Monday, 11 December 2017

श्रद्धा-सुमन "अतुल दा"

श्रद्धा-सुमन "अतुल दा"
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आंख से उतरती नहीं तस्वीर,क्या खूब तुम्हारी "अतुल"।
दिल को भुलाती नहीं मुस्कान,क्या खूब तुम्हारी "अतुल"।।

वो ताश की बाजीयाॅ,जीत पर हर दाॅव तुम्हारी पकड़।
हार मैं रही वही मौज फकीराना,क्या खूब तुम्हारी"अतुल"।।

वो सुबह से शाम कंचे खेलना और पतंगों को लूटना।
सटाक तेज काटने की थी अदा,क्या खूब तुम्हारी"अतुल"।।

तोता,कबूतर,खरगोश,मुर्गी सब तुमने खूब पाले।
जानवरों से लाड़-दुलार की बात,क्या खूब तुम्हारी "अतुल"।।

रामलीला,दुर्गा पूजा या रामायण होती थी जो गली-गली।
धर्म-कर्म पर आस्था गजब देखी,क्या खूब तुम्हारी "अतुल"।।

घंटो-घंटो राह चलते बतियाने बैठ जाना वो तुम्हारा।
बेपरवाह बिंदास फुसॆत रही,क्या खूब तुम्हारी "अतुल"।।

यार,दोस्तों की महफिलेंऔर उन्हें बैठा खिलाना- पिलाना।
मेहमान-नवाजी दिल खोल होती थी,क्या खूब तुम्हारी "अतुल"।।

टोनी,चंदू-नन्नू,नागर लंबी रही फेहरिस्त मित्र मंडली।
आदत थीअजब हुड़दंग कि हर रोज,क्या खूब तुम्हारी "अतुल"।।

हर फिल्म नई चार-छः बार,कम से कम देखना।
दीवानगी फिल्मों की बहुत देखी,क्या खूब तुम्हारी"अतुल"।।

अब तो बस शेष हैं यादें और "सिद्धार्थ" सी "दीक्षा"तुम्हारी ।
दीपोज्ज्वलित जो उर "नलिन" करती,क्या खूब तुम्हारी "अतुल"।।

अनुज भ्राता @नलिन

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