Wednesday, 4 July 2018

गजल-105 बेफजूल बातों से हुजूर जरा बचे रहिए

बेफजूल की बातों से हुजूर जरा बचे रहिए।
सदा बना दूरी बस कहने से खरा बचे रहिए।।

सूखी-बासी जैसी भी मिले रोटी पेट भर लें।
झूठ,बेईमानी का मगर कचरा बचे रहिए।।

दर्द में होगा तो कराहयेगा ही वो तो।
मजाक उड़ाने से लेकिन गहरा बचे रहिए।।

दौलत,शोहरत कमाना तो कुछ बुरा नहीं यहां।
लेने से गलत सोहबत का आसरा बचे रहिए।।

पीठ पीछे मारते हैं खंजर सभी यूं तो।
हरकतों से ऐसी पर आप जरा बचे रहिए।।

नजर है आजकल"उस्ताद"आप पर सबकी। दिखाने से सरेआम चेहरा बचे रहिए।।

@नलिन #उस्ताद

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