Wednesday, 24 December 2014

286 - मैं क्या जानता नाम तुम्हारा



होंठों को जुम्बिश देकर तुमने
 नाम मेरा जो पुकार लिया
मुझ प्यासे पथिक को तुमने
मरुथल में अमृत पिला दिया।

मैं क्या जानता नाम तुम्हारा
जबकि खुद को ही नहीं पहचानता
तुमने बेवज़ह ही लेकिन मुझको
अपना कृपापात्र बना लिया।

जीवन में आयीं काली रात कई
एक बार नहीं कई बार घनी
पर तुमने सदा रवि बनके
तम से मुझे उबार लिया।

क्या कहूँ?कैसे कहूँ?कितना कहूँ?
हर बार सोच-सोच थक जाता हूँ
पर तुमने अब बना के अपना
हर प्रश्न चिह्न मिटा दिया। 

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