Sunday 7 December 2014

274 - एकाँकी : संकल्प करते हैं



(पहला दृश्य)
परदा खुलता है: “युवा चेतना मंच” नामक संस्था के एक कमरे में, जिसे दफ्तर का रूप दिया गया है।
कमरे के बीचोंबीच एक बड़ी मेज रखी गई है। उसके आस-पास 5-6 कुर्सियाँ लगी हैं। मेज पर कुछ
फाइलें भी हैं। कुर्सियों पर तीन युवक बैठे हैं।
(कार्यालय में एक 25-26 वर्षीय युवक का प्रवेश) उसने नीली जीन्स की पेंट और सफेद आधी बाँह का
कुर्ता पहना है, पाँवों में कोल्हापुरी हैं और कन्धे में नीले रंग की ही जीन्स के कपड़े का झोला लटका
हुआ है। युवक का नाम सुधांशु है।
सुधांशु: (कार्यालय के दरवाजे से) क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ। (तीनों युवकों का ध्यान उस
युवक की ओर जाता है वे उस युवक को आग्रह सहित कुर्सी पर बैठाते हैं।)
सुधांशु: देखिए, मैं आपको अपना परिचय दे दूँ। मेरा नाम है, सुधांशु। पेशे से पत्रकार हूँ।
दरअसल मुझे ज्ञात हुआ है कि आपकी संस्था एक नाटक का आयोजन करने जा रही
है, अपनी पहली वर्ष-गाँठ पर, तो मैने सोचा कि आप लोगों से इस विषय में थोड़ी
जानकारी ले लूँ।
विनय: (कोने में दाहिने हाथ की तरफ बैठा युवक) क्यों नहीं, क्यों नही, चलिए पहले आपको
परिचय करा दूँ। आप हैं अखिलेश (बीच में बैठे युवक की तरफ इशारा करते हुए),
आप हरविन्दर हैं, (तीसरे युवक की तरफ इशारा करते हुए) और स्वयं मैं विनय।
पूछिए अब आप क्या पूछना चाहते हैं।
सुधांशु: आप लोगों के मन में इस तरह की संस्था खोलने का विचार आया कैसे?
हरविन्दर: देखिए हुआ ऐसा कि मैं अपनी नौकरी के रोजाना एक जैसे रूटीन से बिल्कुल बोर
हो गया था। कुछ और नया भी करना चाहता था, जिससे मेरे दिल को शांति मिले,
इसलिए मैंने अपने लेखक मित्र “अखिलेश” से सलाह करी और फिर इसने ही राय दी
संस्था खोलने की।
अखिलेश: सच कहूँ, तो बचपन से ही, पता नहीं क्यों, मेरी इच्छा होती थी कि हम सब मिलजुल
कर कुछ करें, जो ठोस हो-पाजिटिव“। शायद इसलिए ही मैं लेखन के क्षेत्र में कूद
पड़ा। फिर इधर हरविन्दर के दिमाग में भी कुछ रचनात्मक करने की सूझी, बस क्या
था, हमने दोस्तों को एकत्रित किया और संस्था खोल ली।
सुधांशु: सच है आपका खोलना तो मेरी समझ में अब धीरे-धीरे कुछ लोगों के लिए फैशन सा
हो रहा है। जागरूक प्रदर्शित करने के लिए, अपने आपको, एक अच्छा टोटका।
आपको क्या लगता है अखिलेश ?
अखिलेश: सच है आपका कहना भी किसी हद तक। लेकिन फिलहाल जहाँ तक हमारी संस्था का
प्रश्न है हम नहीं समझते कि हमारा उद्देश्य अपने आपको जागरूक होने का फैशन
करना है। हमने जितने भी युवक लिए हैं अपनी संस्था में, वे दिल से रचनात्मक कार्यों
में रूचि रखते हैं।
विवेक: और सुधांशु साहब, ये युवा किस हद तक ईमानदार हैं अपने भारत को नये स्वस्थ एवं
स्वच्छ वातावरण में ले जाने के लिए इस बात का अन्दाजा आप इस बात से ही लगा
सकते हैं कि इन सभी ने अपनी शादी में दहेज का पूर्णतः बहिष्कार और साथ ही वर्ष
में अपनी कम से कम एक बुरी आदत को छोड़ने का संकल्प भी किया है।
हरविन्दर: वास्तव में संस्था खोलने का हमारा मुख्य उद्देश्य यही है कि हम युवा संगठित हों और
भरभरा का विखेर दें अन्धविश्वास और कुरीतियों के झूठे ऊँच-नीच फैलाने वाले
महल। फिर से उसी भारत का निर्माण करें जिसकी सौंधी खुशबू पाने के लिए देवता
तक लालायित रहते थे।
विनय: (घड़ी की ओर देखते हुए) अच्छा सुधांशु साहब, माफ करियेगा। आप को तो मालूम
होगा कि आज ही नाटक है और नाटक शुरू होने में अब केवल एक घंटा बचा है, वहाँ
वे लोग परेशान न हों कहीं। वो तो जरा जरूरी काम से इधर आना पड़ गया वर्ना इस
समय हम आपको यहाँ न मिलते।
सुधांशु: (हल्की हंसी बिखेरते हुए) अरे यहाँ न मिलते तो मयूर नाट्य गृह में मिलते। 10-15
मिनट का रास्त ही तो है यहाँ से। खैर एक छोटा सा सवाल और पूछँगा क्योंकि कल
मैं इस आर्टिकल को अखबार में जरूर छापना चाहता हूँ और इसलिए जानना चाहता
हूँ कि आप युवाओं से क्या अपेक्षा रखते हैं।
अखिलेश: बस इतना ही युवाओं से चाहूँगा कि कम से कम अपनी कॉलोनी को तो स्वच्छ
वातावरण देने के लिए वे जरूर आगे आयें,  कॉलोनियों से ही, मतलब छोटे समूहों के
गठबन्धन से ही राष्ट्र का निर्माण होता है और राष्ट्र को एक सूत्र  में बांधने के लिए
हम युवाओं की ही राष्ट्र को सख्त आवश्यकता है, वैसे भी राष्ट्र को एक सूत्र में
बांधे रखना हम युवाओं का ही तो कार्य है। हम युवा ही तो मध्य की मुख्य कड़ी हैं, जो
मिलाती है बुढ़ापे  और बचपने की  दो महत्वपूर्ण अवस्थाओं को। इसलिए हमारा कर्तव्य
ज्यादा ही बनता है, क्यों?
सुधांशु: आप ठीक ही कहते हैं, अच्छा बहुत-बहुत धन्यवाद। अब मैं चलूं। (चलने को होता है।)
हरविन्दर: अरे अब आप जब कल पेपर छापना चाहते ही हैं, हमारी संस्था के बारे में तो चलिए,
नाटक भी देख लें और हमारे अन्य दोस्तों से भी मिल लें। फिर पूरी अच्छी तरह से
कमेन्ट्स छापिएगा, अपने।
सुधांशु: अरे साहब, मैं तो किसी होटल में चाय पीकर थोड़ा समय गुजारने के बाद वहीं जाने
वाला था। ये दिखए मैंने तो टिकट भी खरीद रखे हैं। कुर्ते की ऊपर की जेब से टिकट
निकाल कर दिखाता है। (सभी हंसते हैं)।
विनय: तो आइए, आपका वहाँ समय भी कट जाएगा और हमारे दोस्तों से नयी जानकारियाँ भी
प्राप्त हो जायेंगी। अरे हाँ आप घबड़ायें नहीं आपको वहाँ चाय भी जरूर मिलेगी। अब
तो चलिए। (सभी की समवेत हंसी, साथ ही चारों युवकों का प्रस्थान)
(दूसरा दृश्य)
(पर्दा खुलता है मयूर नाट्य गृह का दृश्य) जहाँ एकांकी नाटक खेला जाने वाला है, इसे देखने के लिए
भारी जनसमूह एकत्रित है। उदघोषक  का आगमन
उदघोषक : चारों ओर नजर घुमाते हुए फिर हाथों में पकड़े हुए कागजों पर एक नजर डालकर दोनों
हाथ पीछे करके माइक के सम्मुख थोड़ा झुकते हुए। देवियों और सज्जनों, आप जैसा
कि आप सभी लोगों को विदित है कि यहाँ पर अपने युवा साथियों के सहयोग द्वारा
अपनी संस्था “युवा चेतना मंच“ के एक वर्ष पूर्ण करने के उपलक्ष्य में उनके द्वारा
आयोजित एकांकी नाटक “दहेज का दानव“ देखने के लिए उपस्थित हुए हैं। संस्था
युवा चेतना मंच ने एक वर्ष के छोटे से कार्यकाल में ही सभी युवाओं का ध्यान अपनी
ओर आकर्षित किया है। विशेषकर युवाओं का, जिससे उन्हें प्रेरणा  मिली है, ठोस
विचारों के कार्यान्वयन की, जिसमें सत्यं, शिवं, सुन्दरं का भाव निहित है।
दोस्तों, तो आइए हम चलें देखने नाटक “दहेज का दानव”,उदघोषक  पर्दे के पीछे
लोप हो जाता है।
(धीरे-धीरे पर्दा खुलता है)
(मंच पर एक पार्क का दृश्य वहां एक युवा जिसकी उम्र लगभग 26-27 वर्ष की होगी,
दिखता है, कोने में बैठा वह कुछ परेशान सा नजर आता है। इतने में उसकी प्रेमिका
का आगमन, प्रेमिका की उम्र लगभग 23-24 वर्ष होगी। उसके हाथ में चटक लाल
गुलाब का फूल है, प्रेमी की पीठ उसकी ओर है अतः वह गुलाब का फूल उसको फेंक
कर मारती है।)
प्रेमी: (चौंक  कर) ओह, तुम कब आंयी।
प्रेमिका: कब आयी, क्या मतलब, मैं तो हर समय तुम्हरे पास होती हूँ। तुम्हें ही फुर्सत नहीं
रहती मेरी ओर देखने की।  क्यों क्या बात है, आज कुछ परेशान से दिखते हो।
प्रेमी: (परेशानी को छिपाने का प्रयास करता हुआ) ऊंह कुछ भी नहीं। (उठते हुए) छोड़ो
आओ आज फिल्म देख लें। “ड्रीम लैण्ड“ में बड़ी बढ़िया फिल्म लगी है।
(प्रेमी उसका हाथ पकड़ता है और चलने का तत्पर होता है किन्तु प्रेमिका उसकी ओर
अनुनय की मुद्रा में आँखों में आँख डालती है और उसके हाथ पर दबाव डालते हुए उसे
नीचे बैठाने का प्रयत्न करते हुए कहती है)।
प्रेमिका: प्लीज, देखो न, मेरी बात को ऐसे मत टालो। सच-सच बताओ, तुम्हें मेरी कसम क्या
पिताजी राजी नहीं हैं हमारी शादी के लिए।
प्रेमी: (खिन्न मन से) गहरी साँस छोड़ते हुए, हैं भी, नहीं भी।
प्रेमिका: क्या मतलब?
प्रेमी: यही कि उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि मैं किस लड़की से शादी करता हूँ उन्हें तो
इससे मतलब है कि कौन लड़की ज्यादा माल ला सकती है।
प्रेमिका: (दुखी होकर) अफसोस से, ओह!
प्रेमी: और जानती हो जब मैंने उनसे कहा कि मैं “इण्टरकास्ट“ मैरिज करने जा रहा हूँ तो
क्या बोले? कहने लगे बेटे यह तुमने अच्छा नहीं सोचा है। खैर चलो हम तुम्हारी मान
सकते हैं पिछड़े वर्ग को उठाने का फायदा आने वाले चुनाव में वोट से तो मिल ही
सकता है फिर भी यह हम दहेज नहीं समझ सकते। वोट वाला फायदा तो लोकल
टैक्सेज एकस्ट्रा जैसा ही है।
प्रेमिका: अच्छा और तुम्हारी मम्मी।
प्रेमी: मम्मी भी हार्ड-कैश को ही ज्यादा सुरक्षित समझती हैं। “दहेज विरोधी समिति” की
अध्यक्षा जो हैं।
प्रेमिका: लेकिन हम दोनों ने तो संकल्प करा है बिना दहेज की शादी, उसका क्या होगा?
प्रेमी: मेरी समझ में तो अब शादी का विचार ही त्याग देना चाहिए हम दोनों को। शादी अगर
हो भी गई किसी तरह बिना दहेज के तो हो सकता है मेरे हाथ में माचिस की तीली
और मिट्टी का तेल मेरे घरवाले ही पकड़ा दें।
प्रेमिका: उन्होंने तुम्हारे हाथ में तीली और तेल दे दिया और तुमसे जो कहा गया वो तुमने कर
दिया। आखिर तुम मनुष्य हो जानवर नहीं। तुम्हारे पास मस्तिष्क है जो किसी का
बन्धक या गुलाम नहीं, क्यों?
प्रेमी: (हताश सा) कुछ नहीं कह सकता, कुछ नहीं कुछ नहीं... (आवेश में मुट्ठी बांधता,
खोलता हुआ इधन-उधर विक्षुब्ध सा चहलकदमी करता है।)
प्रेमिका: तुम तो ऐसी बात करते हो जैसे घरवाले चुपचाप तुम्हें जादुई गोली खिला देंगे और
फिर तुम पूरी तरह उनके बस में हो जाओगे।
प्रेमी: सच कहता हूँ उनके पास वास्तव में जादुई गोली है अभी तक तो बचता आ रहा हूँ
किसी तरह उसको खाने से। लेकिन कब तक।
प्रेमिका: लेकिन जादुई गोली आयी कहाँ से और फिर तुम जानते-बूझते उस गोली को खाने क्यों
लगे भला।
प्रेमी: गोली दी है “दहेज के दानव“ ने, और उसको इसलिए निगल सकता हूँ क्योंकि
“दानव“ ने मुझे बताया है कि उसको खाने से मेरा स्वप्न साकार हो सकता है।
फिर तुम तो जानती हो मेरे स्वप्न को... और यह भी जानती हो कि पिताजी मुझे
मदद करने से रहे। बस अब तो यही हो सकता है कि “दहेज के दानव“ को
मार दिया जाये, किसी तरह।
प्रेमिका: लेकिन “दहेज के दानव“ का अंत संभव कैसे होगा?
(प्रेमिका का इधर सवाल पूछना और उधर वीभत्स हंसी हंसते हुए दहेज के दानव
का आगमन)
दहेज का दानव: हा हा... हा
पागलों मुझे मारना चाहते हो। अरे ! तुम जैसे कितने नौजवान संकल्प करते आये
हैं मुझे समूल नष्ट करने का,लेकिन कोई सफल नहीं हुआ। हा... हा... हा...
प्रेमिका: लेकिन इस बार हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। बड़ी से बड़ी अदालतों में जायेंगे।
सरकार से नया विधेयक लाने को कहेंगे जिससे तुम जिन्दा ही मुर्दा के समान
हो जाओगे।
दानव: (चेहरे पर बिना किसी शिकन के पूर्व सी कठोर आवाज में) मूर्खों अदालत में
भी तो आदमी ही हैं और मेरे पास अथाह पैसा। (अर्थ से भरी गहरी हंसी हंसता
है) हाँ और अगर तुम सोचते हो कि विधेयक से मेरा कुछ बिगड़ सकता है तो
मुझे तुम्हारी बुद्धि पर तरस आता है।
प्रेमिका: (प्रेमी की ओर हताश सी देखती हुई) अब क्या होगा?
दानव: (दर्प से) क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरी मृत्यु लगभग असंभव ही है और विशेषकर
इस जमाने में इसलिए मैं तुम्हें अपनी मृत्यु का रहस्य बताता हूँ। दरअसल मैं
तब ही मर सकता हूँ जब सभी तन-मन-धन से मुझे मिटाने का संकल्प कर लेंगे।
प्रेमी: (प्रेमिका से) चलो। हम सभी लोगों को संगठित करें। इस दानव की मृत्यु तभी
संभव होगी।
प्रेमिका: लेकिन सबको संगठित करना तो असंभव है फिर संभव हुआ भी तो सालों लग
जाएंगे।
प्रेमी: कोई बात नहीं हम चाहे जब भी सफल हों, कम से कम उस दिन से तो यह
दहेज का दानव आने वाली पीढ़ीयों को न सता पायेगा चलो। (दोनों का
साथ-साथ प्रस्थान)
दानव: (स्वयं से) सोचते हैं लोगों को मेरे खिलाफ जागृत करना आसान होगा। खैर
छोड़ो मैं थोड़ी देर बुराईयों के देवता का ध्यान लगाऊँ।
दानव आँखें बन्द करके ध्यान लगाता है और साथ ही घड़ी की सुइयों के चलने
की तेज आवाज भी सुनाई देती पड़ती है।
कुछ समय पश्चात भारी जन समूह के पदचाप की ध्वनि आती है दानव का
ध्यान टूटता है। मंच पर पूर्ण प्रकाश।
दानव: (स्वयं से) न जाने कितने वर्ष बीत गए पता ही नहीं चला। पदचाप की आवाज
पर ध्यान देता है और घबड़ाते हुए स्वयं से पूछता है। क्या वह दोनों सफल हो
गए अपने उद्देश्य में।
नहीं असंभव... असंभव, “ऐसा नहीं हो सकता“। दानव भयभीत सा इधर-उधर
देखता है तभी विपरीत दिशाओं से जनसमूह का लाठी लिए हुए प्रवेश। एक
तरफ से महिला दल आता है जिसका नेतृत्व प्रेमिका करती है और दूसरी ओर
से आता पुरूष दल जिसका नेतृत्व प्रेमी करता है। प्रेमी-प्रेमिका अब पूर्व से
जवान नहीं रहे हैं। स्वास्थ्य भी  कमजोर सा दिखता है परन्तु चेहरे पर अद्भुत शौर्य
रस टपकता हुआ।
प्रेमी: सबको संबोधित करते हुए। दोस्तों देखते क्या हो? आज अंत कर दो इस दहेज
के दानव का।
सभी लोग दानव को मारने के लिए लाठी उठाते हैं दानव जमीन पर चेहरा
छिपाते हुए लेट जाता है और यहाँ पर यह दृश्य फ्रीज हो जाता है।पार्शव में 
सम्मिलित गान सुनाई पड़ता है।
संकल्प करते हैं कि
हम सब एक हैं
हम एक थे
हम एक रहेंगे। 
जड़ से बुराईयों को मिटाने का
संकल्प करते हैं
संकल्प करते हैं। 
संकल्प। संकल्प। संकल्प। 
इसके साथ ही पर्दा गिर जाता है।

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