता है ना देता है सुनाई कुछ बुढ़ापे में।
"उस्ताद" मचलता है दिल सदा मगर कुंवारों की तरह।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 21 November 2018

श्रीराम नाम महिमा

            श्रीराम नाम महिमा
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

हर सांस-सांस मन राम-राम जो जपता रहे। सघन माया से संसार कि वह बचता रहे।।

कर्मकांड,ध्यान,धारणा इनसे भी है मन सधे। निर्मल मन पर एक राम नाम सब कुछ सधे।।

कोटि-कोटि जन जो इस नाम की शरण लेकर चले।
हर असंभव दुरजेय लक्ष्य को वह प्राप्त करते चले ।

हर नशा व्यर्थ है जब राम नाम लौ तुझमें लगे। झूम-झूम मदहोश हो भीतर ही अपने नाचने लगे।।

अद्भुत विलक्षण इस नाम की महिमा संत गाते मिले।
देह में रहते हुए जीव को फिर सहज मोक्ष मिले।।

कितना भी कोई पातकी,निकृष्ट व्यभिचारी बने।
श्री राम नाम शरणागत ले पुनः पुनीत अधिकारी बने।।

@नलिन #तारकेश

Monday, 19 November 2018

गजल-31 मन गेरुआ

सांई कब रंगोगे तुम मेरा मन गेरुआ।
यूं तो मैंने वसन* देख लिया पहन गेरूआ।।
*कपड़ा

चढ़ते-उतरते,अर्श और फर्श आसमान के। आफताब* करता है उसकी परछन गेरुआ।।
*सूरज

वतन की खातिर जो अपनी देते हैं शहादत। यारों होता है उन सभी का तन-मन गेरुआ।।

सप्तलोकों को देखने की ताकत जो अता फरमाए।
तीसरी हमारी आंख का रंग भी है  गहन गेरुआ।।

राधा-मीरा ने दुनिया जहां से बगावत करी। रग-रग में भरता इंकलाबी रसायन गेरुआ।।

दुआ मांगे तभी तो "उस्ताद"बार-बार रब से यही।
भूल कर वजूद वो अपना पहन नाचे मगन गेरुआ।।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 18 November 2018

गजल-30 पाकीजगी खुद से

याद तुझे मेरी हर हाल आनी होगी।
भूल जाने की बात यार बेमानी होगी।।

गले आ गई अब तो जान आफत में मेरी।
सोच कर यही कि डगर तेरी भुलानी होगी।।

तू जैसा है मुझे कबूल है हर तरह से।
बता फिर भला क्यों कोई शै छुपानी होगी।।

खरीद लो जो चाहे धन-दौलत से तुम।
पाकीजगी तो खुद से कमानी होगी।।

प्यार,दुआ भरे या अश्क मेरी झोली में।
फकीर को कबूल तेरी हर निशानी होगी।।

भला क्या है कहो ढका-छुपा रहता खुदावंद से।
उसे बता फिर"उस्ताद"क्यों कोई बात बतानी होगी।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 16 November 2018

गजल-29 पवनचक्की की तरह

पवनचक्की की तरह मन ताबड़तोड़ चलता है।
अच्छे बुरे विचारों के संग गजब दौड़ता है।।

लहरें उठती है समंदर में जैसे पूनम की रात। मन तो हम सब का वैसा हर पल,दिन-रात बहकता है।।

हिमालय सा ठंडा तो ज्वालामुखी सा है कभी उफनता।
गिरगिट के जैसे मन मेरा भी हजारों रंग बदलता है।।

धोखाधड़ी करने में है खुद से भी बड़ा होशियार।
जिद पूरी करने को जिरह अजीबो-गरीब करता है।।

लाख समझाओ नेक रास्ते पर चलने को इसको।
बुराई पर ये तो और-और सरपट फिसलता है।।

मन को जो जीत सके तो "उस्ताद" बन जाए हर कोई।
हौंसला इंसा तो मगर ऐसा विरले ही बनता है।।

Thursday, 15 November 2018

गजल-28 ददॆ तो होते हैं

ददॆ तो होते हैं हमें सबक सीखने को।
गलतियां जो करीं उन्हें बस सुधारने को।।

उनसे जो हम करने लगें हैं मोहब्बत।
गमे इंतहा की असल मौज देखने को।।

रास्ते जुदा-जुदा हैं तो चल यूं ही सही।
मिलना पर जरूर कभी हमसे झगड़ने को।।

बातों से निकाल ही लेते हैं बात कोई न कोई।
ढूंढते हैं मौका कुछ लोग जो अक्सर उलाहने को।।

अंगारों पर चलने की कोशिशें बचपना हैं।
झुलसती जिन्दगी बढो जब मायने भरने को।।

"उस्ताद" तुम भी कसम से ना,भोले हो बड़े।
पीते हो इतनी क्यों महज गजल लिखने को।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 14 November 2018

गजल-27 बच्चा

दिल में हमारे बड़ा मासूम रहता है बच्चा।
जरा में रूठे और जरा में हंसता है बच्चा।।

दुनिया के पेंचोखम से नादान,अलहदा है।
तभी तो मस्त हो कुछ भी कर सकता है बच्चा।।

फूलों की तरह तितलियों के जज्बात समझता।
भरा सादगी से तभी तो महकता है बच्चा।।

सहने को सह सकता है हर मुश्किलों का दौर। बिना मां बाप के पर बड़ा तरसता है बच्चा।।

कभी तो है लगता पागल,सिरफिरे हैं हम ही । दुनियादारी को असल तो समझता है बच्चा।।

जमाना है बदल रहा मगर तेजी से अब तो।
कौड़ीयों के भाव सबको बेचता है बच्चा।।

छू लूं आसमां को या सोख लूं समंदर एक घूंट में।
"उस्ताद"का दिल तो ताउम्र सारी रहता है बच्चा।।

Tuesday, 13 November 2018

गजल-23

वक्त की मार पड़ी और बेसहारा हो गए।
भंवर वो छोड़ कश्ती हमसे किनारा हो गए।।

दिल लगाकर गैर से वो अंजान बने रहे। सबकी नजरों में तो हम बस बेचारा हो गए।।

कौन सा नापाक करम था जो ना किया उसने।
उल्टे तोहमत मढ रहे कि वो नकारा हो गए।।

जो अपनी जमानत पर मुंह छुपाते रहे।
वो ही कहते हैं आप आवारा हो गए।।

अपने पहलू में जो दी जगह हुजूर ने हमें। सबकी आंखों के चहेते हम सितारा हो गए।।

भीतर की रोशनी में जो अपनी नहा चुके। "उस्ताद" वो ही सब का सहारा हो गए।।

@नलिन  #उस्ताद

Monday, 12 November 2018

गजल- 22

जलवों का हर तरफ तेरे ही एक शोर है।
होती तेरे नाम से मेरी अब भोर है।।

उसके किस्सों की चर्चा कब तक करूं।
नशा तो उसका उतरा पोर-पोर है।।

बनो चाहे खलीफा कितने ही बड़े तुम।
उसके हाथों में रहती सब की डोर है।।

उठो,जागो,समझो अभी भी वक्त है।
बार-बार हमें कहता वो झकझोर है।।

नजरों से मिलाकर नजरें बात करता नहीं। लगता है कोई तो उसके दिल में चोर है।।

लाख समझाओ दो दुहाई ऊंच-नीच की।
चाह पर अपनी कहां चलता मगर जोर है।।

हमने तो उसे अब अपना "उस्ताद" बना लिया।
इनायतों का कहां उसकी बता ओर-छोर है।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 6 November 2018

गजल-17

सबको दिपावली की ढेर सारी बधाई
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घर-घर लो हो गई हर तरफ रोशनी दिवाली में।
उत्साह,उल्लास,उमंग कि बोहनी दिवाली में।।

लक्ष्मी खिलखिला नाचती डूब के गहरे जश्न में।
रिद्धि-सिद्धि संग गणेश की खूब छनी दिवाली में।।

मची खूब होड़ देखो एक दूजे का करने को मुंह मीठा।
लज्जत-ए-पकवानों की खुशबू तो है महकनी दिवाली में।।

परिधानों में बढ़कर एक से एक सजे हैं सभी। वणिकों* की भी बढ़ रही है आमदनी दिवाली में।।*व्यापारी

क्या खूब जमीं से आसमां तक दिख रहे आतिशबाजी के नजारे।
फुहारों से इंद्रधनुषी सजी मस्त रजनी* दिवाली में।।*रात

इल्तजा बस यही है उस अपने परवरदिगार से।
दिलों में हो"उस्ताद"सब के रोशनी दिवाली में।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 5 November 2018

गजल-16

हां ये सच तो है मैंने तुझसे प्यार किया है।
या खुदा तुझ पर हर हाल बड़ा एतबार किया है।।

कहते हैं लोग अक्सर देते हुए ताना मुझको। प्यार में तूने कैसा हाल ये यार किया है।।

मुझको कतई परवाह नहीं जो होगा देखा जायेगा।
तुझे रिझाने खातिर वैसे नख-शिख ये सिंगार किया है।।

तेरे-मेरे बीच की बातें क्यों भला जगजाहिर हों।
याद रखना भूल ना जाना हमने जो करार किया है।।

ये सही बात की जिस्म की कश्ती वहां जाती नहीं।
दरिया-ए-इश्क तो"उस्ताद" रूह से पार किया है।।

Saturday, 3 November 2018

गजल-14

इशारों-इशारों में सारी वो तो बात करते हैं।
कभी अदा तो कभी हमको निगाहों से मारते हैं।।

हम भी हो चुके हैं उनके अब तो बड़े मुरीद।
हर जगह अब तो बस उनको ही देखते हैं।।

प्यार करता कहां कोई ये तो है हो जाता।
पुराने जन्मों के भी तो कुछ हिसाब रहते हैं।।

करो प्यार तो कतई ना डरो जमाने भर से।
खुदा भी हकीकी* प्यार की इबादत करते हैं।।*सच्चे

जाने कितना कहा गया और कहा जायेगा मुद्दतों।
मायने भला प्यार के कहां कर हम बखान सकते हैं।।

ता उम्र कुछ है जो अधूरेपन का दिलाता अहसास।
तलाश में जिसकी जिस्म दर जिस्म हम युगों भटकते हैं।।

वो जैसा है उसे बस वैसा ही अपना लो।
"उस्ताद"प्यार में नहीं गणित के नियम  चलते हैं।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 2 November 2018

गजल-13

मुझे बहुत बार-बार समझाता दिल मेरा।
प्यार दरअसल बहुत बरसाता दिल मेरा।।

मौत से अक्सर मुठभेड़ को तैयार दिखता। कभी बेबात है मगर रूलाता दिल मेरा।।

जोश,जज्बा लिए फिरता कभी तो लोहे सा। कभी बन के ये पारा फिसल जाता दिल मेरा।

जाने किस चीज पर मचल जाए बच्चे सा। बड़ी मुश्किल से हूं समझाता दिल मेरा।।

गलत रास्तों का ही नहीं केवल मुन्तजिर*।
नूरे हक भी कभी जगमगाता दिल मेरा।।
*प्रतिक्षारत

कदमों में"उस्ताद"के जब-जब सजदा किया।
लगा बढ के वो गले महकाता दिल मेरा।।