Wednesday 6 December 2017

गजल-92 मिजाजे दौर


मिजाजे दौर का तो बस इतना इम्तिहान  हो गया है।
हर आदमी का चेहरा क्यों लहूलुहान हो गया है।।

ख्वाबों में दिखती है केवल चीख दरिंदगी।
हकीकत का रोज इतना अपमान हो गया है।।

खुदा के नाम पर लो खुदा का ही कत्ल कर दिया।
अनोखा चलन इबादत का ये शान हो गया है।।

इल्म,हया,नेकी को कौन पूछे भला अब यहां।
कालिख पुता इमाम-ए-चेहरा आन हो गया है।।

जाने क्यों सब के दिमाग अब वहशीपन छा रहा।
बनाना मकसूद दुनिया को शमशान हो गया है।।

परवरिश जिसने की बड़े लाड़-दुलार से तेरी।
अदब-लिहाज उस मां-बाप का विरान हो गया है।।

बेशर्म"उस्ताद"का चेहरा जरा बूझिए तो बूझिए।
शागिर्द तो उससे भी बड़ा बेईमान हो गया है।।

@नलिन #उस्ताद

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