Monday, 29 December 2014

289 - साईं के ग्यारह वचन

                                1
शिरडी की पावन भूमि पर पैर रखता है जब भी कोई।
ततछन ही मिट जाती हैं चिंताएं उसकी जो हों कोई।। 
2
समाधि की सीढ़ियां जब चढ़ेगा भक्त कोई भी।
मिटेंगी दुःख,दुर्भाग्य की रेखाएं उसकी सभी।।  
3
देह छोड़ लगता अदृश्य सा हो गया हूँ  मैं अभी। 
भक्त रक्षार्थ लेकिन प्रगट हो जाऊंगा मैं कहीं भी।। 
4
हर मनोकामना पूर्ण करेगी यह समाधि मेरी। 
चलेगी-फिरेगी,दौड़ेगी भक्त रक्खो श्रद्धा-सबूरी।।
5
मैं तो नित्य जीवित हूँ तुम्हारे ही कल्याण के लिए 
निज स्वभाव अनरूप तेरी आस पूरी करने के लिए।
6
कभी शरण आ के जो मांगे मुझसे तू कुछ भी,कहीं भी 
करता हूँ हर आस पूरी,न हो तो मिलाओ उसे मुझे भी।।
7
भगत की भावना की कदर करता रहा हूँ सदा ही 
तभी तो उसी के अनुरूप ढल जाता हूँ खुद से ही।  
8
तेरा हर भार सदा से रहा है मुझ पर ओ पगले 
वचन सत्य मेरा,भली-भांति इसको समझ ले।।  
9
आओ आकर अपनी-अपनी झोली तुम सब भर लो 
जैसा फल चाहो आकर वैसा तुम मुझसे नकद ले लो।। 
10
तन-मन-वचन से करते जो हैं समर्पण मुझमें 
उनका ऋण सदा ही सदा बना रहता है मुझमें।। 
11
ऐसे भगत मुझे अतिप्रिय,सदा उर में वास हैं करते 
मन-मंदिर में जिनके और नहीं कोई और हैं बसते। 
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