Monday, 30 July 2018

आखर-आखर

आखर*-आखर सब मोती हो गए।*शब्द
दिल से निकले तो सच्चे हो गए।।

देख जज्बा प्यार का सब के लिए।
हम तो बड़े मुरीद उनके हो गए।।

मंदिर-मस्जिद जाएं भला हम क्यों।
आईने में जब रूबरू हो गए।।

नजरों से हटा जब भेद तेरे-मेरे का।
फासले फिर अपने तो सारे दूर हो गए।।

हुआ उस गुलफाम* से जब इश्क हमारा। चर्चा में सारी दुनिया के हम हो गए ।।
*फूलों के समान रंग वाला

"उस्ताद"की आंख में दिखी दुनिया।
तब से हम उसके शागिदॆ हो गए।।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 26 July 2018

गजल-66 सजदा हो गया

उसकी चौखट पर जो कभी सजदा हो गया।
जिंदगी को जीना आसान अदा हो गया।।

कांटे मिलेंगे रास्ते में तो मिलते रहें।
मंजिलों से तो अपनी तजुरबा सदा हो गया।।

ज्यादा दूर की सोचें भला हम क्यों।
भरोसा जब खुदा पर कायदा हो गया।।

गिने किसी की कमी बिना देखे खुद को।
वो तो खुद में ही एक आपदा हो गया।।

चांद के चेहरे पर दाग है तो क्या हुआ।
है उजला दिल तभी तो वो अलहदा*हो गया।।
*विशिष्ट

आओ कमा लें कुछ सवाब*हम अपने लिए।*पुण्य
यूं कौन जाने चश्म**कब परदा हो गया।। ** आंखें

"उस्ताद" तुम भी कहां किस सोच में हो डूब गए।
सारा जहां ही जब तन्हा यदाकदा हो गया।।

सौभाग्य से

गुरु के दरबार में लगती है हाजिरी बड़े ही सौभाग्य से।
जनम-जनम की होती है सभी साध पूरी बड़े सौभाग्य से।
वो तो रग-रग को जाने,बिना कुछ बतलाए बड़े सौभाग्य से।
एक चुटकी बजाते हर मुश्किल को करता आसान बड़े सौभाग्य से।
ये पावन पर्व जो आज आया अपने जीवन में बड़े सौभाग्य से।
आओ सब करें गुरु स्तुति को मिल-जुल  गाकर बड़े सौभाग्य से।
यही कामना,यही आराधना करते रहें हम बड़े सौभाग्य से।
नित रति बढे हम सबकी श्री चरनन  गुरु के बड़े सौभाग्य से।
जीवन में शतदल खिले निर्मल "नलिन" बड़े सौभाग्य से।
बन मधुकर कृपा रस पी लें आओ हम सभी बड़े सौभाग्य से।

@नलिन #तारकेश

चैन होना चाहिए

कुछ हो ना हो भले पास हमारे चैन होना चाहिए।
यकीं ना हो चाहे खुदा पर खुद पर होना चाहिए।

दौलत,शोहरत होगी मिलनी तो मिल जाएगी। चस्का मगर तुझे ना पागलों सा होना चाहिए।

तकलीफ खड़ी हों रास्ता रोककर लाख हमारा।
मंजिल चूमने को अपनी जुनून होना चाहिए।। 

वो जो धूप,ठंडी,बरसात में जूझते हैं वतन की खातिर।
असल ऐसे जिंदगी के नायकों का इकराम* होना चाहिए।।*सम्मान

सपना सदा हर "उस्ताद" का  यही एक रहा है।
शागिर्द उस से बढ़कर दो हाथ होना चाहिए।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 25 July 2018

बहे दरिया लबालब प्यार का।

आंखों में उसकी बहे दरिया लबालब प्यार का।
डूब के देखो तो सही गहरा कितना प्यार का।।

घर जो बसा लेता है सभी के दिलों में।
होता है उसके पास तो वीजा प्यार का।।

दिखती है ये कायनात सारी चटक शोख रंगों से सजी संवरी।
अभी देखा ही कहां हुजूर आपने जलवा-ए- फन प्यार का।।

देखते ही जो कभी लगता है बड़ा अपना। जन्मों से उस से होता है रिश्ता प्यार का।।

सूखा दरख्त जो खिल जाता है बहार में।
वो और कुछ नहीं बस कमाल है प्यार का।।

दिल-ए-अजीज जो अब हो गया "उस्ताद" सब का।
राज अगर सच बताऊं तो वो है प्यार का।।

@नलिन #उस्ताद

वो हमारी तो हम उनकी तारीफ करते रहे

वो हमारी तो हम उनकी तारीफ करते रहे।
यूं बसर अपनी जिंदगी खुशी-खुशी करते रहे।

रंजोगम का जोड़ा ना घौंसले में एक तिनका। बस एक दूजे से प्यार ही प्यार करते रहे।।

बात में दम तो है कि होता नहीं कोई किसी का।
जान कर भी अंजान हम इश्क सबसे करते रहे।।

पढ़ ही लेते हैं लोग मासूमियत हमारी।
सब हमसे इसलिए धोखाधड़ी करते रहे।।

देखा जो उसने हमें बड़े ही प्यार से।
बस थम जाएं ये वक्त तमन्ना करते रहे।।

जिस्म का रूप,रंग तो बदलता जाता उमर के साथ में।
सो "उस्ताद" हम रूह से रूह का रिश्ता करते रहे।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 23 July 2018

किया करो

औरों से ना सही किया करो।
खुद से तो गुफ्तगू किया करो।।

जिस्म,लिबास क्यों आंकते भला।
उतर कर दिल में देख लिया करो।।

माना उसे नहीं है अदब का इल्म।
बढ़ के तुम ही हाथ मिला लिया करो।।

आंखों में सपने हैं उस गरीब  के भी।
हो सके तो तुम भी मदद कर दिया करो।।

धन-दौलत ही से नेकी हो ऐसा तो नहीं।
कभी दो बोल मीठे दिल से बोल दिया करो।।

जमाने का क्या है वो तो कहेगा ही।
दिल की "उस्ताद" तुम अपनी किया करो।।

@नलिन #उस्ताद

Sunday, 22 July 2018

ऐसा नहीं है कि मैं उससे प्यार नहीं करता

ऐसा नहीं है कि मैं उससे प्यार नहीं करता। पर है ऐसा कौन जिससे मैं प्यार नहीं करता।।

अमूमन समझते हैं लोग प्यार को जिस्मानी। इस तरह की सोचसे मैं इत्तफाक नहींकरता।।

दिल में भरा है जहर जिसके जमानासाजी* का।*कुटिलता
किसी कीमत उस शख्स को बर्दाश्त नहीं करता।।

बेहिसाब प्यार जाहिर तो कर दिया आंख से। समझ उसे आए तो ठीक यूॅ कहा नहीं करता।

हर हफॆ बदले है जायका सोच का अपनी गूंज से।
बातें तभी तो "उस्ताद" छिछली गंवारा नहीं करता।।

@नलिन *उस्ताद

Saturday, 21 July 2018

क्या कीजियेगा

बहुत नन्हा मासूम है वो तो मगर क्या कीजिएगा।
सत्ता के खेत जा रहा है हांका क्या कीजिएगा।।

बना उसे अपना वो सुल्तान,
"मा-बदौलत" जबरन।
करते हैं उल्लू सीधा सो क्या कीजिएगा।।

गले भी लगाता है आंख से मारते हुए झप्पी।
दाल गलती ही नहीं उसकी तो क्या कीजिएगा।।

आंख मिला कर बताओ तो कोई कैसे बात करे उससे।
गया है सूख उसकी आंख का पानी सो क्या कीजिएगा।।

जिस "हाथ" ने सींचा था कभी वतन ए बागवां हमारा।
खुद ही करता जड़ में कुठाराघात क्या कीजिएगा।।

जो मिला कर हाथ चलते खिल जाता तरक्की का "नलिन" ।
बनता वतन सिरमौर मगर "उस्ताद" क्या कीजिएगा।।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 19 July 2018

छुपा दिया बरखा को

अगवा कर जाने कहां बादलों ने छुपा दिया बरखा को।
चौड़ा कर सीना नाटक करते ऐसे जैसे ढूंढ रहे हों बरखा को।

दादुर,मोर,पपीहा हैं देखो कितने गमगीन सभी मरे-मरे मुरझाते होंठ ढूढ रहे हैं बरखा को।।

जुल्फ घनी-घनी हैं इसकी, चेहरा सुर्ख कपूर सा।
यौवन मदमस्त इठलाता,जाने कहां छुपाया बरखा को।।

छाती फटने को, है गमजदा इस कदर धरती माॅ।
दरख्त बेहाल,थके से सभी ढूंढते बरखा को।।

दुआ का भी असर होगा आखिर कब तक "उस्ताद"कहो तो।।
जागीर समझ हमने भी तो कभी ना पूछा दिल का हाल बरखा को।।

@नलिन #उस्ताद

संजो लिए हमने

आंखों में तेरी ख्वाब सजा लिए हमने।
फसाने सारे हकीकत बना लिए हमने।।

समंदर की आगोश में जब आफताब* चला गया।*सूरज
इंद्रधनुषी रंग हर तरफ बिखेर दिए  हमने।।

पूनम का चांद जो आ गया आज जमीन पर। लो अपने लिबास में सितारे जड़ लिए हमने।।

पारे की मानिंद जिंदगी फिसलती ही जा रही। किनारे छोड़ मंझधार अब तो घर बसा लिए हमने।।

वो चंद लोग जो कहते हैं बहुत डरे हुए हैं हम। है भूल का नतीजा जो बहुत सिर चढ़ा दिए हमने।।

ऐसा नहीं,होगी नहीं कभी गलती"उस्ताद"से। माफीनामे बहुत पहले तैयार कर लिए हमने।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 18 July 2018

आज गली में

हवाएं गुनगुना रही हैं आज गली में।
है मुझे बड़ा इंतजार उनका गली में।।

पड़ता नहीं चैन रहती है बेकरारी अब तो। दिखते नहीं है जब तक मुझे वो मेरी गली में।।

सूरज ढल गया,लो चांदनी संग चांद आया। हम भला खड़े बेकार क्यों यहां इस गली में।।

आने-जाने के सब रास्ते गुजरते रहे यहां से। फिर भला क्यों रूठे रहे नसीब अपने इस गली में।।

अब तो बस बाकी रही यही एक आरजू।
हो मेरी आंखिरी शाम तेरी गली में।

कैसे कहें वो दौर कैसा था जो गुजरे अरसा हुआ।
होती थी इबादत "उस्ताद" निगाह मिलते ही गली में।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 17 July 2018

हमें क्या


तेरे शहर का मिजाज तू ही जान हमें क्या। हम तो हैं फकीर हमारी बला से हमें क्या ।

बोया है जैसा काटेगा वो ही तो भला।
अब अफसोस तू लाख करे भी तो हमें क्या।।

जिंदगी के रास्ते ऊबड़-खाबड़ समतल कहां। नाज-नखरे से ही तुझे फुर्सत नहीं हमें क्या।।

बाल की खाल निकालना ही बन चुका जब उसका शगल।
पेश करो दलीलें लाख आला दर्जे की उसे क्या।।

तालीम हमने"उस्ताद"दे तो दी अच्छी-भली। कसौटी शागिदॆ उतरे ना खरा तो हमें क्या।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 16 July 2018

प्यार का


आंखों में समंदर है उसके गहरा प्यार का। जाता है जहां लहराता है परचम प्यार का।।

मिलें हम सबसे गले दुश्मनी ये छोड़ कर।
बनाएं आशियाना दिल में हरेक प्यार का।।

कत्लोगारत अब पुराने दौर की बात बने।
बस एक नया ऐसा लिखें मुस्तकबिल प्यार का।।

तू भी वही,मैं भी वही,फिर झगड़ा किस बात का।
छोड़ो खटराग सारे,गीत गाओ प्यार का।।

है चार दिन की मियाद बस फिर भला कोहराम क्यों।
आओ"उस्ताद"मिल बैठ लुत्फ उठाएं इस प्यार का।।

@नलिन #उस्ताद

Saturday, 14 July 2018

उमड़ घुमड़ घिर आए बदरा:भीगन लागे तन मन सगरा

उमड़ घुमड़ घिर आए बदरा:भीगन लागे तन मन सगरा
************************** बैठे-बैठे अचानक मन गुनगुनाने लगा।उमस से बेहाल मुझको हवा के झोंके ने हल्की रसभरी थपकी दी।लगभग उछलते हुए मैंने खिड़की तक आकर आकाश को निहारा तो अनुमान सही निकला।काले-काले,घने बादलों की लंबी चौड़ी फौज अपनी पीठ पर टनों
लीटर पानी की राहतकारी खेप लेकर धमाचौकड़ी मचाते गश्त में दिखी। उन्हें देख मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा। मुझे बादलों से की गई कल रात वर्षा को लेकर एक काव्यात्मक मनुहार पर इतनी त्वरित कार्यवाही की उम्मीद कतई नहीं थी पर हाथ कंगन को आरसी क्या? देखा मेघदूत गाजे-बाजे संग उमड़-घुमड़ करते हुए प्रकृति को हरित नवयौवन देने उतावले से उछलते-कूदते बढे आ रहे थे। वर्षा ऋतु क्योंकि मेरी प्रिय ऋतु है अतः बादलों को देखते ही मेरे मन में भी बहुत कुछ उमड़ने-घुमड़ने लगता है। लगता है मैं भी हल्का हो गया हूं।रूई के फाए सा हल्का। यानी इन बादलों सा ही। बावजूद की अंदर से भी इनकी ही तरह पोर-पोर तक भरा हुआ हूॅ। और जब तक अपने भीतर की गागर को खाली नहीं करूंगा बेचैन ही रहूंगा।सो उस बेचैनी में ही बिन घुंघरू नर्तन को तत्पर रहता हूं।
इस ऋतु में बहुत कुछ ऐसा है जो एकदम अलहदा,अप्रतिम है। पहली महत्वपूर्ण बात तो यही है कि यह मार्तंड की तीक्ष्ण रश्मियों से मन-मस्तिष्क को राहत देने वाली ऋतु है। प्रकृति को पोषित करने वाली ऋतु होने से पात-पात को हरित आभा देने की महती भूमिका इस कारण यह पूर्ण निष्ठा से निभाती है। गरमी के तीखे प्रहारों से जब पेड़-पौधे, पशु- पक्षी और संपूर्ण मानव जाति त्राहिमाम त्राहिमाम  की गुहार लगाती है तो यही है जो अपनी झोली से संजीवनी निकालती है।यदि कहीं खुदा ना खास्ता इसके आने में अधिक विलंब हो जाए तो अकाल की भी भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। वैसे इसकी अधिकता भी बाढ़ की विभीषिका का प्रसव करने से जान-माल की व्यापक क्षति करती है जो इसका एक दुखद पहलू है। लेकिन इसमें तो कोई अतिरंजना नहीं है कि बगैर इसके सृष्टि का सारा कारोबार चौपट हो सकता है। वर्षा ऋतु जहां एक और प्रेम की युगल बेल को प्रेमालाप की विविध चितेरी इंद्रधनुषी क्रिडाओं से सींचती, पनपाती है वहीं वह एक दूजे के विरह में जल रहे प्रेमी युगलों की आन्तरिक भावनाओं की भी मुखर अभिव्यक्ति समान रूप से करने में समर्थ रहती है । इससे इतर वर्षा ऋतु का जो सबसे मनमोहक पक्ष मुझे आकर्षित करता है वह यह है कि इसके द्वारा आध्यात्मिक यात्रा के श्रद्धालु पथिकों को भवसागर से पार ले जाने के कार्य में भी अहम योगदान गाहे-बगाहे दिया जाता है। पहले के समय में वर्षा ऋतु के चलते परिव्राजक, संत, महात्मा चरैवति के अपने सिद्धांत को शिथिल कर एक स्थान पर ही आसन लगाकर साधना में लीन हो जाते थे। कारण बहुत स्वाभाविक था कि लगभग सारे मार्ग जलभराव एवं अन्य संबंधित दिक्कतों से जूझ रहे होते थे अतः कहीं सुरक्षित स्थान पर अल्पाहार पर जो कुछ संयोग से उपलब्ध हो जाता उसके बलबूते और मूलतः ईश्वर का स्मरण,मनन, चिंतन करते हुए उसके आश्रयाधीन ही रहते थे।  वर्षा का प्रभाव आठों प्रहर अलग-अलग रूप में परिलक्षित होता है। प्रातः, मध्याह्न, रात्रि मुख्यतः इन तीन समय ही यदि हम देखें तो वर्षा का नितांत भिन्न-भिन्न सा प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। सुबह उसकी छटा अलग रंग दिखाती है और दोपहर में अलग और रात्रि में तो बिल्कुल ही अलग।रात्रि में इसकी अनगढता और रहस्यात्मकता गहनता से उभर कर आती है। बिजली की चमक और मेघों का घर्षण तो दिन में थोड़ा-बहुत नजर अंदाज किया भी जा सकता है पर रात्रि में इसका गहरा प्रभाव आपकी कल्पना को एक नूतन क्षेत्र में ले चलता है। सरिता के आसपास, सागर के किनारे,बियाबान जंगल, उपवन ,खुले स्थान पहाड़ ,रेगिस्तान सब जगह इसकी छुवन,बौछार एक अलग ही एहसास लेकर आती है। इसमें से सत्, रज, तम तीनों तत्वों का अद्भुत प्रस्फुटन होता है। वर्षा में भीगते हुए नृत्य करना आजकल रेन डांस के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हो रहा है। इसका कारण प्रकृति से सीधा संवाद है। यद्यपि इस प्रकार के रेन डांस में व्यावसायिकता का पुट ज्यादा है। अतः इसके बगैर अपनी छोटी सी छत पर बरखा का आनंद लेना आपको आह्लादित  कर देता है। क्योंकि प्रकृति से संवाद का अर्थ ही होता है,अपने से संवाद।अतः यह जितना कृत्रिमता से दूर होगा उतना स्वच्छ, पारदर्शी आपका अपने से संवाद के लिए आधार बनेगा ।आपको अपनी मनोदशा के अनुरूप वर्षा में भीगते हुए लगेगा कि आप पर सगुण ईश्वर की,निरगुन परमसत्ता की या अहम् ब्रह्मास्मि के भाव से खुद की ही ,तन-मन पर कृपा की अटूट बौछार हो रही है।ऐसी बौछार जो मदमस्त हवा के झोंकों सी उल्लास-उमंग के झूले पर बैठा सप्तलोक की पेंगों से आप्लावित है। यद् पिंडे तद् ब्रह्मांडे अर्थात आप और ब्रह्मांड में, आत्मा और परमात्मा में जो एकात्मकता है उसका झीना-झीना परदा धीरे-धीरे हटने लगेगा और वर्षा ऋतु यह सब बड़ी सदाश्यता से ,सहजता से मुक्त हस्त देने को तत्पर दिखती है। तो आइए इस सावन अपने सब संकोच, बंधनों की छतरी हटाकर खुले मन से मुक्ताकाश में थिरक कर प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम,इसका अनुभव कर देखते हैं।

@नलिन #तारकेश

Friday, 13 July 2018

वो जब मेरे गम में


वो जब मेरे गम में शामिल नहीं है।
खुशी में फिर उसकी जरूरत नहीं है।।

होगा वो लाटसाहब लोगों की नजर में।
जी-हजूरी मुझे तो रास आती नहीं है।।

देख लेता हूॅ जब सूरत सभी में उसकी।
मंदिर की मूरत मुझे तो जंचती नहीं है।।

होंगी जगह कई देश-दुनिया में एक से एक बढ़कर।
अपने वतन से बढ़के जगह कोई और लगती नहीं है।।

मिला तो खत हमको उसका लिखा हुआ पर।
उसमें कहीं इजहार-ए-मोहब्बत लिखा नहीं है।।

चलके आए हैं गांव,दूर से नेताजी वोट मांगने।
खिदमत इनकी कीजिए,यूॅ इनको ऐसी आदत नहीं है।।

हैं यूं तो पेंचोखम जिंदगी में कदम दर कदम।
बनाए रखना हौंसला,थक के हारना नहीं है।।

कमजोर,मजबूर का"उस्ताद"फायदा उठाना।
हमको आदत ये उसकी,लगती अच्छी नहीं है।।

@नलिन #उस्ताद

भारतीय अस्मिता से खिलवाड़ करने वाले  मक्कारों के लिए: राजनितिज्ञों,भूतपूवॆ वरिष्ठतम से लेकर छिछले पत्रकारों तक सभी हेतु

भारतीय अस्मिता से खिलवाड़ करने वाले  मक्कारों के लिए: राजनितिज्ञों,भूतपूवॆ वरिष्ठतम से लेकर छिछले पत्रकारों तक सभी हेतु
##############

उतारकर खोल अपना भेड़िए सब हुआ-हुआ करने लगे।
देखा शिकारी को सामने तो विधवा-विलाप करने लगे।।

प्यार,एहतराम से उठा अशॆ* पर इन्हें बिठलाया। *आकाश
मगर ये गुस्ताख,नमक-हराम  सिर पर ही चढने लगे।।

जज्बात,लगाव तो कुछ दिखता ही नहीं वतन के लिए।
हर बात ये बेशर्म हो तिल का ताड़ बनाने लगे।।

सत्ता,कुर्सी से क्या दूर हुए चंद रोज को।
ये तो हर बात पर कपड़े ही उतारने लगे।।

शर्म,हया,लाज सब तो तुमने बेच कर खा ली *कमजफॆ। *नीच
हम ही थे दरअसल नासमझ जो तुझे *अजीम मानने लगे।। *महान

बहुत प्यार,मुहब्बत की बात कर के देख ली इन नामुरादों से।
बात तो बनेगी"उस्ताद"जब आवाम ही पकड़ जुतियाने लगे।।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 12 July 2018

गजल-101 बरसात हो गई

लीजिए हुजूर दुआ आपकी करामात हो गई। लो शहर में आज तो आपके बरसात हो गई।।

पहली बरसात है शहर की थोड़ा भीग लो। छतरी,बरसाती तो बाद की बात हो गई।।

पढ़ लिखकर जबसे यहाॅ लोग *सुखनफहम हुए।*विद्वान
बीमारी ये तबसे बहस की वाहियात हो गई।।

सच-झूठ की अब भला है कहो यहां किसे परवाह।
बातें बस तारिकाओं कि खबरे जमात हो गई।।

अपनी सेना पर जो हर रोज सवाल उठा रहे। वतनपरस्ती तो उनकी खुराफात हो गई।।

आमना-सामना हुआ जब"उस्ताद"से हमारा। गुफ्तगू हमारी अल्लाह से हर रात हो गई।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 11 July 2018

जानि न जाइ राम प्रभुताई

राम कृपा बिनु सुनु खगराई।
जानि न जाइ राम प्रभुताई।। 7/88/6

राम कृपा का ओर-छोर।
है कहाॅ आसान जानना।
हाॅ यदि श्रीराम ही द्रवित हो जाएं।
तो फलित हो सकती है साधना।
वरना तो लाख सिर रगड़ो।
संभव नहीं ये कामना।
दरअसल उनकी कृपा का अनन्त सागर।
असंभव अल्प-बुद्धि का लांध पाना।।

@नलिन #तारकेश

गजल-102 घर के भीतर ही जबसे दुकान हो गई

घर के भीतर ही जबसे दुकान हो गई।
आदत तोल-मोल की पहचान हो गई।।

ना किसी की खातिर रोना,ना हंसना कोई के लिए।
ये मस्त फितरत हमारी सदा को वरदान हो गई।।

पहले तो भाइयों में आपस में छनती बहुत थी।
अब शादी से रोज लगता,गिरस्ती मचान हो गई।।

बार बार देखना पलट के हमको उसका। लगता है उसकी मोहब्बत ऐलान हो गई।।

वतन के खातिर हो गया जवान शहीद देखो। राजनीति मगर कुछ की और जवान  हो गई।।

सपनों में तो आती है रोज मुझसे मिलने।
हकीकत में न जाने क्यों अनजान हो गई।।

देख कड़ी धूप मशक्कत उसे करते हुए।
लबालब भरी ऑखें मेरी थकान हो गईं।।

कट गया सफर ये जिंदगी का राजी-खुशी।
लो अच्छा हुआ "उस्ताद" ए अजान हो गई।।

@नलिन #उस्ताद

Tuesday, 10 July 2018

बतलाओ तुम कब आओगे,काले-कजरारे मेघ

बतलाओ तुम कब आओगे,काले-कजरारे मेघ।
आकुल-व्याकुल तन मन मेरा,अब तो हुआ अचेत।
सूखा-सूखा पथराया सा,रह गया हम सबका ही गेह। 
ओ निष्ठुर-निर्मोही जा के कहां छुपे हो, बतलाओ तुम मेघ।

रस बिन जीवन कितना सूना,जानो तुम तो मेघ।
बरसाते जड़-जंगम तुम ही तो,अमृतकारी नेह।
कातर नयन देख मगन,उमड़-घुमड़ से पाते हैं कुछ चैन।
पर आषाढ प्रदोष भी बीत रहा,क्यों झूठे बहकाते हो मेघ।

अब तो सावन भी खोल किवाड़,आता होगा मेघ।
क्या तप्त-तिक्त अधरों से भला मिलोगे, इस अमंगल वेष।
म्लान हो रही देह कान्ति, दपॆण करने लगा है क्लेश।
तुम तो न थे कभी भी ऐसे फिर क्यों रूठे मेघ।

सो बरखा ले कर जल्दी आओ,अब तो काले मेघ।
धरती मां भी बाट जोह रही,खोले अपने केश।
हरी-भरी हो प्रकृति सारी,तब तो रहें हम शेष।  बारंबार है विनती तुमसे,जल बरसाओ मेघ।।

@नलिन #तारकेश

ताजी गजल

लिख रहा हूं एक ताजी गजल।
छोटे बहर की ताजी ग़ज़ल।।

संगमरमर सा तराशा है इसे मैंने।
है गुलकारी चिकन की ताजी ग़ज़ल।।

सलमा सितारे टांके हैं इसमें।
हैरत में है डाले ताजी गजल।।

देखोगे जैसी दिखेगी वैसी।
काली,पीली,नीली ताजी गजल।।

मजाक नहीं है सही में महक इसमें।
सोंधी-सोंधी मिट्टी की ताजी गजल।।

उकेरी रंगे-मस्ती,जज्बात के साथ।
दिले-कैनवास रूहानी ताजी गजल।।

ओढी-बिछाई"उस्ताद"ने ये तो।
लिखना छूटे कहां अब ताजी गजल।।

@नलिन #उस्ताद

Monday, 9 July 2018

घटा बाहर जाने क्यों नहीं बरस रही

घटा बाहर जाने क्यों नहीं बरस रही।
परवाह नहीं मगर भीतर जो बरस रही।।

घर से निकलो जब कभी मुस्कुरा के निकलो। पाओगे हर कदम कामयाबी बरस रही।।

मौसम के बदलते मिजाज से खौफ खाओ। फिर ना करना शिकायतें आफत बरस रही।।

शौहर को तो अब इसकी आदत हो गई।
बेगम जो बेफजूल उस पर बरस रही।।

मौज ले रहा "उस्ताद"राम झरोखे बैठ कर।
खुदा का बहुत शुक्रिया जो इनायत बरस रही।।

@नलिन #उस्ताद

Saturday, 7 July 2018

गजल-236:मोहल्लेबाजी की एक बानगी

मोहल्लेबाजी की एक बानगी
*****************
सुबह-सुबह मोहल्ले में जो झगड़ा हो गया। पड़ोसियों का ये नया भरपूर खेला हो गया।

बाहर निकल कर कोई तो ओट से मौज ले रहा।
लुंगी संभाल कोई खुद ही अल्लामा*हो गया।।*महाविद्वान

बहता है रोज यूँ तो बेकार नल,मगर सुनो जरा उनकी तकरीर।
आदत से बचत की उनकी ही जमीं में पानी जमा हो गया।।

घर में खिलाते नहीं ढंग से बुजुर्गों को कभी जो खाना।
गाय,कुत्ते को खिलाना अब पैशन ये उनका हो गया।।

थके माँदे घर में देख ताला,पड़ोस में खा-पी के सो जाना।
किसी अजूबे सा वो दौर तो,आंखों को अब सपना हो गया।।

झगड़े होते थे पहले भी,मगर सुलह होती थी जल्दी ही।
न जाने कैसे बिना झगड़े अब बन्द बोलना  हो गया।।

यूं तो रही नहीं"उस्ताद",पुरानी सी बात अब तो।
पीठ से सटा घर भी आजकल,गैर सा अंजाना हो गया ।।

@नलिन #उस्ताद

Friday, 6 July 2018

235-गजल:मां-बाप को छोड़कर अनाथालय,वो जा रहा था।

मां-बाप को छोड़ वो अनाथालय से जा रहा था।
छाती से दूध मगर,ममता का बहे जा रहा था।।

इबादत को चौखट पर उसकी,मैं बाॅवला हुए जा रहा था।
जैसे बहता हुआ दरिया,मिलने को सागर में जा रहा था।।

अलग-अलग राह का,लेना चाहो तजुर्बा तो भी ठीक है।
यूँ श्रद्धा-सबूरी का  रास्ता,मंजिल ही में जा रहा था।।

माना तुझमें-मुझमें बहुत कुछ रहा था जुदा-जुदा सा।
मगर साझी विरासत का भी हिस्सा बहे जा रहा था।।

ये सोच के उबर चुका हूॅ नासाज तबीयत से।
वो मुझे दरअसल बीमार बनाये जा रहा था।।

आँख में तूफां,दिल में बेचैनी थी हालात बदलने की।
देश में तभी तो वो नया,इंकलाब लाने जा रहा था।।

   ये आज के शागिदॆ बड़े काबिल निकल रहे। उस्ताद बेवजह यूँ ही सोच से मरे जा रहा था।

@नलिन #उस्ताद

Thursday, 5 July 2018

ऑंखें जब उससे चार हो गईं

ऑंखें जब उससे चार हो गईं।
दिले-मस्ती बेहिसाब हो गई।।

घर से जब निकला तब धूप थी।
रास्ते में बरसात हो गई।।

जाने कितने जन्मों की ख्वाहिशें मेरी।
मिलते ही उससे तो आज पूरी हो गईं।।

अजब मिजाज है उसकी आवारगी का। रूठ कर खुद ही कहती भूल हो गई।।

जब दिले-अजीज हुआ रूबरू मेरे।
पता नहीं कब सुबह से शाम हो गई।।

आए बहुत दिनों बाद मगर फुर्सत से। इसी से सारी शिकायत हवा हो गई।।

लड़कपन की बातें करते हो बार-बार। लगता है"उस्ताद"तेरी उम्र हो गई।।

@नलिन #उस्ताद

Wednesday, 4 July 2018

गजल-105 बेफजूल बातों से हुजूर जरा बचे रहिए

बेफजूल की बातों से हुजूर जरा बचे रहिए।
सदा बना दूरी बस कहने से खरा बचे रहिए।।

सूखी-बासी जैसी भी मिले रोटी पेट भर लें।
झूठ,बेईमानी का मगर कचरा बचे रहिए।।

दर्द में होगा तो कराहयेगा ही वो तो।
मजाक उड़ाने से लेकिन गहरा बचे रहिए।।

दौलत,शोहरत कमाना तो कुछ बुरा नहीं यहां।
लेने से गलत सोहबत का आसरा बचे रहिए।।

पीठ पीछे मारते हैं खंजर सभी यूं तो।
हरकतों से ऐसी पर आप जरा बचे रहिए।।

नजर है आजकल"उस्ताद"आप पर सबकी। दिखाने से सरेआम चेहरा बचे रहिए।।

@नलिन #उस्ताद