Thursday, 21 August 2014

ग़ज़ल-32






क्या गिला शिकवा अपने हालत से कीजिए                                    
जहाँ रहिए हर-हाल निर्विकार बने रहिए।

ऊँची मीनारों की भी गिर जाती हैं दीवार
हो छोटी कुटिया तो भी मस्तहाल रहिए।

अलहदा है सबका अपना-अपना वज़ूद
मिलजुल के मगर सब साथ रहिए।

हाथों में भी उगा सकते हैं हम सरसों
है सांस जब तक,आस बनाए रहिए।

भेजा है उसने हमें यहाँ अमन चैन के लिए
"उस्ताद"सुख,दुःख में सबके शरीक रहिए।  

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