Monday 16 June 2014

चार लाइना







साधना 
वो ही है सच्ची साधना
जिसमें रहती कोई साध +ना








संत
अपनी कामनाओं को उसने
जलाकर राख कर दिया।
उसी भस्म को बाँट फिर
जगत का कल्याण कर दिया।



होशियार 
वह युवक चिढ़कर बोला
तो क्या मैं गधा हूँ ?
वृद्ध बोले, नहीं-नहीं
तुम तो बड़े हो+सियार।



प्रेमी युगल  
धीरे-धीरे वे दोनों
दूरियाँ पाटकर
नज़दीक आ गये।
पहले तुम से तू
फिर तू-तड़ाके पे आ गए।





विद्यार्थी 
आजकल विद्या के अर्थी
निकालते विद्या की अर्थी।




ईद 
चाँद को देखने की क्या जरूरत
ईद तो मनेगी हर उस रोज़ को
दो जून की रोटी मिलेगी भर पेट
जब हर एक मज़लूम, मुफ़लिस को।





नलिन (कमल )
जन्मा माया के पंक में
खिला कामना के पंक में
पर न सना, रहा निर्लिप्त
सदा ही पंक में।

No comments:

Post a Comment