Thursday, 31 July 2014

पहाड़ी व्यंग -5
















हम पहाडीन के अपुण सीधाई मार गई
सरकार जे ले बड़ी,सुधि बिसरि गई।
यू.पी,यू.के ज्येक ईजा-च्योल जे रिश्त छी                    
उनर बीच एक भल ट्रैन चलूंण में हाड़ काँप गई।
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ओल्ड इज गोल्ड अब जाओ भुल

 कबाड़ में बेच दियो बडबाजु माल फुल
                            
 कबाड़ी जब बेच देओल ऊके मॉलन में

 खरीदिया एंटीक पे दुगण दामन में।
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ठुल धोती,नान धोती को पुछड़ों यार

गाड़ में नंग छन सब मौ-परिवार

कोई दहेजा लिजी छोड़ दिनों अपुडी लुगाई                                                
कोई अपुण खसम दगड करणे बेवफाई।
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यसी कुनि  कान थें के नी सुणी

कान हमार पट्ट बंद है गयीं

उसी फुसफुशाट अपुण कामेकी

चट्ट सुन लीनी हमर यो बुड-बुडी।
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आध राति छौल बने हालो
                                                                               
हमनके कलियुगेल पुर

खाणोक,सितोड़क  मन मर्जी हेरे

बाबू दगड घुटक लगुड़ों च्योल फुल।
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सेंडी बेग झगौड़ में

को फोड़ल अपुण कपाल

दिन में तना-तनी करणी

राती लगुनी एक दुहर के अंगुवार।   

जय-जय वृक्ष देव








जय-जय वृक्ष देव हम तुमको                          
शत-शत नमन हैं करते।
जीवन पथ को मानव के तुम
धन-वैभव से हो भर देते।
मानसून को समय से लाकर
जीवन-जल हमें दिलाते।
सूखे-बाढ़ की विपदाओं से
तुम ही तो हो लाज बचाते।
अनगिन जड़ी-बूटी उपजा करके
रोग-व्याधि को तुरत भगाते। 
पशुओं को खाना हो देते
पक्षी भी भूखे न रहते।
साँझ-सवेरे तभी तो तुमपे
कितने मधुर खेल वे करते।
तुम से ही हम ईंधन पाते
हो रोशनी,घर स्वर्ग बनाते।
इतने काम के तुम हो हमारे
फिर भी न जरा इतराते।
सदा नम्र तुम,बने हो रहते
फल से लदकर खुद ही झुकते।
जाने कितने जन्मों से तुम
मानव सेवार्थ जीवन रहे बिताते। 

Sunday, 27 July 2014

लघुकथा -15

एक से बढ़कर एक 

गप्पी जी उन सज्जन को बता रहे थे कि वो यूनिवर्सिटी में लेक्चरार हैं जबकि थे वो वहां बड़े-बाबू। इत्तफाक से उन सज्जन को पहले से पता लग चूका था कि असल में गप्पी जी हैं किस खेत की मूली इसलिए बड़ी मासूमियत से हमदर्दी जताते हुए वो सज्जन बोले अरे भाई वीरेंद्र जी मैंने तो सुना था आप यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं ये आपका डिमोशन कब और क्यों हो गया।





Tuesday, 22 July 2014

लघुकथा -14

जीत का मीनिया 

वो उसके घर गया। कैरम शुरू हुआ। वो कहने लगा कि अब तुम मुझसे जीत नहीं सकते हो। मैंने आजकल खूब प्रैक्टिस  की है। खैर !खेल शुरू हुआ। जल्दी ही अपनी गोटियों को सीधे-सीधे फंसते हुए देख उसने कहा,यार,यह क्या कर रहे हो? क्या यही प्रैक्टिस की है तुमने इतने दिनों से ?हाथ में स्ट्राइकर ले कर आँखे गोल-गोल घूमते बड़े अंदाज में वह बोला,अब तो दोस्त मैंने न हारने की कसम खा ली है। 



लघुकथा -13

सन्यासी 

वो शादी के लिए राजी ही नहीं हो रहा था लेकिन माता पिता ने जबरदस्ती पकड़ कर उसकी शादी कर दी थी। इस आशा में कि शादी के बाद सुधर जाएगा। लेकिन शादी के बाद भी वह अक्सर धमकी देता की वो सन्यासी हो जाएगा और एक दिन वो सचमुच सन्यासी हो कर घर से भाग गया। हाँ,लेकिन जाते-जाते पत्नी के एकाकीपन को भरने के लिए उसे 5 बच्चों की माँ बना गया।


लघुकथा -12

लोकप्रियता    

अभी-अभी हर दिल अज़ीज़ गायक ने अपना गायन पूर्ण करा था इसलिए तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल पूरी तरह गुंजायमान था। लेकिन आज के इस प्रोग्राम में सुर-सम्राट से भी एक-आद सुर गलत लग गए थे जिसके कारण आलोचकों में चर्चा का बाजार गर्म था। कुछ में रोष था पर अधिकांश के मतानुसार यह उस्ताद का नया प्रयोग था।



Sunday, 20 July 2014

कल्पना /संघर्ष =हक़ीक़त




जिंदगी के जिस दायरे से मैंने संघर्ष प्रारम्भ किया था वह न तो बहुत खुला हुआ सा उच्च वर्ग था न ही बंद घुटन सा माहोल लिए निचला वर्ग। मैं मध्यम वर्ग के भी दो ग्रेड समझता हूँ ,जिसमें सेकंड ग्रेड से मैं सम्बंधित हूँ। प्रथम ग्रेड वाले फिर भी उतने बिखरे नहीं हैं हर ओर से जहाँ तक या जिस स्थिति तक हम सेकंड ग्रेड वाले। अपने वर्ग वालों की तरह मेरे दिल में भी आकांक्षा थी ऊपर बढ़ने की और यही से शायद मेरी अनकही,असम्रझी परेशानियों का एक अंधड़ शुरू हुआ जो इन्तजार में था एक बरसात का जिसमें स्वप्नों की धूल हकीकत हो कर बैठ जाए। 
लेकिन पिछले पांच बरसों में क्या बरसात नहीं हुई,हुई पर मेरे घर-आँगन में नहीं।  मेरा घर अरे,मैं यह क्या कह गया। वो मेरा घर नहीं वह तो सरकारी घर था जिसमें हम तब तक रहे जब तक बाबूजी की नौकरी रही। फिर शहर से दूर एक बस्ती में सस्ते किराये में रहने लगे। आप कह रहे हैं मेरे बगल वाले शर्मा जी ने तो दो साल रिटायर होने के बाद तक भी वह घर नहीं छोड़ा,तो भाई मेरे में इतना ही कहूँगा कि वे ऊँची पहुँच वाले हैं,उन्होंने घर छोड़ दिया यही गनीमत है। 
बाबूजी स्वाभिमानी व्यक्ति हैं और स्वाभिमानी व्यक्ति के साथ रूखापन भी मौजूद होता है। अगर बाबूजी जी-हजूरी से अपने अधिकारीयों को खुश रखते तो शायद मुझे कई साल यूँ भटकना न पड़ता। या मैं भटकता भी तो बाबूजी ही कुछ ऊँची हैसियत रख कर तो रिटायर होते ही। क्योंकि या तो आदमी को मक्खनबाजी आनी चाहिए या फिर पास में फालतू का पैसा हो और इन दोनों का ही अभाव आदमी को अगर अंदर ही अंदर घुटने को मजबूर कर दे तो क्या बड़ी बात है। 



आज अधिकारी के आगे कुत्ते की तरह पूँछ हिलाना जीवन का एक अनिवार्य अंग है जानते हुए भी उन्होंने मुझे कई वर्ष स्वाभिमानी और ईमानदारी की सीख देने में गुजारे और अगर उसका चौथांश भी चमचों के गुण ग्रहण करने की मिसाल देने में बिताते तो मैं भी आज कुछ ऊँची पोस्ट पर होता। मगर नहीं,हद है इतना खोकर भी तथा आसपास के माहौल को जानकर भी वो अपनी जिद पर अड़े थे। आज अगर मैं कुंठाग्रस्त,तनावग्रस्त हूँ तो उनकी जिद की टेढ़ी पूँछ के कारण ही।
रोजगार दफ्तर की लम्बी कतारें देख कर ही मैं आह भरता था,जानता था कि ये भी वो ही नाम भेजेंगे जो ऊँचे पव्वों(पहुँच) के माध्यम से आएंगे। हर तरफ इंटरव्यू का ढकोसला जो महज ५-६ अधिकारियोँ  बीच का गुब्बारा है,जो उन सभी द्वारा श्रेष्ठता के अनुरूप क्रमशः सबसे बड़ी,छोटी फूँकों द्वारा भरा जाता है। 


नींद भी कितनी अच्छी होती है  आप आराम से रंगीन सपनों में खो तो सकते हैं। मगर नींद भी तो तभी आती है जब पेट भरा हो और करवटों में भी मेरी तरह किसी ने अगर सपने देखे हैं तो वे रेगिस्तान में पानी के भ्रम की तरह टूटे हैं। 
हाँ,तो मैं अपनी बात आपको बता रहा था जरा भटक गया था बात से। यूँ तो हर पल,हर घडी भटका हूँ मगर ये आपको हकीकत नहीं लगेगी। ख़ैर चलिये,आगे बढ़ाता हूँ अपनी राम-कहानी। जब बाबूजी को रिटायर होने के बाद ही अपनी स्थिति ज्ञांत हुई तो वे टूटन महसूस करने लगे थे और अपने मित्र से आखिरकार उन्हें मेरे लिए कहना ही पड़ा।मित्र आश्चर्य में थे पर साथ ही न जाने कैसे दयालु हो गए और अपनी फैक्टरी में अस्थयी पद पर नियुक्त कर दिया। ये जरूर है की तब से मैंने अपने घर को कन्धों पर संभाल कर रखने का प्रयत्न किया है। आज मैं हक़ीक़त समझ सका हूँ कि राजा का बेटा ही राजा हो सकता है अन्य कोई नहीं। अंत में एक शेर,बस उसकी भी एक ही पंक्ति याद है ,शेर कुछ यूँ है.……… 
"खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से" 

ग़ज़ल -51 देख रहा हूं एक वक्त से






देख रहा हूँ एक वक्त से दपॆन मगर।
समझ ना आए है ये किसका बदन मगर।।                         
हैरान हूँ सांसों के इस  अन्दाज पर।
रुक कर भी चल रहा है ये जीवन मगर।।

जिनका इंतजार है वो आयेंगे यदि अगर।
राह पर मेरी हैं बरसे कहां घटा सावन मगर।।

बखिया उधेड़ कर वो अक्सर सबके सामने।
देख मुझे करते हैं फौरन ही तुरपन मगर।।

मुफलिसी भी होती मुबारक अमीरी की तरह।
"उस्ताद" है कहाँ शेष नूर खंजन नयन मगर।।                        


ज्योति कलश छलके









Friday, 18 July 2014

प्यारा -दोस्त (बाल-कहानी)















 राजू एक बड़ा प्यार सा बच्चा था। उसको पेड़-पौधों,पशु-पंछियों से बहुत प्यार था। खासकर कुत्ते तो उसे बहुत ही अच्छे लगते थे। लेकिन उसके पापा जानवरों को अच्छा नहीं मानते थे सो वो खुद ही अपने दिल को जैसे-तैसे दिलासा देता रहता। लेकिन फिर भी जहाँ कहीं वो कुत्ते के बच्चे को देखता तो उसका दिल उसे अपने घर के लिए भी एक डॉगी लाने को मचलता।वैसे उसके पापा उसे बहुत प्यार करते थे क्योंकि वो बहुत समझदार और आज्ञाकारी था सो वो अगर जोर देकर कहता तो उसके मन की होने में शायद ही देरी होती।खैर  ……

एक दिन वो रोज़ की तरह सुबह पार्क में खेलने जा रहा था,दरअसल उसकी गर्मी की छुट्टियां चल रहीं थीं सो सब बच्चे वहीं 5 बजे खेलने के लिए मिलते थे।आज वो थोड़ा जल्दी पार्क पहुँच गया था तो ऐसे ही चहल-कदमी कर रहा था तो झाड़ी में एक छोटे काले पपी को कराहते देखा। उसने आस-पास देखा पपी की मम्मी उसे कहीं नहीं दिखाई दी. उसका दिल नहीं माना सो उसने बड़े प्यार से उसे बाहर निकाला और देखा की उसकी टांग में चोट लगी है। उसे बड़ा दर्द हुआ। इतने में उसके दोस्त भी आ गए। सब जानते थे की राजू को डॉग बहुत अच्छे लगते हैं तो सब उससे जोर देकर कहने लगे की इसे वो अपने ही घर ले जाये। उसका मन भी यही था पर पापा  … फिर उसने सोचा की जब तक ये ठीक नहीं हो जाता तब तक के लिए पापा से कहेगा की वो इसे रहने दें। यही सोच और निर्णय ले वो उसे घर ले आया। शाम पापा आये तो पता चला की उनका प्रमोशन हो गया है। आज तो पापा बहुत खुश थे सो घर के लिए बहुत मिठाई वगैरा ले कर आये थे। उन्होंने जब ये सारी बात सुनी तो न जाने कैसे शायद ख़ुशी में खुद ही राजू से डॉगी को घर में रखने की इजाजत दे दी।

राजू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। उसकी तो मन की इच्छा पूरी हो गयी। अब उसने अपने डॉगी को सबसे पहले प्यार सा नाम दिया,"टाइगर" जो उसने पहले से सोचा हुआ था,और उसकी देखभाल में लग गया। जल्दी ही राजू की देखभाल रंग लायी और टाइगर न केवल ठीक हो गया बल्कि उससे बहुत घुल-मिल गया। टाइगर बहुत एक्टिव और समझदार था,शायद एक अच्छी ब्रीड का था। अब तो राजू क्या उसके दोस्तों की भी मोंज-मस्ती को पंख लग गये। रोज सुबह-शाम जब भी खेलने की बात आती बिना टाइगर के कोई कुछ सोच नहीं सकता था।




ऐसे ही एक दिन जब सारे दोस्त टाइगर के साथ पिकनिक मनाने घर से थोड़ा दूर एक बड़े पार्क में गए।  वहां बॉल खेलते हुए टाइगर भी बॉल पकड़ कर ला रहा था। बल्कि वह तो कई बच्चो से ज्यादा फुर्ती से दौड़ लगाता और तेजी से पकड़ कर राजू को देता। इसी तरह खेल चल रहा था। एक बार बॉल झाडी के अंदर फँस गयी तो टाइगर लेने दौड़ा मगर वापस न आकर वहीं भोंक रहा था। जल्दी ही दोस्तों ने उस जगह को नजदीक से देखा तो उन्हें वहां एक लेडीज पर्स भी दिखा। पर्स में पैसे तो नहीं थे मगर कुछ महत्वपूर्ण डाक्यूमेंट्स वा अन्य कुछ कागज़ थे। दोस्त समझ गए की ये किसी चोर ने लेडीज पर्स छीन कर उसमें से असली माल  याने कैश उड़ा लिया है और पर्स यहाँ डाल दिया है। राजू और उसके मित्रों ने फिर घर आकर ये किस्सा सुनाया तो सबने पर्स को थाने में जमा करने की राय दी। सुधीर अंकल जो राजू के दोस्त के पापा थे और पुलिस में थे उन्हें ही ये काम सौंप दिया गया। राजू के मुँह से टाइगर की ये सारी प्रशंसा सुन कर अब तो राजू के पापा भी उसे बहुत अच्छा मानने लगे थे। ये देख राजू को अपने टाइगर पर गर्व करने का एक और मौका मिल गया और अब दोस्तों में ही नहीं पूरे मोहल्ले में टाइगर की लोकप्रियता बहुत बढ़ गयी थी। 

Thursday, 17 July 2014

लघुकथा -11

सोशल -कांटेक्ट
लेकिन इस बच्चे को आप यहाँ से क्यों निकल रहे हैं?प्रधानाचार्य ने कातर भाव बच्चे के पिता से पूछा। दरअसल बच्चे का सदैव मेरिट-लिस्ट में नाम आता था।  बच्चे के पिता ने कहा ,सर मेरा ट्रांसफर हो गया है। अब बच्चा तो परिवार के साथ ही रहना चाहिए। हालाँकि मैं स्वयं भी नहीं चाहता क्योंकि जहाँ ट्रांसफर हो रहा है वहां कोई अच्छा कान्वेंट-कॉलेज भी नहीं है,इतना नामी-गिरामी। अरे!आप क्यों परेशान होते हैं मिस्टर शुक्ला। आपका ट्रांसफर तो हम चुटकियों में रुकवा देंगे। इतने सोशल-कांटेक्ट तो हमें अपने कॉलेज की प्रतिष्ठा की खातिर बनाये रखने पड़ते ही हैं। हाँ,जरा बताइये तो अपना डिपार्टमेंट  ……  

Tuesday, 15 July 2014

लघुकथा -10





ब्रहमास्त्र  

उनका सुपुत्र उच्च पदासीन हुआ तो बस उनकी बाँछे खिल गयीं। तुरंत पड़ोस की माता जी को पकड़ लिया और व्यंग बाण कसने लगीं क्योंकि उनका बेटा बहुत मामूली सी नौकरी कर रहा था।  माता जी बड़ी घाघ थीं। आसानी से हार कहाँ मानती,जानती थीं कि उसके पति की पेंशन उनके पति की अपेक्षा बहुत कम है। अतः ब्रह्मास्त्र साधते हुए बोलीं अरे बहन!आजकल के बेटों की नौकरी से हम लोगों को क्या करना?शादी हुई नहीं बन गए जोरू के गुलाम। हमें तो मतलब होता है अपने मरद की कमाई से। इन्हें तो करीब दस हजार से ऊपर मिल ही जाती है पेंशन। वैसे तुम्हारे उनको कितनी मिलती होगी बहन?पांच हजार तक तो हो ही गयी होगी न अब तक तो। 

Monday, 14 July 2014

राम मेरे तो हो न ?

राम मेरे तो हो न ?                                                      
वैसे होगे तो होगे ही
जब तुम सबके ही हो।
पर सबके जैसे हो
उस जैसे मेरे होगे तो
मेरा भला क्या होगा !
मैं तो हूँ क्योंकि मूढ़ बड़ा।
उस पर भी सदा सर्वदा
काम क्रोध,मद मोह में लिप्त पड़ा।
तो सिर्फ कहने भर को मेरे
होने से न काम बनेगा।
मेरे लिए तो तुमको हर पल
अंगरक्षक बन रहना होगा।
वैसे भी तो लाड़-दुलार तुम्हारा
मुझे बहुत बिगाड़ चुका है।
रोज मलाई-भात,हाथ तुम्हारे
खाते रहने से डीठ हुआ है।
अब तो एक छन भी अवकाश
नहीं तुम्हारा भाता है।
सो रहना तो होगा ही तुमको
हर-पल,हर-छन साथ मेरे।
मेरी हर चाह को पूरा करने
अलादीन के चिराग के जैसे।
वार्ना मैं कहाँ दो कदम चल पाउँगा
जरा सी दूरी में थक कर गिर जाऊँगा।
फिर मुझको रोता देख भला
कहाँ तुम्हें चैन जरा भी आयेगा।
मेरी खातिर तुमको बार-बार
नंगे पाँव,दौड़-दौड़ कर आना होगा।


Sunday, 13 July 2014

घनराज बरसो तुम






घनन-घनन घनराज बरसो तुम अब घम-घम
व्याकुल धरा त्रस्त बड़ी,बरसो तुम अब झम-झम।

कृषक देख रहे बार-बार,याचक बन अब घट-घट
अब विलम्ब दुसह्य हो रहा,बरसो तुम अब झट-झट।                        

पेड़-पात,पशु-पक्षी,सब क्लेश ग्रस्त,लगते जैसे मरघट
मेघ मल्हार सुनाओ जी भर,बरसो तुम अब झटपट।

सूना कलरव,सूना उपवन,सुन लो अब प्यारे नटखट
हर्षित मन हो,पुलकित तन हो,बरसो तुम अब चटपट।

अहा!फुहार पड़ी शीतल,त्रिविध बयार बही अब लटपट
धन-धन मेघराज तुम,जो बरसे चहुँ दिश अब घट-घट।

देखो दौड़ पड़े,सरिता और सागर सब अब फट-फट
नूतन जीवन अमृत बरसा,तुम जो बरसे अब सटपट।
  

I AM SORRY DEAR



Today the result of Intermediate Board will be out on papers. Hari is anxious to know about it because his sister Anita has also appeared in this exam. He is standing in front of the press since 4'o clock with some of his friends.
Paper comes to his hand at 6'o clock and he soon finds the roll number of his sister in column of second division. 124381-he murmured the roll number and for accuracy he took out the piece of paper from his pocket. Same figure was there and he then kept that piece of paper back in his pocket.
He was happy but at the same time it was amazing as the members of the family expected Anita's first division. Any how this matter didn't puzzle his mind for too long when he was asked by his friends for party. He took them to a coffee corner where they enjoyed cold coffee and snacks. From there near at 7'o clock he returned back to his house with a packet of sweets and gift for his loving sister.
Just as he reached the doors of the house he shouted, "Anita, Anita". Having no response from inside he rang the bell and after some moments the door was opened by his mother. "Where is Anita?" he asked. "Where she will be? She is in her room", mother replied in an angry tone. "What is this in your hand ?", she asked. "Nothing simply sweets and gift for Anita. She has come second", Hari told. "We know that too that she is second but why this present for her? She has neither topped nor she is first then...." mother argues. "Then what mother? After all she has passed her exam." Hari gave an impression of joy.
"Passed her exam!! oh what nonsense", her mother murmured. Hari stepped to his sister's room without taking notice to her word. There he saw her sister looking very sad. He said, "oh you Anita, why are you looking so uneasy? Accept my congratulations and this present."
Anita still remained silent. Her lips wanted to say something but her mind was not allowing her to speak a single word. Her eyes were still and wet, perhaps in search of a place where she could find some relief. Hari said further, "Anita do you know that mother has a lot of hope from you because you have laboured hard and being practical in nature, she herself does not know that her hard words can pinch you. Anyway, I am sure that soon she will realize her mistake. As far as your result is concerned, I have heard many people saying that this year printing machine is behind all this nonsense. Hope is life dear.Come on, now cheer up. Say thanks to me for this gift."
After a fortnight's gap, Anita and her mother went to college where they both burst with tears of joy when they were congratulated by the principal for Anita's securing first division with distinction in three subject.
Now as soon as both saw each other Anita could read distinctly the impression in her mothers eyes which wanted to say, "I AM SORRY DEAR".
It's worth mentioning here that soon Anita's mother embraced her.


Monday, 7 July 2014

लघुकथा -9

नास्तिक या आस्तिक 

अरे यार !मैं ईश्वर वगैरा में विश्वास नहीं करता  हूँ  ये सब चोंचलेबाजी है और कुछ नहीं। पैसा कमाने के धंदे हैं ये सब। कोई ऐसे करता है तो कोई वैसे। मठाधीशों की अपनी सुविधाओं  के ये सब मकड़-जाल हैं। मैं इन सब के चक्कर में नहीं पड़ता। मैं तो नास्तिक हूं ,कट्टर नास्तिक।वो अनवरत चालू थे।  दरअसल उनका मुंहफट और अक्खड़ स्वाभाव था ,पर दिल के बड़े ही उदार और सबके काम में  बिना एक पल की देर किये अपने पारिवारिक सदस्य की तरह मदद को प्रस्तुत रहते। मैं उनसे कहना चाहता था लेकिन छोटे मुंह बड़ी बात समझते हुए नहीं कहा की,आदरणीय चाहे बहुतेरे लोग न मानें  पर मुझे तो यकीं है की आप जैसे नास्तिक लोग दरअसल सच्चे आस्तिक ही हैं।    

Sunday, 6 July 2014

गुरुदेव






तुम सुधरोगे तो क्यों नहीं भला गुरुदेव मैं सुधारना चाहूंगा
धुल-मिटटी बहुत फांकी  प्रसादी तेरे हाथ की क्यों न खाऊंगा।

माना बहुत भाता है माया की अठखेलियों संग गुलाटी मारना
तुम दिखाओ दिव्य रूप अपना तो क्यों न चाहूंगा हाथ थामना।

वैसे भी चलते-चलते बहुत थककर अक्सर निढाल हूँ पड़ जाता
तुम बिठा कर गोद अपनी चलो तो कैसे तय न करूँगा हर रास्ता।

रास्ते खाई-खंदक,सर्प-बिच्छू हैं बहुत पुरुषार्थ निष्फल करते जो मेरा
क्लीवता से ग्रसित मुझ  मूढ़ मति को है सहारा तो  एकमात्र बस तेरा। 

Saturday, 5 July 2014

लघुकथा -8

अन्तर्मुखी 

शर्मीला चुप-चुप सा रहने वाला सौम्य  स्वाभाव और किसी भी बात पर हौले से मुस्करा देने की आदत शायद कुछ ऐसे ही गुणों के संग्रह के कारण वह अपने परिचितों में अंतर्मुखी के नाम से जाना जाता था। एक दिन पता लगा की वह घर से  भाग गया है तो लोगों को लगा की कोई उसे उठा ले गया है या कि फिर वो खुद ही किसी साधु के साथ निकल गया होगा। लेकिन जल्दी हे पता लगा कि अंतर्मुखी किसी नाबालिग लड़की को साथ भगा ले गया है। 

Friday, 4 July 2014

ग़ज़ल -44 खाते हैं चांदी की चम्मच से


खाते जो चम्मचों से चांदी की क्या ठसक कहिए।
पालते गद्दारों को कौन भला देश-सेवक कहिए।।

जो सबके लिए अंधेरों से दुआ मांगते दिखे।  
उजालों को तो ऐसे आप काले,अराजक कहिए।।

बहारों के मौसम जो बेवजह चहकना छोड़ें।
परिंदों को तो हर हाल ऐसे बस मिथक कहिये।।

आँखों में बांध कर पट्टी जो चलते रहे।
बढ़ते कदम उन्हें क्या ख़ाक उत्पादक कहिये।

दरख़्त में बैठ जो जड़ काटने में मशगूल हैं।
उसके आगे तो रहमान भी निरथॆक कहिये।।

जिस्म में फूंकता है दिन-रात जो जान हम सबके ।
"उसे तो "उस्ताद" आप अपना एक नियामक कहिये।।

Thursday, 3 July 2014

पहाड़ी हास्य व्यंग -4

लाटी ननकर जे कारणों छी
हमर मनमोहन व्यवहार                                      
सोनिया एक हाथ अघिल छी
करणे छी देशोक बंटाधार।





मुलायम ज्यू हाल नी पुछो
भलिके बलांड में उँ ऊननके  डाड
कका सब मिलबेर खीचंड़ लाग रई
सीएम अखिलेशक टांग।






बी जे पी भाग्येल ठीकर फुट गो,चुनाव में यो बार                                                                
नरेंद्र जस हाई-टेक बणों जब यनर सरदार
यो अलग बात छु के जोश्ज्यो खीश निपोड़नी
वई  आडवाणी ज्यूक परण लॉग रौ टिटाट।









सतपाल जे महाराज भल रूनी
कोई ले हो सरकार                                                                                
दुइनन जाग बटि माल डकारन में                                                                  
ओरि छन सेंडी -बैग होसियार।






माया राणि तेर नी चल सकी
यो चुनावन में एक ले चाल
मिठ -मिठ सब तू गप्प करछी
अब तित ले चख एक बार।











नारायण नाम जपनि उम्र में
नारदा करनी ओरि जे धमाल
बिन ब्याही बाप बड़न लॉग रई
फिर अपूण नाम दीण में करणी तकरार।                                                                          







राजनीति में जो ले छन
चोट्ट -मोट्ट सब एक्के छन
एक दुहर के हमर अघिल गाली दीनी
भीतर खानी एक थालिन में सब साथ।







दिग्गी राजा ले सिरफिरी छू खूब
दुहर के कोसण में यो अघिले रु                                                                                                
आदू उम्र वाली चली दगड करबेर ब्याह
ओरनेक चरित्रन  पर करों च्या -म्या।




पहाड़ी हास्य व्यंग से सम्बंधित एक अन्य पोस्ट 31 मई 2014 में देखी  जा सकती है।