Monday 11 August 2014

राम नाम मनि दीप

राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार। 
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जो चाहसि उजिआर।।                                 



भीतर,बाहर मन के हर कोने-कोने
उज्जवल,शुद्ध,निर्मलता को पाने
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।

राम रतन को जिव्हा में धर कर
आलोकित कर ले सारा संसार
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।

दिव्य चेतना को आधार बना कर
तन-मन तू प्रभु को अर्पित कर
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।

सूर,चैतन्य,मीरा,तुलसी ने,खुद को एकाग्रचित्त कर
नित ध्याया हरि को जैसे,तू भी तो ध्यान लगाया कर
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।  

1 comment:

  1. राम रतन से बड़ा कोई धन नहीं. राम का नाम लेने से ही सारे पाप धुल जाते हैं. इसी महात्म का आप ने वर्णन किया है. अति सुन्दर !

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