Thursday, 18 December 2014

281 - 16/12/14 पेशावर

शब्द ……...... निशब्द, भाव  ………सब शून्य हो गए
लब  ……  ..... सिले,    नेत्र  ............... कातर हो गए
देख रक्त सने नवजात से ये  पुष्पगुच्छ
शेष सारे,जीते जी ही जैसे मर गए।

हाथ कांपने से इनके क्यों नहीं रह गए
मानवीय वेष में कैसे ये पिशाच बन गए
दूध खुद पिलाया आस्तीन में तूने इन्हे
ले सांप नीड़ तेरा ही अब निगल गए।

लहू से जब वो उपवन नहला गए
वार तेरे कलेजे पर ही कर गए
अब तो चेत खुदा की कसम तुझे
क्या रूह भी तेरी वो हैं मार गए ?

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