Sunday, 1 July 2018

गजल-232:हुजूर दिल को......लगा लीजिए


हुजूर दिल को अपने कहीं लगा लीजिए।
न सही इबादत तो जुल्फ में बसा लीजिए।।

जाना ना पड़े इबादत के लिए दूर कहीं।
दिल को ही अपने मंदिर बना लीजिए।।

दलीलों के तीर होना तरकशे-जुबां में अच्छा है।
बेहतर तो ये है उनको ही आप रिझा लीजिए।।

दर्द हो तभी जाना ठीक है चारागर*के पास। पहली नजर जरूरी नहीं दिल लगा लीजिए।। 
*डाक्टर
माना बोलता होगा वो बहुत सच्चा और मीठा।नेता अमल करता नहीं शर्त ये लगा लीजिए।।

सुनाइए एक गीत ऐसा हर दिल के तार जो बजा दे।
बेसाख्ता जुबां निकले वाह सुर ऐसा लगा लीजिए।।

कड़ुवी सच्चाईयों से मुॅह मोड़ना "उस्ताद"
ठीक नहीं।
मीठा-मीठा ही नहीं कभी तीता भी जुबां लगा लीजिए।।

@नलिन #उस्ताद

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