Sunday 10 August 2014

राम कहिये

राम कहिये,भग्न दीमक लगे
साथ ही,धूल,तम से सने
ह्रदय निकेतन में मेरे
गृह-प्रवेश कब,कैसे करेंगें ?
यद्यपि कष्ट होगा,आपके लिए 
जानता हूँ आराध्य मेरे
लेकिन प्रभु ये भी तो समझिये
आप जहाँ हैं रहने लगते,या
श्री-चरणों की छाप छोड़ देते
आलोक वहां नित चॅवर डुलाते।
ऋद्धि-सिद्धि सब पग पखारने
सदा ही आतुरता दिखाते।
फिर भला कहिये,कैसे नहीं होगा
उर-उजाड़ का काया-कल्प मेरे।
तो आ जाइए,बस शीघ् आ जाइए
मुझको अधिक न भटकाइए
ह्रदय मेरा शीघ्र्र,अब अपना
प्रभु,धाम-साकेत बनाइये।

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