Saturday 14 July 2018

उमड़ घुमड़ घिर आए बदरा:भीगन लागे तन मन सगरा

उमड़ घुमड़ घिर आए बदरा:भीगन लागे तन मन सगरा
************************** बैठे-बैठे अचानक मन गुनगुनाने लगा।उमस से बेहाल मुझको हवा के झोंके ने हल्की रसभरी थपकी दी।लगभग उछलते हुए मैंने खिड़की तक आकर आकाश को निहारा तो अनुमान सही निकला।काले-काले,घने बादलों की लंबी चौड़ी फौज अपनी पीठ पर टनों
लीटर पानी की राहतकारी खेप लेकर धमाचौकड़ी मचाते गश्त में दिखी। उन्हें देख मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा। मुझे बादलों से की गई कल रात वर्षा को लेकर एक काव्यात्मक मनुहार पर इतनी त्वरित कार्यवाही की उम्मीद कतई नहीं थी पर हाथ कंगन को आरसी क्या? देखा मेघदूत गाजे-बाजे संग उमड़-घुमड़ करते हुए प्रकृति को हरित नवयौवन देने उतावले से उछलते-कूदते बढे आ रहे थे। वर्षा ऋतु क्योंकि मेरी प्रिय ऋतु है अतः बादलों को देखते ही मेरे मन में भी बहुत कुछ उमड़ने-घुमड़ने लगता है। लगता है मैं भी हल्का हो गया हूं।रूई के फाए सा हल्का। यानी इन बादलों सा ही। बावजूद की अंदर से भी इनकी ही तरह पोर-पोर तक भरा हुआ हूॅ। और जब तक अपने भीतर की गागर को खाली नहीं करूंगा बेचैन ही रहूंगा।सो उस बेचैनी में ही बिन घुंघरू नर्तन को तत्पर रहता हूं।
इस ऋतु में बहुत कुछ ऐसा है जो एकदम अलहदा,अप्रतिम है। पहली महत्वपूर्ण बात तो यही है कि यह मार्तंड की तीक्ष्ण रश्मियों से मन-मस्तिष्क को राहत देने वाली ऋतु है। प्रकृति को पोषित करने वाली ऋतु होने से पात-पात को हरित आभा देने की महती भूमिका इस कारण यह पूर्ण निष्ठा से निभाती है। गरमी के तीखे प्रहारों से जब पेड़-पौधे, पशु- पक्षी और संपूर्ण मानव जाति त्राहिमाम त्राहिमाम  की गुहार लगाती है तो यही है जो अपनी झोली से संजीवनी निकालती है।यदि कहीं खुदा ना खास्ता इसके आने में अधिक विलंब हो जाए तो अकाल की भी भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। वैसे इसकी अधिकता भी बाढ़ की विभीषिका का प्रसव करने से जान-माल की व्यापक क्षति करती है जो इसका एक दुखद पहलू है। लेकिन इसमें तो कोई अतिरंजना नहीं है कि बगैर इसके सृष्टि का सारा कारोबार चौपट हो सकता है। वर्षा ऋतु जहां एक और प्रेम की युगल बेल को प्रेमालाप की विविध चितेरी इंद्रधनुषी क्रिडाओं से सींचती, पनपाती है वहीं वह एक दूजे के विरह में जल रहे प्रेमी युगलों की आन्तरिक भावनाओं की भी मुखर अभिव्यक्ति समान रूप से करने में समर्थ रहती है । इससे इतर वर्षा ऋतु का जो सबसे मनमोहक पक्ष मुझे आकर्षित करता है वह यह है कि इसके द्वारा आध्यात्मिक यात्रा के श्रद्धालु पथिकों को भवसागर से पार ले जाने के कार्य में भी अहम योगदान गाहे-बगाहे दिया जाता है। पहले के समय में वर्षा ऋतु के चलते परिव्राजक, संत, महात्मा चरैवति के अपने सिद्धांत को शिथिल कर एक स्थान पर ही आसन लगाकर साधना में लीन हो जाते थे। कारण बहुत स्वाभाविक था कि लगभग सारे मार्ग जलभराव एवं अन्य संबंधित दिक्कतों से जूझ रहे होते थे अतः कहीं सुरक्षित स्थान पर अल्पाहार पर जो कुछ संयोग से उपलब्ध हो जाता उसके बलबूते और मूलतः ईश्वर का स्मरण,मनन, चिंतन करते हुए उसके आश्रयाधीन ही रहते थे।  वर्षा का प्रभाव आठों प्रहर अलग-अलग रूप में परिलक्षित होता है। प्रातः, मध्याह्न, रात्रि मुख्यतः इन तीन समय ही यदि हम देखें तो वर्षा का नितांत भिन्न-भिन्न सा प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। सुबह उसकी छटा अलग रंग दिखाती है और दोपहर में अलग और रात्रि में तो बिल्कुल ही अलग।रात्रि में इसकी अनगढता और रहस्यात्मकता गहनता से उभर कर आती है। बिजली की चमक और मेघों का घर्षण तो दिन में थोड़ा-बहुत नजर अंदाज किया भी जा सकता है पर रात्रि में इसका गहरा प्रभाव आपकी कल्पना को एक नूतन क्षेत्र में ले चलता है। सरिता के आसपास, सागर के किनारे,बियाबान जंगल, उपवन ,खुले स्थान पहाड़ ,रेगिस्तान सब जगह इसकी छुवन,बौछार एक अलग ही एहसास लेकर आती है। इसमें से सत्, रज, तम तीनों तत्वों का अद्भुत प्रस्फुटन होता है। वर्षा में भीगते हुए नृत्य करना आजकल रेन डांस के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हो रहा है। इसका कारण प्रकृति से सीधा संवाद है। यद्यपि इस प्रकार के रेन डांस में व्यावसायिकता का पुट ज्यादा है। अतः इसके बगैर अपनी छोटी सी छत पर बरखा का आनंद लेना आपको आह्लादित  कर देता है। क्योंकि प्रकृति से संवाद का अर्थ ही होता है,अपने से संवाद।अतः यह जितना कृत्रिमता से दूर होगा उतना स्वच्छ, पारदर्शी आपका अपने से संवाद के लिए आधार बनेगा ।आपको अपनी मनोदशा के अनुरूप वर्षा में भीगते हुए लगेगा कि आप पर सगुण ईश्वर की,निरगुन परमसत्ता की या अहम् ब्रह्मास्मि के भाव से खुद की ही ,तन-मन पर कृपा की अटूट बौछार हो रही है।ऐसी बौछार जो मदमस्त हवा के झोंकों सी उल्लास-उमंग के झूले पर बैठा सप्तलोक की पेंगों से आप्लावित है। यद् पिंडे तद् ब्रह्मांडे अर्थात आप और ब्रह्मांड में, आत्मा और परमात्मा में जो एकात्मकता है उसका झीना-झीना परदा धीरे-धीरे हटने लगेगा और वर्षा ऋतु यह सब बड़ी सदाश्यता से ,सहजता से मुक्त हस्त देने को तत्पर दिखती है। तो आइए इस सावन अपने सब संकोच, बंधनों की छतरी हटाकर खुले मन से मुक्ताकाश में थिरक कर प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम,इसका अनुभव कर देखते हैं।

@नलिन #तारकेश

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