Sunday, 28 December 2014

288 - मैं तुम्हारा,तुम हो मेरे




माया जब तुम्हारी ही राम
जगत में सर्वत्र व्याप्त है
और यह जगत भी जब
मात्र तेरा ही भ्रू विलास है
फिर बता क्यों भला
व्यापता मुझे ये संताप है।
मैं तो चरण-शरण हूँ
एक बस तेरी ही भगवान
और तुम हो वचनबद्ध
करने को मेरा उद्धार।
फिर विलम्ब क्यों इतना
समझ आता नहीं नाथ है।
फिर समझ से भी क्या वास्ता
क्यों करू, इसकी परवाह
जब एक बार,बस एक बार
कृपादृष्टि से तुम लो निहार।
और मुझे बस इतना सा
दिला दो तुम यह एहसास
कि मैं तुम्हारा,तुम हो मेरे
हर घडी-हर हाल में साथ। 

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