Tuesday 5 December 2017

शमाॅ पर जलता

शमां पर जलता हर बार जो परवाना मिला। तंज कसने का सबको एक बहाना मिला।। 

हाल किसको सुनाएं अब यारब अपना कहो।
किस्सा तो सबका यहाॅ एक फसाना मिला।।

उम्र भर तरसते रहे जिनके लिए हम।
मिले तो कहाॅ उनका वो चहकना मिला।।

कश्ती डूबाने जो हम चल पड़े अपनी।
भंवर का कहां कोई ठिकाना मिला।।

तैनात था जो अमन और सुकूं के लिए।
दाढ़ी में उसकी ही देखो तिनका मिला।।

ई टेंडरिंग जब से होने लगी मुल्क में अपने।करारा दलालों के मुंह को तमाचा मिला।।

भोलापन चेहरे का खूब पढ़ लेते हैं लोग सभी।
तभी तो जो भी मिला हमें लूटता मिला।।

जिन मैडलों ने कभी थी मुझमें गैरत  भरी।
आया एक वक्त जब वो सब कोखहीना(बाॅझ) मिला।।

पेट खातिर क्या क्या ना जतन किए हमने।
पीसा खुद को तब कहीं दो जून खाना मिला।।

"उस्ताद"मिटाने चला जो बड़े जोशोखरोश। हुजूर अंधेरा तो वो तले चिरागां मिला।।

@नलिन #उस्ताद

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