Wednesday, 13 December 2017

जिन्दगी का मकसद

मकसद जिंदगी का पहचानते नहीं भला हम क्यों?
आंख से आंख मिलाते नहीं खुद से भला हम क्यों?

जर्रा -जर्रा चमक उठा हर तरफ तेरी नक्शे पा से जब।
रहमोकरम से बता तेरी मरहूम भला हम क्यों?

हौंसले से लोग जब उगा लेते हैं हथेली में सरसों।
बढ़ाने को एक कदम  गुरेज करते भला हम क्यों?

हाथों के अपने तोते उड़ते हुए  देख कर हर तरफ।
आगबबूला हो दिखा रहे नीचता भला हम क्यों?

पत्ते जो भीग गए पहली बरसात में हर कहीं।
कली कहे  चमन से छूट गए भला हम क्यों?

बादल की मानिन्द खाक हों या आओ बरस पड़े।
रहमो-करम पर रहें किसी के गुलाम भला हम  क्यों?

ना छत थी सिर पर ना ही छाता था किसी का।
भरी बरसात रह गए कोरे  भला हम क्यों?

साकी हो,शराब हो और हो माहौल शफक भरा।
लब ना उभरें निशा चाहते भला हम क्यों?

मिजाज की आवारगी सबको पता है उसकी। आईना बेखौफ हुस्न का कहें भला  हम क्यों?

सब्जबाग दिखा रहे भरी दोपहर,झूठे मक्कार।
दाने नहीं अन्टी में भुनाने चलें भला हम क्यों?

कलई खुल गई उठा दी जो किसी ने नकाब उसकी।
बेवजह खैरमकदम अब तलक करते भला हम क्यों?

मौन रहा जो ताउम्र घोटाले देखते हुए भी।
मौका मिला जो इत्तेफाक से मौन रहे भला हम क्यों?

जिंदगी की राह में सभी हैं मुसाफिर "उस्ताद"यहाॅ।
कस्तूरी भीतर बसे फिर उदास भला हम क्यों?

@नलिन #उस्ताद

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