Friday, 8 December 2017

बड़े अजब मिजाज का ये शहर है अपना

बड़े अजब मिजाज का ये शहर है अपना।
जाने कौन है दोस्त,कौन रकीब है अपना।।

बखूबी आता है एक-दूजे पर इल्जाम थोपना। ये हिना का कमाल,जो खूनी दस्त है अपना।।

यूं तो चलन खूब यहां भी,दुआ-सलाम का रहा।
करता जो काम बेहतर,संग(पत्थर)सा है अपना।।

हर शाख उल्लू बोले,इस कदर अंधेरा छाया हुआ।
पूछे मगर कोई तो कहना,रोशन शहर हैअपना

बड़े प्यार-मनुहार,चारा खिलाया अपने हाथ से।
हलाल तो करेगा ही,ये जो बकरा है अपना।।

बेशुमार माल-असबाब,जुटा लिया चुटकियों  में।
बेच दिया सब,कहां अब बचा जमीर है अपना।।

कुत्तों से भी ज्यादा,बेहाल कर दी उसने हैसियत।
कहता मगर,यही है मालिक असल अपना।।

हरकतें हर बार अनाड़ियों सी निभा कर।
माखौल वह खुद का ही,उड़ा रहा है अपना।।

शहर ए इमाम के लिए करती है हवा मुखबरी। "उस्ताद" संभल के लिखना,जो कलाम है अपना।।

@नलिन #उस्ताद

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