Sunday, 24 August 2014

201 - ग़ज़ल 34

एक मासूम सा बचपन हम सबको चाहिए
न हो जीनियस मगर सरल होना चाहिए।                                    

करे न गिट-पिट चाहे विदेशी अंदाज  में
बात करने का सलीका उसे आना चाहिए।

माँ,बहन,बेटी बेगम हो चाहे किसी घर की
इज्जत हमें देना हर हाल सीखना चाहिए।

जाति,मजहब से लगाव कुछ हद तो ठीक है
कौम को ही सर्वप्रथम मगर रखना चाहिए। 

"उस्ताद" बन न सको अगर,कोई बात नहीं
शागिर्द का किरदार बखूबी निभाना चाहिए।

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