Friday, 20 June 2014

गज़ल -43 बेवफा प्यार के नाम

 
लकीरों में उसको चाहना लिखा जरूर था।
बेवफ़ा मगर अपनी फितरत से मजबूर था।।

जिसकी आवाज़ पर  दिल था मेरा मचलता। 
हमराज जाने क्यों वो बना नासूर था।।

हालात के खंजरों से दिल ये जख्मी हो गया।
भला इल्जाम क्यों थोपें जब अपना कसूर था।।

एक मुद्दत से बिछुड़ उसका ही दिल लापता था।
मगरूरियत के मगर नशे में वो तो चूर था।।

भटक जाता जज्बात के दर्दीले सफर में वो।
गनीमत पुरसाहाल को "उस्ताद"-ए-नूर था।।





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