Wednesday 11 June 2014

ग़ज़ल -20





























दुनिया जानें नफरतों से भर रहे भला क्यों?
जानबूझ कर देखो खुद को रहे बहला क्यों?

महक उठा है तेरे नक़्शे-पा से ज़र्रा-ज़र्रा।
मेरी चौखट से बस गुरेज़ तुझको भला क्यों?

कली जो भीग गई पहली-पहली बरसात में ही। 
पत्ते कहते चमन हमसे करता घपला क्यों ?

हौंसले से हथेली जब उगा लेते हैं लोग सरसों।
कदम दर कदम जोश भरा बढ़ने से हिचक बतला क्यों ?

बाँहों में सिमट कर आज बरस जाओ मेरी। 
मौसम है सुहाना फिर दिल नहीं पिघला क्यों ?

मुसाफिर हो जिंदगी की राह में "उस्ताद" तुम तो।
कस्तूरी भीतर फिर उदासी का मसला क्यों ?

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