Sunday, 3 August 2014

लघुकथा -17 ट्रीट 

ट्रीट 

मकान का कार्य चल रहा था। खाने की छुट्टी हुई। मिस्त्री को कुछ याद आया। उसने बाहर लटके कोट की जेब में हाथ डाला। देखा तो 600 रुपये गायब थे। एक ही पर शक गया क्योंकि बाकि सब उसके गाँव के थे और इन सबके सामने तो वह हर रोज ही नोट निकालता -संभालता रहता था। जिस पर शक था उसको मारा -पीटा गया मगर कुछ हांसिल नहीं हुआ। शाम मिस्त्री उदास सा वापस सा अपने घर लौट गया। उसके जाने के बाद मकान मालिक का 19-20 वर्षीय लड़का घूमने निकल गया,दरअसल आज उसे अपने दोस्तों को ट्रीट देने की बारी  जो थी।

1 comment:

  1. ट्रीट देना अच्छी बात है. मगर पॉकेट मार कर नहीं. यह लत इंसान को पॉकेटमार बना देती है.

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