Thursday 14 December 2017

थक गया पुकार सबको

थक गया पुकार सबको,भरी रात बुलाने में।  आया नहीं कोई साथ निभाने,मेरा गम भुलाने में।।

हंसी साकी,पुरानी शराब दे जो कभी उम्दा प्यालों में।
चढ़े सुरूर तभी,जब हो तहजीब पिलाने में।।

यादें कुछ तो मीठी भी,सजों के रख लो जेहन में।
कट सकेगी तब उम्र तेरी,सुकून से बुढ़ापा भुलाने में।।

क्या खूब अजूबे इस दुनिया में,दिखते हैं लोगों के।
मशगूल सभी सोना-चांदी,औघड़ के बुत मढने में।।

गालियां,संग,बददुआ से तो,सदा रहा बेपरवाह "उस्ताद"।
भला डर के कहां,वो गढ सकता था शागिर्द जमाने में।।

@नलिन #उस्ताद

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