Tuesday, 19 December 2017

गजल-76 लो आज फिर हदे गम पार हो गई

लो अब फिर हदे गम पार हो गई।
ख्वाबे उम्मीद तार-तार हो गई।।

जाने कब तक चलेगा यह सिलसिला।
सुबह निकली नहीं कि शिकार हो गई।।

रोशनी-ए-दिल की जगमगाती दोस्ती।
बुझते-बुझते देखो फिर खार हो गई।।

मुस्कुराना कनखियों से देखकर हमको।
लो बढ़ी बात तो दिल का करार हो गई।।

हाथ मिला कर नौंच लेना दिल किसी का। दोस्त बीमारी अब ये भार हो गई।।

समझता ही नहीं वो तो इश्क का चलन।
ना में ही तो हां उसकी यार हो गई।।

दावे करो तुम चाहे आंकड़ों के साथ।
अकड़ उसके आगे सब बेकार हो गई।।

शफक पाक दामन था सादगी भरा।
इबादत तभी तो साकार हो गई।।

ये ना कहना की मुलाकात ना हुई उनसे। ख्वाबों में मुलाकात तो दिलदार हो गई।।

दिल दिमाग शरीर सब तो मिला है ठीक-ठाक।
खुदा की इबादत फिर क्यों दुशवार हो गई।।

"उस्ताद" जो गुरूर थी तुम्हारी उस्तादी।
कहें तो कैसे महज अब इश्तहार हो गई।।

@नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment