Tuesday, 16 December 2014

279 - रूद्राक्ष महिमा









रूद्राक्षोपनिषद, रूद्राक्ष कलोपनिषद, शिवपुराण, पद्मपुराण और तंत्र-मंत्र के अनेक ग्रन्थों में
रूद्राक्ष के कई गुणों का वर्णन मिलता है। रूद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का रूप माना जाता है। अतः
इसके दर्शन, स्पर्श तथा जप मात्र से संपूर्ण पापों को नष्ट करने में सहायता मिलती है। भोले शंकर
के प्रिय आभूषणों सर्प, भस्म, बाघम्बर आदि में एक रूद्राक्ष भी है। इसकी उत्पत्ति भी शिव के नेत्रों से
टपकी बूदों के फलस्वरूप ही मानी जाती है।
रूद्र+अक्ष = रूद्राक्ष, इसका नाम तभी पड़ा है।
रूद्राक्ष के वृक्ष मध्यम आकार के, दिखने में सुंदर भूटान, नेपाल, जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, वर्मा,
मलेशिया में अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। इस वृक्ष के छोटे व गोलाकार से पत्ते होते हैं। यह रूद्राक्ष,
आंवले के आकार का सर्वश्रेष्ठ, बेर की गुठली के समान मध्यम व चने के दाने के आकार का अधम माना
जाता है। पूजा मंत्र, तंत्र एवं मालाधारण तथा औषधि के काम में यह सर्वोत्तम माना जाता है। इसी प्रकार
चिकना-मजबूत-मोटा रूद्राक्ष ही धारण करना उपयुक्त होता है। कटा, टूटा, कृत्रिम रूद्राक्ष धारण करना
दोषपूर्ण है।
विभिन्न प्राचीन तांत्रिक-मांत्रिक पुस्तकों में चार प्रकार के रूद्राक्षों का वर्णन मिलता है। श्वेत,
रक्त पीत और कृष्ण। अपने गुण धर्मों के अनुसार निज वर्ण का निश्चयक करके तद्नुसार रूद्राक्ष
धारण करने वाले के तन और मन पर रूद्राक्ष का अतिशीघ्र प्रभाव बताया गया है। ब्राह्मण गुण धर्म वाले
को श्वेत, क्षत्रिय गुण वाले को रक्त, वैश्य गुण धर्म वाले को पीत तथा शुद्र धर्म वाले को कृष्ण वर्ण का
रूद्राक्ष धारण योग्य है। यहाँ  यह ध्यान रखना चाहिए कि यह वर्ण व्यवस्था सामाजिक वर्ण व्यवस्था के
इतर है। रूद्राक्ष को अक्कम, नीलकण्ठाक्ष, हराक्ष, रूद्रचल्लु, उद्रोव व आंग्ल भाषा में UTRASUM BEAD 
 के नाम से जाना जाता है।
रूद्राक्ष दीर्घायु देने वाला, रोग-संताप-कष्टप्रद स्थितियों से बचाने वाला माना गया है। यह
भूत, प्रेत व मानसिक संताप से दूर रखता है। इसके धारण करने से सात्विक भाव उपजते हैं।
उपनिषदों में एक से लेकर तेईस मुखी वाले रूद्राक्षों का वर्णन आता है। रूद्राक्ष में पड़ी धारियाँ ही इसके
मुख हैं। पुराणों में एक से चौदह मुखी तक के रूद्राक्षों का ही वर्णन मिलता है। प्रायः चौदह
मुखी तक के ही रूद्राक्ष प्राप्त भी होते हैं। विभिन्न मुखी रूद्राक्ष धारण किये जाने पर पर उनके  भिन्न-भिन्न फल 
प्राप्त होते हैं तथा इनका धारण मंत्र भी अलग-अगल होता है। एक से चौदह मुखी रूद्राक्षों की संक्षिप्त महिमा
निम्न प्रकार है:
एकमुखी: साक्षात शिव का प्रतीक है, इसकी महिमा कल्प वृक्ष के समान गायी गयी है।जहाँ  
यह रहता है वहां लक्ष्मी का अटूट निवास होता है। इसको धारण करने की बात का महत्त्व 
तो है ही वहीँ  इसके दर्शन मात्र से भी पुण्यों की वृद्धि होती है,ऐसी मान्यता है। 
धारण मंत्र: ओम ह्रीं नमः।।अधिष्ठात्री देव - अर्धनारीश्वर
द्विमुखी: शिव-पार्वती का प्रतीक है। भूत-प्रेत बाधा नाशक, मिर्गी,मूर्छा में उपयोगी माना
जाता है। इसके धारण से मानव भक्ति-मुक्ति प्राप्त कर लेता है। शिव-पार्वती की
कृपा प्राप्ति हेतु इसे धारण करना उपयुक्त है।
धारण मंत्र: ऊँ श्रीं हृीं क्षों हूँ ऊँ।।
त्रिमुखी: त्रिगुणात्मक, त्रिदेवों, तीनों अग्नियों का स्वरूप है। अग्निदेव ही इसकी अधिष्ठात्री देव
हैं। तीनों-कालों के ज्ञान को देले वाला है। इसके धारण से शारीरिक सुख मिलता
है। कार्य-सिद्ध कराने में यह समर्थ है।
धारण मंत्र: ऊँ रं हूँ हृीं हूँ ऊँ।।
चतुर्मुखी: चतुर्मुखी ब्रह्म देव का स्वरूप इस रूद्राक्ष के ब्रह्म ही अधिष्ठात्री देव हैं। इसे धारण
करने से धर्म, अर्ध, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पाप नाशक एवं दूषित
विचारों का दमन करता है। साक्षात्कार, सम्मोहन वशीकरण में भी समान उपयोगी
है।
धारण मंत्र: ऊँ ह्रीं नमः।।
पंचमुखी: शिव के पाँच मुख (सद्योजा, भव, तत्पुरूष, अघोर तथा ईशान) स्वरूप इस रूद्राक्ष
के अधिष्ठात्री देव कालाग्नि रूद्र हैं। यह शांत निर्विकार भाव व काम वासना से दूर
रखने हेतु उपयोगी है।
धारण मंत्र: ऊँ ह्रीं नमः ।।
षडमुखी: शिवपुत्र कार्तिकेय स्वरूप रूद्राक्ष के स्कन्द देव अधिष्ठात्री देव हैं। हिस्टिरिया,
प्रदर, स्त्रियोचित कष्टों में उपयोगी कहा गया है। यह वेदाध्ययन के षड-अंग
स्वरूप का कारक होने से ज्ञान की प्राप्ति में उपयोगी है। मंदबुद्धि छात्र/व्यक्ति
इसे धारण कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
धारण मंत्र: ऊँ हृीं श्रीं क्लीं सौं ऍ।।
सप्तमुखी: यह कामदेव का स्वरूप है, इसके अधिष्ठात्री देव सप्ताशय देव हैं। यूँ यह सप्तमातृका,
 सप्तऋषि व सप्तकोटि महामंत्र स्वरूप है। यह दीर्घायु कारक है। अतः
मारकेश की दशा में धारण योग्य है। सन्निपात, शीत ज्वर व अस्त्र-शस्त्र चोटादि
से बचाता है। महालक्ष्मी की कृपा हेतु भी इसे धारण किया जाता है।
धारण मंत्र: ऊँ हृां क्रीं हृीं सों।
अष्टमुखी: भैरव का स्वरूप है। श्री बटुक भैरव व श्री गणेश इसके अधिष्ठात्री देव हैं। यह सट्टे,
जुएं अर्थात आकस्मिक लाभ में परम उपयोगी है अतः व्यापारी वर्ग ने इसे धारण
करना ही चाहिए।
धारण मंत्र: ऊँ हृां ग्रीं लं अं श्री।
नौमुखी: नवनाथ नवग्रह स्वरूप है, दुर्गा माँ इसकी अधिष्ठात्री देवी हैं। यह प्रायः कठिनता से
प्राप्त होता है। हृदय रोग मिटाने, शत्रुओं को हराने व मुकदमें में विजय हेतु उपयोगी
है।
धारण मंत्र: ऊँ हृी वॅ रं लं।।
दशमुखी: भगवान विष्णु का स्वरूप है। अधिष्ठात्री देव- दस दिकपाल (दिशा स्वामी) है। इसे
धारण करने से नवग्रह अनुकूल होते हैं। विष्णु भक्त इसे अवश्य धारण करें।
धारण मंत्र: ऊँ श्रीं हृी कलीं श्रीं ऊँ।।
एकादशमुखी: एकादश रूद्र स्वरूप है। अधिष्ठात्री देव इंद्र हैं। इसे धारण करने वाला एकादशी व्रत
के तुल्य पुण्य पाता है। यह स्त्रियों के सौभाग्य हेतु अधिक उपयोगी है।
धारण मंत्र: ऊँ ह्रीं हूं ।।
द्वादशमुखी: द्वादश ज्योर्तिलिंग स्वरूप है। अधिष्ठात्री देव सूर्य हैं। सूर्य ग्रह से पीड़ित व्यक्ति इसे
अवश्य धारण करें तो लाभदायी है। शत्रुओं, हिंसक पशुओं से रक्षा में समर्थ है।
धारण मंत्र: ऊँ हृीं श्रीं धृणिः श्रीं।।
त्रयोदशमुखी: यह साक्षात विश्वेश्वर स्वरूप है। इसके देव इंद्र हैं। यह संतान प्राप्ति में ,व्यक्तित्व
को आकर्षक व भव्य बनाने में काम आता है।
धारण मंत्र: ऊँ ह्रीं नमः ।।
चतुर्दशमुखी: हनुमान जी का स्वरूप है इसके अधिष्ठात्री देव - पवन देव हैं। यह वहम, घबराहट,
पागलपन, भूतप्रेत आदि कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला है।
धारण मंत्र: ऊँ नमो नमः ।।
रूद्राक्ष असली है या नकली इसकी पहचान सरल है। दूध या पानी में डालने से असली रूद्राक्ष
डूब जाता है, इसे यदि धागे से बांध कर ऊपर की ओर ले जाएं तो घड़ी के पेंडुलम की तरह हिलने
लगता है। तथा कसौटी पर घिसने से एक रेखा पड़ जाती है। यदि व्यक्ति असली व निर्दोष रूद्राक्ष
धारण करें तो समय पूर्व ही कार्य सिद्ध हो जाता है।
धारण विधि: रूद्राक्ष की सामान्य धारण विधि निम्न प्रकार है:
रूद्राक्ष धारण करें तो पूर्ण विश्वास,श्रद्धा व पवित्रता के साथ। उसे गंगाजल या
अन्य पवित्र/शुद्ध जल से स्नान कराकर उसका शिव के समान विधिवत स्नान, चंदन, भस्म लेप (स्वयं
के भी) कर अक्षत, धूप-दीप से पूजन करना चाहिए। पूजनोपरांत ऊँ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जप
करके रूद्राक्ष को शिवलिंग से स्पर्श कराकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके 21 या अधिक
बार सम्बंधित  रूद्राक्ष मन्त्र  का जाप करें। रूद्राक्ष को स्वर्ण, रजत अथवा लाल
या काले रेशमी डोरे में पिरों कर गले/दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
रूद्राक्ष का महौषधि के रूप में आयुर्वेद विशेष वर्णन करता है। उसके अनुसार यह खट्टा, उष्ण,
वायुहर्ता, कफ-नाशक, सिरदर्दहन्ता, जठराग्नि बढ़ाने वाला रूचिवर्धक है। अम्ल की पर्याप्त मात्रा होने
से यह रक्तवर्धक, रक्तशोधक विकार नाशक एवं विटामिन सी से पूर्ण है। चेचक, छोटी चेचक, ओदरी,
बोदरी निकलने पर इसे धारण करने से आराम मिलता है। उष्ण होने से सर्दी और कफ से होने वाले
सभी रोगों टीबी, दमा गैस्टिक में लाभदायक होता है। शहद में रूद्राक्ष को घिस कर देने से कफ प्रकृति
गत रोग नष्ट होते हैं। रूद्राक्ष के दाने को पानी में घिसकर फोड़े में लगाने से ठंडक पहुंचती है। चेचक
व पित्ती आदि रोगों में इसके साथ पपीते के बीच को गूंथ कर पहनाने से आराम पहुंचता है। ब्लड प्रेशर
के रोगी को दो तीन दाने  रूद्राक्ष पानी में भिगोकर रातभर रखने चाहिए तथा सुबह खाली पेट वह पानी पीना
चाहिए। इस प्रक्रिया को प्रतिदिन करने पर रोग को समाप्त करने में बड़ी सहायता मिलती है। इसे सिर
में धारण कर स्नान करने से तीर्थ जल-स्थान का पुण्य मिलता है। रूद्राक्ष के धारण से सन्निपात, मानसिक
उन्माद, प्रेतादिक बाधा शांत होती है। सर्प दंश में कच्चे रूद्राक्ष को पीसकर पिलाने से उल्टी हो कर
रोगी को आराम मिलता है। इसकी छाल का काढ़ा पीने से संधिवात, पित्त विकार, निमोनिया व मिर्गी
जैसे रोगों से लाभ मिलता है।छोटे  बच्चों को रुद्राक्ष,माँ के दूध में घिसकर चटाने से छाती में जमा कफ समाप्त
होता है। इसे बाहरी रूप से भी छाती में मला जा सकता है। हकलाहट का दोष होने पर इसे कण्ठी
से लगा हुआ धारण करना चाहिए। इसकी भस्म हैजा, पेचिस, दमा में लाभकारी होती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जिस प्रकार भोलेनाथ शिवशंकर अपने भक्तों के विघ्नों को क्षणों में
दूर करने के लिए प्रसिद्ध हैं ठीक उसी प्रकार उनका प्रिय रूद्राक्ष भी अध्यात्मिक, मानसिक, शारीरिक
आदि विभिन्न क्षेत्रों में मानव की सहायता हेतु तत्पर है। आवश्यकता है इस दिशा में कुछ और शोध किए
जाने तथा इसके बहुमुखी गुणों को वैज्ञानिक आधार पर पुष्टित करके प्रचारित-प्रसारित किए जाएं।
- नलिन पाण्डे ‘तारकेश’

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